Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 187
________________ १८६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद करने से जो कि साधु खुद छह काय जीव का वध नहीं करता, लेकिन ऐसा आहार ग्रहण करने से अनुमोदना के द्वारा छह काय जीव के वध के पाप का भागी होता है । - [११७-२४०] संयमस्थान कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधः कर्म कहलाता है । संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण-स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव से सर्व विरति रूप छठ्ठे गुण स्थान पर रहे सबसे जघन्य विशुद्धस्थानवाले जीव की विशुद्धि अनन्तगुण अधिक है यानि सबसे नीचे के विशुद्धि स्थान में रहा साधु, सबसे ऊपर विशुद्धि स्थान में रहे श्रावक से अनन्त गुण ज्यादा है । जघन्य ऐसे वो सर्व विरति के विशुद्धि स्थान को केवलज्ञानी की दृष्टि से बुद्धि से बाँटा जाए और जिसका दुसरा हिस्सा न हो शके ऐसे अविभाज्य हिस्से किए जाए, ऐसे हिस्सो की सर्व गिनती के बारे में सोचा जाए तो, देश विरति के सर्व उत्कृष्ट विशुद्धि स्थान के यदि ऐसे अविभाज्य हिस्से हो उसकी सर्व संख्या को सर्व जीव की जो अनन्त संख्या है, उसका अनन्तवां हिस्सा, उसमें जो संख्या हो उस संख्या के दुगुने किए जाए और जितने संख्या मिले उतने हिस्सा सर्व विरति के सर्व जघन्य विशुद्धि स्थान में होते है । सर्व विरति गुणस्थान के यह सभी जघन्य विशुद्धि स्थान से दुसरा अनन्त हिस्सा वृद्धिवाला होता है । यानि पहले संयम स्थान में अनन्त हिस्से वृद्धि करे तब दुसरा संयम स्थान आए, उसमें अनन्त हिस्से वृद्धि करने से जो आता है वो तीसरा संयमस्थान, इस प्रकार अनन्त हिस्से वृद्धि तब तक करे जब तक उस स्थान की गिनती एक अंगुल के असंख्यात भागो में रहे प्रदेश की संख्या जितनी बने । अंगुल के असंख्यात भाग के प्रमाण आकाश प्रदेश में रहे प्रदेश की संख्या जितने संयम स्थान को, शास्त्र की परिभाषा में एक कंड़क कहते है । एक कंड़क में असंख्यात संयम स्थान का समूह होता है । इस प्रकार हुए प्रथम कंड़क के अंतिम संयम स्थान में जितने अविभाज्य अंश है उसमें असंख्यात भाग वृद्धि करने से जो संख्या बने उतने संख्या का दुसरे कंड़क का पहला स्थान बनता है । उसके बाद उससे दुसरा स्थान अनन्त हिस्सा ज्यादा आए ऐसे अनन्त हिस्से अधिक अनन्त हिस्से अधिक की वृद्धि करने से पूरा कंड़क बने, उसके बाद असंख्यात हिस्से ज्यादा ड़ालने से दुसरे कंड़क का दुसरा स्थान आता है । उसके असंख्यात हिस्से वृद्धि का तीसरा स्थान । इस प्रकार एक-एक कंड़कान्तरित असंख्यात हिस्से, वृद्धिवाले संयम स्थान एक कंड़क के अनुसार बने. उसके बाद, संख्यात हिस्से ज्यादा वृद्धि करने से संख्यात हिस्से अधिक का पहला संयमस्थान आता है । - उसके बाद अनन्त हिस्सा ज्यादा एक कंड़क के अनुसार एक एक असंख्यात हिस्से अधिक का संयमस्थान आए, वो भी कंड़क प्रमाण हो यानि संख्यात हिस्से अधिक का दुसरा संयम स्थान आता है । ऐसे क्रम-क्रम पर बीच में अनन्त हिस्सा अधिक कंड़क उसके बीच असंख्यात हिस्से अधिक स्थान आते है । जब संख्यात हिस्से अधिक संयम स्थान की गिनती भी कंड़क प्रमाण बने । उसके बाद संख्यातगुण अधिक पहला संयम स्थान आए उसके बाद कंड़क अंक प्रमाण अनन्त हिस्से वृद्धिवाले संयम स्थान आते है । उसके बाद एक असंख्यात हिस्से वृद्धिवाले संयम स्थान आए, ऐसे अनन्त हिस्से अधिक कंड़क के बीच असंख्यात हिस्से अधिकवाले कंड़क प्रमाण बने । उसके बाद पूर्व के क्रम से संख्यात हिस्से अधिक संयम स्थान का कड़क करना । वो कंड़क पूरा होने के बाद दुसरा संख्यातगुण अधिक का संयम

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