Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 241
________________ २४० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद शुभ ध्यान करने के लिए - भूखा साधु स्वाध्याय आदि शुभध्यान - धर्मध्यान न कर शके, अभ्यास किए गए सूत्र - अर्थ का परावर्तन करने में असमर्थ बने, इसलिए धर्मध्यान की हानि हो । इसलिए शुभ ध्यान करने के लिए साधु आहार खाए । प्राण को टिकाए रखने के लिए - भूखे हो तो शरीर की शक्ति नष्ट हो, जिससे शरीर को टिकाए रखने के लिए साधु आहार खाए । इर्यासमिति का पालन करने के लिए भूखे हो तो इर्यासमिति का अच्छी प्रकार से पालन न हो शके । इर्यासमिति का पालन अच्छी प्रकार से हो शके इसके लिए साधु आहार खाए । इन छह कारण से साधु आहार खाए, लेकिन देह का विशिष्ट वर्ण आकृति बने, स्वर मधुर बने, कंठ की मधुरता बने और अच्छे-अच्छे माधुर्य आदि स्वाद के लिए आहार खाए। शरीर का रूप, रस के लिए आहार लेने से धर्म का प्रयोजन नहीं रहने से कारणातिरिक्त नाम का दोष लगता है । ___ छह कारण से साधु आहार खाए वो दिखाया । अब छह कारण से साधु को आहार नहीं लेना चाहिए यानि उसे उपवास कहते है । 'आतंक बुखार हो या अजीर्ण आदि हआ हो तब आहार न ले । क्योंकि वायु, श्रम, क्रोध, शोक, काम और क्षत से उत्पन्न न होनेवाले बुखार में लंघन उपवास करने से देह को शुद्धि हो जाती है । उपसर्ग - रिश्तेदार दीआ छुड़ाने के लिए आए हो, तब आहार न खाए। आहार न लेने से रिश्तेदारों को ऐसा लगे कि, 'आहार नहीं लेंगे तो मर जाएंगे ।' इसलिए रिश्तेदार दीक्षा न छुड़ाए । राजा कोपायमान हुआ हो तो न खाए, या देव, मानव या तीर्यच सम्बन्धी उपसर्ग हुआ हो तो उपसर्ग सहने के लिए न खाए । ब्रह्मचर्य - ब्रह्मचर्य को बाधक मोह का उदय हुआ हो तो न खाए । भोजन का त्याग करने से मोहोदय शमन होता है । जीवदया - बारिस होती हो, बँदे गिरती हो, सचित्त रज या धुमस आदि गिरता हो या समूर्छिम मेढ़क आदि का उद्भव हो गया हो तो उन जीव की रक्षा के लिए खुद से उन जीव को विराधना न हो इसलिए उपाश्रय के बाहर नीकले । आहार न खाए यानि उपवास करे जिससे गोचरी पानी के लिए बाहर न जाना पड़े और अपकायादि जीव की विराधना से बच शके । तप-तपस्या, करने के लिए । (श्री महावीर स्वामीजी भगवंत के शासन में उत्कृष्ट छह महिने का उपवास का तप बताया है ।) उपवास से लेकर छह महिने के उपवास करने के लिए आहार न खाए । शरीर का त्याग करने के लिए - लम्बे अरसे तक चारित्र पालन किया, शिष्य को वाचना दी, कई लोगों को दीक्षा दी, अंत में बुढ़ापे में ‘सभी अनुष्ठान' में मरण अनशन आराधना अच्छे है, इसलिए उसमें कोशिश करनी चाहिए ।' ऐसा समजकर आहार त्याग करनेवाले देह का त्याग करे । देह का त्याग करने के लिए आहार न ले ) [७१२-७१३] इस आहार की विधि जिस अनुसार सर्व भाव को देखनेवाले तीर्थंकर ने बताई है । उस अनुसार मैंने समज दी है । जिससे धर्मावशयक को हानि न पहुँचे ऐसा करना । शास्त्रोक्त विधि के अनुसार राग-द्वेष बिना यतनापूर्वक व्यवहार करनेवाला आत्मकल्याण की शुद्ध भावनावाले साधु का यतना करते हुए जो कुछ पृथ्वीकायादि की संघट्ट आदि विराधना हो तो वो विराधना भी निर्जरा को करनेवाली होती है । लेकिन अशुभ कर्म बँधन करनेवाली नहीं होती । क्योंकि जो किसी विराधना होती है, उसमें आत्मा का शुभ अध्यवसाय होने से अशुभ कर्म के बंधन के लिए नहीं होती । लेकिन कर्म की निर्जरा करवानी है । ४१/२ पिंडनियुक्ति - मूलसूत्र-२/२-का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण | भाग-११-हिन्दी अनुवाद पूर्ण |

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