Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ पिंड़नियुक्ति आगम भाव उत्पादना और नो आगम भाव उत्पादना । प्रशस्त आगम से भाव उत्पादना यानि उत्पादना के शब्द के अर्थ को जाननेवाले और उसमें उपयोगवाले । नो आगमसे भाव उत्पादना दो प्रकार से । प्रशस्त और अप्रशस्त अप्रशस्त उत्पादना यानि आत्मा को नुकशान करनेवाली कर्मबँध करनेवाली उत्पादना । वो सोलह प्रकार की यहाँ प्रस्तुत है । वो इस प्रकार धात्रीदोष धात्री यानि बच्चे का परिपालन करनेवाली स्त्री । भिक्षा पाने के लिए उनके जैसा धात्रीपन करना । जैसे कि बच्चे को खेलाना, स्नान कराना आदि । दूती दोष- भीक्षा के लिए परस्पर गृहस्थ के संदेशे लाना - ले जाना । निमित्त दोष- वर्तमान, भूत और भावि के आँठ प्रकार में से किसी भी निमित्त कहना । आजीविकादोष सामनेवाले के साथ अपने समान कुल, कला, जाति आदि जो कुछ हो वो प्रकट करना । वनीपकदोष - भिखारी के जैसा दीन आचरण करना । चिकित्सा दोष • दवाई देना या बताना । क्रोधदोष क्रोध करके भिक्षा लेना । मानदोष - मान करके भिक्षा लेना | मायादोष माया करके भिक्षा लेना । लोभदोप- लोभ रखकर भिक्षा लेना । संस्तवदोष पूर्व- संस्तव माता आदि का रिश्ता बनाकर भिक्षा लेना, पश्चात् संस्तवदोष -श्वसूर पक्ष के सांस ससूर आदि के सम्बन्ध से भिक्षा लाना । विद्यादोषी जिसकी स्त्री समान देवी अधिष्ठिता हो उसे विद्या कहते है, उसके प्रयोग आदि से भिक्षा लेना । मंत्रदोष जिसका पुरुष समान देव अधिष्ठित हो उसे मंत्र कहते है उसके प्रयोग आदि से भिक्षा लेना । चूर्णदोष, सौभाग्य आदि करनेवाला चूर्ण आदि के प्रयोग से भिक्षा लेना । योगदोष - आकाश गमनादि सिद्धि आदि के प्रयोग से भिक्षा लेना । मूलकर्मदोष, वशीकरण, गर्भशाटन आदि मूलकर्म के प्रयोग से भिक्षा लेना । धात्रीपन खुद करे या दुसरों से करवाए, दूतीपन खुद करे या दुसरों से करवाए यावत् वशीकरणादि भी खुद करे या दुसरों से करवाए और उससे भिक्षा पाए तो 'धात्रीपिंड़', 'दूतीपिंड़' आदि उत्पादना के दोष कहलाते है । उसका विशेष वर्णन बताया है । - -४४२ · - - · - - - - २१३ [ ४४३ - ४४४] बच्चे की रक्षा के लिए रखी गई स्त्री धात्री कहलाती है । वो पाँच प्रकार की होती है । बच्चे को स्तनपान करवानेवाली, बच्चे को स्नान करवानेवाली, बच्चे को वस्त्र आदि पहनानेवाली, बच्चे खेलानेवाली और बच्चे को गोद में रखनेवाली, आराम करवानेवाली । हरएक में दो प्रकार । एक खुद करे और दुसरा दुसरों से करवाए । [४४५-४६२] पूर्व परिचित घर में साधु भिक्षा के लिए गए हो, वहाँ बच्चे को रोता देखकर बच्चे की माँ को कहे कि, 'यह बच्चा सभी स्तनपान पर जिन्दा है, भूख लगी होगी इसलिए रो रहा है । इसलिए मुझे जल्द वहोराओ, फिर बच्चे को खिलाना या ऐसा कहे कि, पहले बच्चे को स्तनपान करवाओ फिर मुझे वहोरावो, या तो कहे कि, 'अभी बच्चे को खिला दो फिर मैं वहोरने के लिए आऊँगा ।' बच्चे को अच्छी प्रकार से रखने से बुद्धिशाली, निरोगी और दीर्घ आयुवाला होता है, जब कि बच्चे को अच्छी प्रकार से नहीं रखने से मूरख बिमार और अल्प आयुवाला बनता है । लोगों में भी कहावत है कि पुत्र की प्राप्ति होना दुर्लभ है इसलिए दुसरे सभी काम छोड़कर बच्चे को स्तनपान करवाओ, यदि तुम स्तनपान नहीं करवाओगे तो मैं बच्चे को दूध पिलाऊँ या दुसरो के पास स्तनपान करवाऊँ ।' इस प्रकार बोलकर भिक्षा ना वो धात्रीपिंड़ | इस प्रकार के वचन सुनकर, यदि वो स्त्री धर्मिष्ठ हो तो खुश हो । और साधु को अच्छा अच्छा आहार दे, प्रसन्न हुई वो स्त्री साधु के लिए आधाकर्मादि आहार भी

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242