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आनन्द-प्रवचन भाग-४
उसके निरन्तर ऐसा करते रहने के कारण गाँव के नवयुवक उसकी ओर आकर्षित हुए और मघा के कार्यों में हाथ बटाने लगे। धीरे-धीरे मघा के बत्तीस साथी हो गए जो गाँव की सफाई तो करते ही थे, शराबियों को समझा बुझाकर उनका शराब पीना भी छुड़ाते थे । दुराचारी व्यक्तियों को भी सदाचारी बनाने का प्रयत्न करते और गाँव में होने वाले झगड़ों में बीच-बचाव करके लोगों को शांत करते थे। इस प्रकार लोगों के दिलों की भी वे शुद्धि किया करते थे। उनके ऐसे कार्यों से गाँव वाले उनकी सराहना करने लगे। किन्तु सभी व्यक्ति एक सरीखे नहीं होते । कुछ ऐसे भी उस गाँव में थे जो मधा और उसके साथियों से जलते थे।
मौका पाकर उन लोगों ने वहाँ के राजा से शिकायत कर दी कि इस गाँव में कुछ लुटेरे ऐसे हैं जो प्रजा को परेशान करते हैं तथा लोगों का धन-माल खतरे में है।
राजा शराबी और कान का कच्चा था। लोगों की बातों पर उसने विश्वास कर लिया और अपने कर्मचारियों को आज्ञा दी कि उन लुटेरों को पकड़ कर हाथी के पैरों तले कुचलवा दो। गाँव के निवासी राजा का यह हुक्म सुनकर बड़े चकित और दुखी हुए उन्होंने विरोध भी करना चाहा।
किन्तु मघा ने उन्हें समझा बुझाकर शांत किया और बिना अपने आपको सिपाहियों से पकड़वाये स्वयं ही अपने साथियों सहित राजा के समक्ष मा उपस्थित हुआ। सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ किन्तु राजाज्ञा थी अतः उन सवको हाथी से कुचलवाने का बन्दोवस्त किया गया। : मघा के सब साथी बहादुर थे और मघा ने उन्हें और भी बहादुर बना दिया था। उसने सबसे कहा-"आज ही हमारी सच्ची परीक्षा है अत: समभाव पूर्वक जो कुछ भी गुजरे सहन कर लेना । वैसे मैं तुम सबसे आगे लेटता हूँ। अगर तुम्हें हाथी मारेगा तो उससे पहले मुझे भी मारेगा।"
हाथी आया किन्तु लोगों ने महान आश्चर्य से देखा कि उसने मघा को कुचलना तो दूर, उसे बड़े प्यार से सूघा और वापिस लौट गया। यह देखकर राजा ने दूसरे मदोन्मत्त हाथी को लाने की आज्ञा दी । दूसरा हाथी भी आया। पर उसने भी ऐसा ही किया । वह मघा के पास गया किन्तु उसके आसपास चक्कर लगाकर और उसे सूचकर वह भी वापिस लौट गया । इसी तरह तीसरे हाथी ने भी किया। इस पर राज्यकर्मचारी कहने लगे ये लोग तो जादू-मन्त्र जानते हैं।
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