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आनन्द-प्रवचन भाग-४
रहे थे ऐसे बुद्धिहीन को भी संसार प्रसिद्ध कवि बना दिया । तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली ने भी मोह और वासनाग्रस्त तुलसीदास को धर्म-धुरंधर और भगवान का सच्चा भक्त संत तुलसीदास बनाया । सती सावित्री अपने पति सत्यवान को यमराज से छुड़ाकर ले आई। हमारे जैन इतिहास में उदाहरण भरे पड़े हैं । महारानी चेलना, सती सुभद्रा, सती अंजना, महासती चंदनबाला आदि ऐसी-ऐसी नारियां हुई हैं जिनकी दृढ़ आत्म-शक्ति और तेज प्रताप से लोहे की हथकड़ियां भी साधारण सूत के समान टूट गई, कच्चे सूत के धागे में बंधी चलनी कुए से जल भर कर ले आई, आदि-आदि उदाहरण स्वर्णाक्षरों से अंकित हैं।
ऐसी नारियों के त्याग, प्रेम, उदारता, वीरता, सहिष्णुता, धर्मपरायणता आदि अनेक उज्ज्वल गुणों ने मानव को अभिभूत किया है तथा उसे कुमार्ग पर जाने से बचाया है। इसीलिए संसार उसे श्रद्धापूर्ण दृष्टि से देखता रहा है और सम्मानपूर्वक कहता है- “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।" यानी जहां नारी की प्रतिष्ठा होती है वह स्थान स्वर्ग तुल्य बन जाता है । मनुस्मृति में भी कहा गया है
शोचन्ति जामयो यत्र, विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रता, वर्द्ध ते तद्धि सर्वदा ॥ अर्थात्-जिस कुल में नारियां दु:ख के कारण शोक करती हैं, उस कुल का शीघ्र नाश हो जाता है। और जिस कुल में नारियां सदा प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सदा उन्नत रहता है । __ वस्तुतः नर और नारी का महत्त्व समान है और वे रथ के पहियों के समान जीवन रूपी गाड़ो में समान रूप से सहायक हैं । आदि काल में स्त्रियों का स्थान पुरुषों से लेश मात्र भी हीन नहीं समझा जाता था। यह यथार्थ भी है। प्राचीन सभ्यता इस बात की पुष्टि करती है कि इस आर्यावर्त में स्त्री और पुरुष के अधिकार समान थे, उनकी प्रतिष्ठा और दर्जा भी समान था । महाभारत में कहा गया है
देववत् सततं साध्वी, भर्तारमनुपश्यति ।
दम्पत्योरेष वै धर्मः, सहधर्मकृतः शुभः ॥ अर्थात्-पत्नी यदि पति को देवता के समान समझती है तो पति भी उसे उसी दृष्टि से देखता है । दम्पति का धर्म एक ही है, यानी सहचारिता दोनों के लिए आवश्यक है।
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