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आज काल कि पांच दिन जंगल होगा वास !
दास कबीरा की भक्ति नहीं जाएगी, ज्योत में ज्योति मिलानी ।
आखिर जाएगी जिन्दगानी ।
कबीर का भी कथन है- 'चन्दा भी जाएगा, सूरज भी जाएगा ।' सुनकर आपके मन में संकल्प विकल्प उठ रहे होंगे कि सूर्य और चन्द्र दोनों चले गए तो अंधेरा हो जाएगा और फिर संसार का कार्य कैसे चलेगा ?
पर भाइयो ! ऐसी बात नहीं है । आप जानते ही हैं कि किसी का भी स्थान कभी खाली नहीं रहता । यथा - एक राजा समाप्त होता है तो राजगद्दी पर दूसरा राजा आसीन होता है । इसी प्रकार राज्य का प्रत्येक कर्मचारी चाहे वह मंत्री हो या गाँव का छोटा सा चौकीदार, अगर वह अपना स्थान छोड़ देता है तो तुरन्त ही उसके स्थान पर नई नियुक्ति हो जाती है । अपनीअपनी योग्यतानुसार व्यक्ति स्थान प्राप्त करता जाता है ।
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यही बात चन्द्र एवं सूर्य के लिये भी है । वे जब तक विद्यमान हैं, विश्व को प्रकाशित करते हैं किन्तु जिस दिन उनकी पूर्णाहुति हो जाएगी उनके स्थान पर उतनी योग्यता रखने वाले यानी इन स्थानों को पाने लायक करनी करने वाले इनका स्थान ग्रहण कर लेंगे और वहाँ पैदा हो जाएँगे । अत: इस विषय को लेकर संकल्प-विकल्प करने की आवश्यकता नहीं है ।
अब बचे पवन और पानी । वे तो बहते ही रहते हैं जो जाएँगे ही। इस प्रकार सूर्य और चन्द्र तो क्या संसार की हर वस्तु जाने वाली है यानी नष्ट होने वाली है । इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।
किन्तु कबीर जी कहते हैं कि मेरी भक्ति कभी नहीं जाएगी, उसका कभी नाश नहीं होगा । वह आंखों से दिखाई देनेवाली चीज नहीं है और तब तक विद्यमान रहेगी जब तक मेरी आत्मा जो कि परमात्मा का ही अंश है, पुनः उसमें नहीं मिल जाएगा । 'ज्योत में ज्योत मिलानी ।' इससे यही आशय है कि परमात्मा कोई स्थूल पदार्थ नहीं है एक अवर्णनीय एवं उज्ज्वलतम प्रकाश है जिसकी एक किरण मेरे इस शरीर में कैद है और जिस दिन वह पापों से मुक्त हो जाएगी, परमात्मा रूपी उस विशाल प्रकाशपुंज में मिल जाएगी। महाभारत में कहा भी है
"जहाति पापं श्रद्धावान् सर्पो जीर्णमिवत्वचम् ।'
जिसके हृदय में श्रद्धा या भक्ति का माधुर्य भर जाता है वह पापों का इस प्रकार परित्याग कर देता है जैसे सर्प अपनी जीर्ण-शीर्ण केंचुली का परित्याग करता है ।
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