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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नहीं चाहिए । ऐसे घर में साधु भिक्षा के लिए न जाए । सूक्ष्म उत्सर्पण - भोजन माँगनेवाले बच्चे को स्त्री कहे कि, 'अभी चूप रहो । साधु घूमते-घूमते यहाँ भिक्षा के लिए आएंगे तब खड़े होकर तुम्हें खाना दूंगी । यह सुनकर भी वहाँ साधु न जाए । इसमें जल्द देना था उस साधु के निमित्त से देर होती है और साधु के निमित्त से आरम्भ होता है । साधु ने सुना न हो और बच्चा साधु की ऊँगली पकड़कर अपने घर ले जाना चाहे, साधु उसे रास्ते में पूछे । बच्चा - सरलता से बता दे । वहाँ सूक्ष्म उत्सर्पण प्राभृतिका दोष समजकर साधु को भिक्षा नहीं लेनी चाहिए ।
[३२६-३३३] साधु को वहोराने के लिए उजाला करके वहोराना यानि प्रादुष्करण दोष। प्रादुष्करण दो प्रकार से । १. प्रकट करना और २. प्रकाश करना । प्रकट करना यानि. आहार आदि अंधेरे में से लेकर उजाले में रखना । प्रकाश करना यानि, पकाना कि जो स्थान हो वहाँ जाली, दरवाजा आदि रखकर उजाला हो ऐसा करना । और रत्न, दीया, ज्योति से उजाला करना या उजाला करके अंधेरे में रही चीज को बाहर लाना । इस प्रकार प्रकाश करके दी गई गोचरी साधु को न कल्पे । लेकिन यदि गृहस्थ ने अपने लिए प्रकट किया हो या उजाला किया हो तो साधु को वो भिक्षा कल्पे । प्रादुष्करण दोषवाली गोचरी शायद अनजाने में आ गई हो और फिर पता चले कि उस समय लिया न हो या आधा लिया हो तो भी वो आहार परठवे फिर वो पात्र तीन बार पानी से धोकर, सूखाने के बाद उसमें दुसरा आहार लाना कल्पे शायद साफ करना रह जाए और उसमें दुसरा शुद्ध आहार लाए तो यह विशुद्ध कोटि होने से बाध नहीं है ।।
चूल्हा तीन प्रकार का होता है । अलग चूल्हा । जहाँ घुमाना हो वहाँ घुमा शके ऐसा, साधु के लिए बनाया हो, साधु के लिए घर के बाहर उजाले में बनाया हुआ चूल्हा हो । चूल्हा अपने लिए बनाया हो लेकिन साधु को लाभ मिले इस आशय से अंधेरे में से वो चूल्हा बाहर उजाले में लाया गया हो । यदि गृहस्थ ने इन तीन प्रकार के चूल्हे में से किसी एक चूल्हे पर भोजन पकाया हो तो दो दोष लगे । एक प्रादुष्करण और दुसरा पूतिदोष । चूल्हा अपने लिए बनाया हो और वो चूल्हा बाहर लाकर पकाया हो तो एक ही प्रादुष्करण दोष लगे । चूल्हा बाहर रखकर रसोई तैयार की हो वहाँ साधु भिक्षा के लिए जाए और पूछे कि, 'बाहर रसोई क्यों की है ?' सरल हो तो बता दे कि, अंधेरे में तुम भिक्षा नहीं लोगे, इसलिए चूल्हा बाहर लाकर रसोई बनाई है ।' ऐसा आहार साधु को न कल्पे । यदि गृहस्थ ने अपने लिए भीतर गर्मी लग रही हो या काफी मक्खियाँ हो इसलिए चूल्हा बाहर लाए हो और रसोई बनाई हो तो कल्पे ।
प्रकाश करने के प्रकार - दीवार में छिद्र करके । दरवाजा छोटा हो तो बड़ा करके । नया दरवाजा बनाकर । छत में छिद्र करके या उजाला आए ऐसा करके यानि नलिये हटा दे । दीप या बिजली करे । इस प्रकार गृहस्थ ने अपनी सुविधा के लिए किया हो तो वहाँ से आहार लेना कल्पे । लेकिन यदि साधु का लाभ मिले इसलिए किया हो तो साधु को आहार लेना न कल्पे । क्योंकि उजाला आदि करने से या भीतर से बाहर लाना आदि में पृथ्वीकायादि जीव की विराधना साधु निमित्त से हो इसलिए ऐसा प्रादुष्करण दोषवाला आहार साधु को नहीं वहोरना चाहिए ।
[३३४-३४३] साधु के लिए बिका हुआ लाकर देना क्रीतदोष कहलाता है । क्रीतदोष