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पिंड़नियुक्ति- -५५४
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पाँव धोने के बाद ही भोजन करवाया जाता है । फिर श्रावको ने तापसो के पाँव अच्छी प्रकार धोकर अच्छी प्रकार से खिलाया । फिर उन्हें छोड़ने के लिए सभी श्रावक उनके साथ नदी के किनारे पर गए । कुलपति अपने तापस के साथ नदी में उतरने लगा । लेकिन लेप न होने से पानी में डूबने लगा यह देखते ही लोगो को उनकी अप्रभ्राजना हुई कि 'अहो ! यह तो लोगों को धोखा देने के लिए लेप लगाकर नदी में जाते थे ।' इस समय तापस आदि के प्रतिबोध के लिए सूरिजी वहाँ आए और लोग सुने उस प्रकार बोले कि, 'हे कृष्णा ! हमें सामने के तट पर जाना है ।' वहाँ तो नदी के दोनों तट इकट्ठे हो गए । यह देखकर लोग एवं तापस सहित कुलपति आदि सबको ताजुब हुआ । आचार्यश्री का ऐसा प्रभाव देखकर देवशर्मा तापस ने अपने ४९९ तापस के साथ आचार्य भगवंत के पास दीक्षा ली । उनकी ब्रह्म नाम की शाखा बनी ।
अज्ञान लोग शासन की निंदा करते थे उसे टालने के लिए और शासन की प्रभावना करने के लिए सूरिजी ने किया यह उपयोग सही था, लेकिन केवल भिक्षा के लिए लेप आदि करना साधु को न कल्पे । उसमें भी संयम विराधना, आत्मविराधना, प्रवचन विराधना होती है ।
साधु ने भिक्षादि निमित्त से चूर्ण, योग, मूलकर्म आदि पिंड़ ग्रहण नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार करने में कई प्रकार के दोष रहे है । प्रयोग करने का पता चले तो साधु के प्रति द्वेष करे, ताड़न मारण करे । औषध आदि के लिए वनस्पतिकाय, पृथ्वीकाय आदि की विराधना हो । भिन्नयोनि करने से जिन्दगी तक उसे भोग का अंतराय होता है अक्षतयोनि करने से मैथुन सेवन करे । गर्भ गिराए इसलिए प्रवचन की मलीनता होती है। जीवहिंसा हो । इस प्रकार संयम विराधना, आत्मविराधना और प्रवचन विराधना आदि दोष होते है । इस लिए साधु को इस प्रकार की भिक्षा लेना न कल्पे । मूलकर्म करने से आत्मा नरक आदि दुर्गति में जाता है ।
[५५५-५६१] शास्त्र में तीन प्रकार की एषणा बताई है - गवेषणा, ग्रहण एषणा, ग्रास एषणा, गवेषणादोष रहित आहार की जाँच करना । ग्रहणएषणा दोष रहित आहार ग्रहण करना । ग्रास एषणा दोष रहित शुद्ध आहारक का विधिवत् उपयोग करना । उद्गम के सोलह और उत्पादन के सोलह दोष, यह बत्तीस दोष बताए उसे गवेषणा कहते है । गवेषणा का निरूपण पूरा हुआ ।
ग्रहण एषणा के दश दोष में आँठ दोष साधु और गृहस्थ दोनो से उत्पन्न होता है । दो दोष (शक्ति और अपरिणत ) साधु से उत्पन्न होते है ।
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ग्रहण
ग्रहण एषणा के चार निक्षेप प्रकार बताए है नाम ग्रहण एषणा, स्थापना - एषणा, द्रव्य ग्रहण एपणा, भाव ग्रहण एषणा । नाम ग्रहण एषणा ग्रहण एषणा नाम हो
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वो । स्थापना ग्रहण एषणा ग्रहण एषणा की स्थापना आकृति की हो वो । द्रव्य ग्रहण
एषणा तीन प्रकार से एषणा दो प्रकार से
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सचित्त, अचित्त या मिश्र चीज को ग्रहण करना वो । भाव ग्रहण आगम भावग्रहण एषणा और नोआगम भावग्रहण एषणा । आगम
ग्रहण एषणा से परिचित और उसमें उपयोगवाला । नोआगम भावग्रहण
भावग्रहण एषणा
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एषणा दो प्रकार से प्रशस्त भाव ग्रहण एषणा और अप्रशस्त भाव ग्रहण एषणा । प्रशस्त भावग्रहण एषणा सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र आदि । अप्रशस्त भावग्रहण एषणा शंकित
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