Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 228
________________ पिंडनियुक्ति-५८१ २२७ बाद हाथ आदि पानी से साफ करे । स्निग्ध-कुछ सामान्य पानी लगा हो वो । आर्द्र - विशेष पानी लगा हो वो । सचित्त वनस्पतिकाय म्रक्षित दो प्रकार से । प्रत्येक वनस्पतिकाय प्रचुर रसवाले - आम आदि के तुरत में किये हए, ककड़े आदि से लगा हुआ । उसी प्रकार अनन्तकाय चीज के ककडे आदि से लगे। पृथ्वीकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय, हरएक में सचित्त, मिश्र और अचित्त तीन प्रकार होते है । लेकिन यहाँ केवल सचित्त का ही अधिकार लिया है ।। तेऊकाय, वायुकाय और त्रसकाय प्रक्षित नहीं हो शकते, क्योंकि लोक में ऐसा व्यवहार नहीं है । अचित्त में भस्म, राख आदि का प्रक्षितपन होता है । लेकिन वो हाथ या बरतन आदि को लगा हो तो उसका म्रक्षितदोष नहीं लगता । सचित्त - म्रक्षित के चार भाँगा - हाथ म्रक्षित और बरतन म्रक्षित । हाथ प्रक्षित लेकिन बरतन म्रक्षित नहीं । बरतन म्रक्षित लेकिन हाथ म्रक्षित नहीं । बरतन म्रक्षित नहीं और हाथ प्रक्षित भी नहीं । पहले तीन भाँगा का न कल्पे, चौथे भाँगा का कल्पे । गर्हित म्रक्षित में चारो भाँगा का न कल्पे । म्रक्षित चीज ग्रहण करने में चींटी, मक्खी आदि जीव की विराधना की संभावना है । इसलिए ऐसा आहार लेने का निषेध किया है ।। [५८२-५९९] पृथ्वीकायादि के लिए दो प्रकार से - १. सचित्त, २. मिश्र, सचित्त के दो प्रकार । १. अनन्तर आंतरा रहित, २. परम्पर - आँतरावाला । मिश्र में दो प्रकार १. अनन्तर, २. परम्पर । इस प्रकार हो शके । सामान्य से निक्षिप्त के तीन प्रकार है - १. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र । तीनों में चार-चार भाँगा होते है । इसलिए तीन चतुर्भगी होते है वो इस प्रकार - १. सचित्त पर सचित्त रखा गया ? मिश्र पर सचित्त रखा गया, सचित्त पर मिश्र रखा हुआ । मिश्र पर मिश्र रखा हुआ । २. सचित्त पर सचित्त रखा हुआ । अचित्त पर सचित्त रखा हुआ सचित्त पर अचित्त रखा हुआ अचित्त पर अचित्त रखा हुआ । ३. मिश्र पर मिश्र रखा हुआ अचित्त पर मिश्र रखा हुआ मिश्र पर अचित्त रखा हुआ । सचित्त पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वाऊकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय, हरएक पर सचित्त रखा हो उसके छ भेद होते है, हरएक पर सचित्त रखा हो उसके छ भेद होते है, उस अनुसार अप्काय पर रखे छह भेद, तेऊकाय के छह भेद, वाऊकाय के छह भेद, वनस्पतिकाय के छह भेद और त्रसकाय के छह भेद कुल मिलाके ३६ भेद होते है । मिश्र पृथ्वीकाय आदि के ३६ भाँगा मिश्र पृथ्वीकाय आदि पर सचित्त पृथ्वीकाय आदि के ३६ भाँगा कुल १४४ भाँगा । इस प्रकार दुसरी और तीसरी चतुर्भंगी के १४४-१४४ भाँगा समजना कुल मिलाके ४३२ भेद होते है । पुनः इन हरएक में अनन्तर और परम्पर ऐसे भेद होते है । तान चतुर्भगी में दुसरी और तीसरी चतुर्भगी का चौथा भाँगा (अचित्त पर अचित्त) साधु को कल्पे । उसके अलावा भाँगा पर रहा न कल्पे । दुसरे मत से सचित्त पर सचित्त मिश्र रखा हुआ । अचित्त पर सचित्त मिश्र रखा हुआ। सचित्त मिश्र पर अचित्त रखा हुआ । अचित्त पर अचित्त रखा हुआ । इसमें भी पृथ्वीकायादि पर पृथ्वीकायादि के ३६-३६ भाँगा होते है । कुल १४४ भाँगा । पहले तीन भाँगा पर चीज साधु को न कल्पे, चौथा भाँगा पर रही चीज कल्पे । इसमें मिट्टी आदि पर सीधे पकवाना, मंड़क आदि रहे हो वो अनन्तर और बरतन में रहे पकवान आदि परम्पर पृथ्वीकाय निक्षिप्त

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