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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
गुर्विणी - पास में प्रसवकाल - गर्भ रहे नौ महिने हुए हो ऐसे गर्भवाली स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे । गर्भवाली स्त्री से भिक्षा लेने में स्त्री को उठते-बैठते भीतर रहे गर्भ के जीव को दर्द होता है, इसलिए उनसे भिक्षा मत लेना । अपवाद गर्भ रहे नौ महिने न हुए हो, भिक्षा देने में कष्ट न हो, बैठी हो तो बैठे-बैठे और खड़ी हो तो खड़े-खड़े भिक्षा दे तो कल्पे । जिनकल्पी साधु के लिए तो जिस दिन गर्भ रहे उसी दिन से लेकर जब तक बच्चा माँ का दूध पीता हो तब तक उस स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे ।
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बालवत्सा - माँ का दूध पीता हुआ बच्चा गोद में हो और माँ बच्चे को छोड़कर भिक्षा दे तो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । बच्चे को जमी पर या माँची में रखकर भिक्षा दे तो शायद उस बच्चे को बिल्ली या कूत्ता आदि माँस का टुकड़ा या खरगोश का बच्चा समजकर मुँह से पकड़कर ले जाए तो बच्चा मर जाए । भिक्षा देते समय उस स्त्री के हाथ खरड़ित हो उन कर्कश हाथ से बच्चे को वापस हाथ में लेने से बच्चे को दर्द हो इत्यादि दोष के कारण से उन स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद बच्चा बड़ा हो, स्तनपान न करता हो तो ऐसी स्त्री से भिक्षा लेना कल्पे । क्योंकि वो बड़ा होने से उसे उठा ले जाना मुमकीन नहीं है ।
भोजन कर रहे हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । भोजन कर रहे हो और भिक्षा देने के लिए उठे तो हाथ धोए तो अपकाय आदि की विराधना होती है । हाथ साफ किए बिना दे तो लोगों में जुगुप्सा हो कि, 'झूठी भिक्षा लेते है ।' इसलिए भोजन करते हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - हाथ झूठे न हुए हो या भोजन करने की शुरूआत न की हो तो उनसे भिक्षा लेना कल्पे ।
मथ्नंती - दहीं वलोती हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । दहीं आदि वलोती हो तो वो संसक्त हो तो वो संसक्त दहीं आदि से खरड़ित हाथ से भिक्षा देने से वो रस जीव का विनाश हो इसलिए उनके हाथ से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - वलोणा पूरा हो गया हो और हाथ सूखे हो तो लेना कल्पे या फिर वलोणा में हाथ न बिगाड़े हो तो लेना कल्पे । भजंती - चूल्हे पर तावड़ी आदि में चने आदि पकाती हो तो भिक्षा न कल्पे । अपवाद - चूल्हे पर से तावड़ी उतार ली हो या संघट्टो न हो तो कल्पे । दलंती - चक्की आदि में आँटा पिसती हो तो भिक्षा लेना न कल्पे ।
अपवाद - साँबिल ऊपर किया हो और साधु आ जाए तो उठाए हुए सॉंबिल में कण न चिपके हो तो सॉंबिल निर्जीव जगह में रखकर दो तो लेना कल्पे ।
पिसंती - पत्थर, खाणीया आदि में पिसती हो वो भिक्षा न कल्पे । अपवाद - पिस लिया हो, सचित्त का संघट्टो न हो उस समय साधु आए और दे तो लेना कल्पे । पिजंती - रूई अलग करती हो तो लेना न कल्पे ।
रूचंती - कपास में से रूई अलग नीकालती हो तो लेना न कल्पे ।
कंत्तंती - रूई में से सुत्त बुनती हो तो लेना न कल्पे ।
मद्मणी
रूई की पुणी बनाती हो तो लेना न कल्पे ।
अपवाद - पिंजन आदि काम पूरा हो गया हो या अचित्त रूई को पिंजती हो तो भिक्षा ना कल्पे । या भिक्षा देने के बाद हाथ साफ न करे तो लेना कल्पे । यानि पश्चात् कर्मदोष न लगे ऐसा हो तो लेना कल्पे ।
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सचित्त पृथ्वीकाय आदि चीज (सचित्त नमक, पानी, अग्नि, पवन भरी बस्ती, फल, मत्स्य आदि) हाथ में हो तो भिक्षा लेना न कल्पे ।