Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 231
________________ २३० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद चीज ज्यादा, आर्द्र में डालना, ज्यादा आर्द्र थोड़े आर्द्र में डालना, ज्यादा आर्द्र ज्यादा आर्द्र में डालना । हलके भाजन में जहाँ कम से कम, उसमें भी सूखा या सूखे में आर्द्र, आर्द्र में सूखा या आर्द्र में आर्द्र बदला जाए तो वो आचीर्ण चीज साधु को लेना कल्पे, उसके अलावा अनाचीर्ण चीज कल्पे । सचित्त और मिश्र भाँगा की एक भी चीज न कल्पे और फिर भारी भाजन से वदले तो भी न कल्पे । क्योंकि भारी बरतन होने से देनेवाले को उठाने में - रखने में श्रम लगे, दर्द होना मुमकीन है । और बरतन गर्म हो और शायद गिर जाए या तूट जाए तो पृथ्वीकाय आदि जीव की विराधना होती है । [६१४-६४३] नीचे बताए गए चालीस प्रकार के दाता के पास से उत्सर्ग मार्ग से साधु को भिक्षा लेना न कल्पे | बच्चा - आँठ साल से कम उम्र का हो उससे भिक्षा लेना न कल्पे। बुजुर्ग हाजिर न हो तो भिक्षा आदि लेने में कई प्रकार के दोष रहे है । एक स्त्री नई-नईं श्राविका बनी थी । एक दिन खेत में जाने से उस स्त्री ने अपनी छोटी बेटी को कहा कि, 'साधु भिक्षा के लिए आए तो देना ।' एक साधु संघाटक घुमते-घुमते उसके घर आए। बालिका वहोराने लगी । छोटी बच्ची को मुग्ध देखकर बड़े साधु ने लंपटता से बच्ची के पास से माँगकर सारी चीजे वहोर ली । माँ ने कहा था इसलिए बच्ची ने सब कुछ वहोराया । वो स्त्री खेत से आई तब कुछ भी न देखने से गुस्सा होकर बोली कि, क्यों सबकुछ दे दिया ?' बच्ची ने कहा कि, माँग-माँगकर सबकुछ ले लिया । स्त्री गुस्से हो गई और उपाश्रय आकर चिल्लाकर बोलने लगी कि, तुम्हारा साधु ऐसा कैसा कि बच्ची के पास से सबकुछ ले गए ? स्त्री का चिल्लाना सुनकर लोग इकट्ठे हो गए और साधु की निंदा करने लगे । 'यह लोग केवल वेशधारी है, लूटारे है, साधुता नहीं है ।' ऐसा-ऐसा बोलने लगे । आचार्य भगवंत ने शासन का अवर्णवाद होते देखा और आचार्य भगवंत ने उस साधु को बुलाकर, “फिर से ऐसा मतर करना' ऐसा कहकर ठपका दिया । इस प्रकार शासन का ऊड्डाह आदि दोष रहे है, इसलिए इस प्रकार बुजुर्ग की गैर-मौजुदगी में छोटे बच्चे से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद • वडील. आदि मोजुद हो और वो दिलवाए तो छेटे बच्चे से भी भिक्षा लेना कल्पे । वृद्ध - ६० साल मतांतर से ७० साल की उम्रवाले वृद्ध से भिक्षा लेना न कल्पे । क्योंकि काफी वृद्ध से भिक्षा लेने में कई प्रकार के दोष रहे है । बुढ़ापे के कारण से उसके मुँह से पानी नीकल रहा हो इसलिए देते-देते देने की चीज में भी मुँह से पानी गिरे, उसे देखकर - जुगुप्सा होती है कि, 'कैसी बूरी भिक्षा लेनेवाले है ?' हाथ काँप रहे तो उससे चीज गिर जाए उसमें छह काय जीव की विराधना होती है । वृद्ध होने से देते समय खुद गिर जाए, तो जमीं पर रहे जीव की विराधना होती है, या वृद्ध के हाथ-पाँव आदि तूट जाए या ऊतर जाए । वृद्ध यदि घर का नायक न हो तो घर के लोगों को उन पर द्वेष हो कि यह वृद्ध सब दे देता है या तो साधु पर द्वेष करे या दोनों पर द्वेष करे । अपवाद - वृद्ध होने के बावजूद भी मुँह से पानी न नीकले, शरीर न काँपे, ताकतवर हो, घर का मालिक हो, तो उसका दिया हुआ लेना कल्पे । __ मत्त - दारू आदि पीया हो, उससे भिक्षा लेना न कल्पे । दारू आदि पीया होने से भान न हो, इसलिए शायद साधु को चिपक जाए या बकवास करे कि, अरे ! मुंडीआ ! क्यों यहाँ आए हो ? ऐसा बोलते हुए मारने के लिए आए या पात्रादि तोड़ दे, या पात्र में यूँक दे या देते-देते दारू का वमन करे, उससे कपड़े, शरीर या पात्र उल्टी से खरड़ित हो जाए ।

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