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आज काल कि पांच दिन जंगल होगा वास
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इस पर राजा ने मघा को अपने पास बुलाकर पूछा - "भाई ! तुमने कौन सा मन्त्र सिद्ध किया है, जिससे हाथियों को भी भगा देते हैं ? "
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मघा ने विनयपूर्वक उत्तर दिया – “महाराज ! मुझे केवल एक ही मन्त्र याद है । वह यह कि तुम्हें जो अच्छा लगता है वही दूसरे के लिये करो ।” राजा ने फिर प्रश्न किया - " इस मन्त्र को किस प्रकार सिद्ध किया जाता है ?"
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"अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच साधनों के द्वारा - मघा ने उत्तर दिया, इनकी आराधना करने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है ।"
राजा ने मघा की बातों से अत्यन्त प्रभावित होकर पूछा - "क्या मेरे राज्य में तुम इसी का प्रयोग करते थे ?"
"हाँ महाराज ! मैं इसी मन्त्र का प्रयोग करता था ।"
इसी बीच जबकि राजा मघा से बातें कर रहा था कुछ प्रजाजन समीप आए और बोले—“हुजूर ! मघा भाई और इनके साथियो के जैसे राज्य भक्त तो राज्य में और कोई हैं ही नहीं । ये जैसे कार्य करते हैं और कोई भी नहीं कर सकता । आप के कर्मचारियों ने तथा कुछ अन्य लोगों ने इर्ष्या के कारण ही आप से इनकी शिकायत की है ।"
सारी बात समझने के पश्चात् राजा ने उन लोगों को और उन कर्मचारियों को जिन्होंने मघा की झूठ-मूठ शिकायत की थी, पकड़वा लिया और उन सबको हाथी के पैरों के नीचे कुचलवा देने की आज्ञा दे दी ।
लेकिन मघा ने अत्यन्त विनयपूर्वक राजा से प्रार्थना की- "महाराज ! मैं चाहता हूं कि आप मेरे भाइयों को इस प्रकार दंड न दें तथा इन्हें मुक्त कर दें । राजा मघा के अपने दुश्मनों के प्रति भी ऐसे क्षमापूर्ण एवं उदार बर्ताव से अत्यन्त प्रभावित हुए और उसे अपना प्रधान बना लिया ।
मघा ने राज्य का ऐसा सुन्दर संचालन किया और इतनी उत्तम व्यवस्था की कि उसके नाम पर ही उस देश का नाम मगध देश प्रसिद्ध हो गया ।
आशय यही है कि स्नेह और सद्भावना रखते हुए जो सेवा-धर्म को अपनाता है वह इस लोक में तो यशस्वी बनता ही है, पर लोक में भी अक्षय सुख की प्राप्ति करता है । और ऐसे व्यक्ति ही सच्चे भक्त कहलाते हैं जिनकी भाव - पूजा से भगवान प्रसन्न होते हैं । सच्चे भक्त की निर्मल एवं शुद्ध आत्मा ही अन्त में परमात्मा पद को प्राप्त करती है जिस आशय से कबीर ने कहा हैं- " दास कबीरा की भक्ति न जाएगी ज्योति में ज्योत मिलानी ।"
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