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आनन्द-प्रवचन भाग-४
इसमें । अच्छा बनने की सबसे पहली शर्त तो यही है कि मानव अपने में सहन शक्ति पैदा करे । वह कभी यह न भूले कि:
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह ।
धरती ही पर परत सब, शीत घाम अरु मेह ।। कविवर रहीम का कथन है कि पृथ्वी पर सर्दी, गर्मी और वर्षा सभी गिरते हैं किन्तु वह सब जिस प्रकार सहन कर लेती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी चाहे जैसी विपत्ति या शारीरिक कष्ट आए उसे पृथ्वी के समान ही सहन करना चाहिये । यह संसार व्यक्ति को अच्छा भी नहीं बनने देता। अगर हम महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़े तो ज्ञात होता है कि साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा उन्हें अधिक कष्ट और उपसर्ग सहन करने पड़ते हैं।
हम लोग अपने पात्र झोली में लेकर चलते हैं तो भी नाना प्रकार के व्यंग बरसाते हैं । कोई कहता है-'इसमें क्या लाए हो ? क्या बेचते हो ? ___ हम कहते हैं- 'भाई ! हम बेचते कुछ नहीं, खाली पात्र हैं हमारे पास ।' तो वे पुनः कहते हैं-'संसार चलाना नहीं आया इसलिये साधु बन गए ? इसका क्या जवाब दें, मन में कहते हैं-'भाई, तुम होशियार हो अतः संसार चला सकते हो हमें चलाना नहीं आया इसीलिये तो साधु बने हैं। कोई कहता है-'मुफ्त में खाने को मिलता है इसलिये साधु बन गये ।' यद्यपि उस व्यक्ति के यहाँ हम भिक्षा के लिये नहीं गए और उससे कभी कुछ लिया नहीं, फिर भी वह कहने से नहीं चूकता और हम सुनते हैं। यद्यपि हम जानते हैं कि वह व्यक्ति अगर हमें भिक्षा देता भी तो उससे हमारी एक वक्त की ही पेट-पूर्ति होती किन्तु अगर वह हमारी दी हुई भिक्षा ले ले तो उसकी जन्मजन्म की भूख मिट सकती है। .
पर वह अज्ञान जीव इस बात को कैसे समझता, उस समय तो हमें ही मौन रहना पड़ता है । और तो और समाज में भी ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं है। जो व्यक्ति देश के लिये या समाज के लिये कार्य करता है, उसके कार्य में भी लोग नुक्स ही निकालते हैं । की हुई अच्छाई को नहीं देखते। साधुसाध्वी, श्रावक एवं श्राविका सभी ने मिलकर मुझे यह आचार्य पद प्रदान कर दिया किन्तु कार्य करने पर भी मुझे न जाने कितना और क्या-क्या सुनना पड़ता है। किन्तु इससे क्या, सेवा करनी है तो सुननी ही पड़ेंगी।
आगे कहा गया है:__ अमी ने नयन मां राखी, हृदय मां रहम ने राखी।
कहेला कुवचन राखी, भला थइने भलू कर जो ॥
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