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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
शर्मंदा करनेवाले, निंदनीय, गर्हणीय, अवर्णवाद, करवानेवाले, दुगंछा करवानेवाले, सर्व से पराभव पाए वैसे जीवितवाला होता है तब सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र आदि गुण उनसे काफी दूर होते है, और मानव जन्म व्यर्थ जाता है या धर्म से सर्वथा हार जाता है ।
तो सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र आदि गुण से अति विप्रमुक्त होते है यानि वो आश्रव द्वार को रोक नहीं शकता । वो आश्रव द्वार को बन्द नहीं कर शकता वो काफी बड़े पाप कर्म का निवासभूत बनता है । जो काफी बड़े पापकर्म का निवासभूत बनता है, वो कर्म का बँधक बनता है । बँधक हुआ यानि कैदखाने में कैदी की तरह पराधीन होता है, यानि सर्व अकल्याण अमंगल की झाल में फँसता है, वहाँ से छूटना काफी मुश्किल होता है क्योंकि कईं कर्कश गहरे बद्ध स्पृष्ट निकाचित सेवन कर्म की ग्रंथि तोड़ नहीं शकते, उस कारण से एकेन्द्रियपन में बेइन्द्रियपन में, तेइन्द्रिय, चऊँरिन्द्रिय, पंचेन्द्रियपन में, नारकी, तिर्यंच कुमानवपन आदि में कई तरह के शारीरिक, मानसिक दुःख भुगतने पड़ते है । अशाता भुगतनी पड़ती है । इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि ऐसी कुछ आत्माए होती है कि जो वैसे गीतार्थ के गच्छ में रहकर गुरुकुलवास सेवन करते है और कुछ सेवन नहीं करते ।
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[ ६९४] हे भगवंत ! क्या मिथ्यात्व के आचरणवाले कुछ गच्छ होते है क्या ? हे गौतम ! जो कोई अज्ञानी, विराधना करनेवाले गच्छ हो वो यकीनन मिथ्यात्व के आचरण युक्त होते है । हे भगवंत ! ऐसी कौन-सी आज्ञा है कि जिसमें रहा गच्छ आराधक होता है । हे गौतम ! संख्यातीत स्थानांतर से गच्छ की आज्ञा बताई है । जिसमें आराधक होता है । [ ६९५] हे भगवंत ! क्या उस संख्यातीत गच्छ मर्यादा के स्थानांतर में ऐसा कोई स्थानान्तर है कि जो उत्सर्ग या अपवाद से किसी भी तरह से प्रमाद दोष से बार-बार मर्यादा या आज्ञा का उल्लंघन करे तो भी आराधक हो ? गौतम ! यकीनन वो आराधक नहीं है । हे भगवंत ! किस कारण से आप ऐसा कहते हो ? हे गौतम! तीर्थंकर उस तीर्थं को करनेवाले है और फिर तीर्थं चार वर्णवाला उस श्रमणसंघ गच्छ में प्रतिष्ठित होते है । गच्छ में भी सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, प्रतिष्ठित हुए है । यह सम्यग्दर्शन ज्ञान, चारित्र परम पूज्य में भी ज्यादा शरण करने के लायक है । ज्याद सेवन करने में भी यह तीन विशेष सेवन के लिए उचित है । ऐसे शरण्य, पुज्य, सेव्य, दर्शनादिक को जो किसी गच्छ में किसी भी स्थान में किसी भी तरह विराधना करे वो गच्छ सम्यग्मार्ग को नष्ट करनेवाला, उन्मार्ग की देशना करनेवाला होता है । जिस गच्छ में सम्यग्मार्ग का विनाश होता है, उन्मार्ग का देशक होता है यकीनन आज्ञा का विराधक होता है । इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहते है कि, संख्यातीत गच्छ में मर्यादा का स्थानांतर होता हैं । गच्छ में जो कोई किसी भी एक या ज्यादा स्थान मर्यादा आज्ञा का उल्लंघन करे वो एकान्ते आज्ञा का विराधक है ।
[६९६] हे भगवंत ! कितने काल तक गच्छ की मर्यादा है ? कितने काल तक गच्छ मर्यादा का उल्लंघन न करे ? हे गौतम! जब तक महायशवाले महासत्त्ववाले महानुभाव दुप्पसह अणगार होंगे तब तक गच्छ की मर्यादा सँभालने के लिए आज्ञा की है । य पाँचवे आरे के अन्त तक गच्छ मर्यादा का उल्लंघन न करना ।
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[६९७] हे भगवंत ! किन निशानीओं से मर्यादा का उल्लंघन बताया है ? काफी आशातना बताई है और गच्छ ने उन्मार्ग में प्रवेश किया है - ऐसा माने ? हे गौतम! जो बार