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आनन्द-प्रवचन भाग-४ यहाँ का बैंक-बैलेंस, महल-मकान, गाड़ी-घोड़े, बाग-बगीचे और लम्बा-चौड़ा परिवार नहीं है। अपितु केवल शुभ कर्मों का संचय है। अगर जीव ने यहाँ पुण्योपार्जन कर लिया तो समझ लो कि उसने परलोक-यात्रा की तैयारी की है।
यह जीवन तो स्वप्नवत है। रात को सपने में देखते हैं कि जीव लट में पड़ा हुआ है, नाना प्रकार के भोगोपभोगों को भोग रहा है तथा ऐश-आराम कर रहा है। किन्तु नींद खुलते ही वह सब गायब हो जाता है । यही हाल जीवन के पश्चात् होता है । क्षणिक जीवन में हजारों तरह से भोगे हुए सुख और समस्त राज-पाट या धन दौलत, आँख मूदते ही काल के अतल में विलीन हो जाते हैं।
कबीर की लिखी हुई अंतिम लाइनें कितनी मार्मिक हैं ? कहा है-अरे भाई ! जीवन का कोई भरोसा नहीं है। कदाचित प्राण आज ही यहाँ से प्रयाण कर जाएँ, आज बच गए तो कल की खैर नहीं, और भाग्य ने अधिक जोर मारा तथा यमराज के खाते में कुछ सांस जमा हुए तो दस-पाँच दिन और निकल जाएँगे पर आखिर मरना तो अनिवार्य है। पर उसके बाद क्या होगा ? तुम्हारी इसी देह को देखकर लोग डरेंगे, पत्नी भी समीप नहीं आएगी। और शीघ्र से शीघ्र तुम्हारा डेरा जंगल में पहुँचा दिया जाएगा। जहाँ न तुम्हारा कोई स्वजन रहेगा, न तुम्हारे रहने के लिये हवेली होगी और न ही तुम्हारे बैठने के लिये घोड़ा गाड़ी या मोटर होगी। सुनसान स्थान पर केवल छ हाथ जमीन खोदकर तुम्हें गाड़ दिया जाएगा और चंद दिन बाद ही उस पर हल चलने लगेंगे या घास ऊग जाने पर उसे जानवर चरेंगे। तुम्हें कौन फिर याद करेगा और तुम्हारी जीवनभर कमाई हुई दौलत किस काम आएगी?
इसलिये बंधुओ, हमें संसार की अनित्यता को स्मरण रखते हुए कभी नहीं भूलना है कि जीवन भी क्षणभंगुर है। और इसीलिये बिना समय बर्बाद किये धर्म के स्वरूप को समझ लेना है तथा आत्मकल्याण के सच्चे उपायों को जान लेना है। मृत्यु के पश्चात् बोधि अत्यन्त दुर्लभ है-बड़ी कठिनाई से प्राप्त हो सकती है। गया हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता -
'यदतीतमतीतमेव तत्।' - जो गया सो गया । हाथ से छूटा हुआ तीर पुनः हाथों में आना कठिन है । इसी प्रकार दोबारा मानव जीवन की उपलब्धि होना भी सरल नहीं है । क्षण
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