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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
बनाए।
वो स्त्री धर्म की भावनावाली न हो तो साधु के ऐसे वचन सुनकर साधु पर गुस्सा करे। शायद बच्चा बिमार हो जाए तो साधु को निंदा करे, शासन का ऊड्डाह करे, लोगों को कहे कि, उस दिन साधु ने बच्चे को बुलाया था या दूध पीलाया था या कही ओर जाकर स्तनपान करवाया था इसलिए मेरा बच्चा बीमार हो गया । या फिर हे कि, यह साधु स्त्रीयों के आगे मीठा बोलता है या फिर अपने पत्ति को या दुसरे लोगों को कहे कि, यह साधु बूरे आचरणवाला है, मैथुन की अभिलाषा रखता है ।' आदि बाते करके शासन की हीलना करे । धात्रीपिंड़ में यह दोष आते है ।
भिक्षा के लिए घुमने से किसी घर में स्त्री को फिक्रमंद देखकर पूछे कि, क्यों आज फिक्र में हो ?' स्त्री ने कहा कि, जो दुःख में सहायक हो उन्हें दुःख कहा हो तो दुःख दूर हो शके । तुम्हें कहने से क्या ?' साधु ने कहा कि, मैं तुम्हारे दुःख में सहायक बनूँगा, इसलिए तुम्हारा दुःख मुझे बताओ । 'स्त्रीने कहा कि मेरे घर धात्री थी उसे किसी शेठ अपने घर ले गए, अब बच्चे को मैं कैसे सँभाल शकूँगी ? उसकी फिक्र है । ऐसा सुनकर साधु उससे प्रतिज्ञा करे कि, तुम फिक्र मत करना, मैं ऐसा करूँगा कि उस धात्री को शेठ अनुमति देंगे और वापस तुम्हारे पास आ जाएगी । मैं थोड़े ही समय में तुम्हें धात्री वापस लाकर दूँगा ।' फिर साधु उस स्त्री के पास से उस धात्री की उम्र, देह का नाप, स्वभाव, हुलियाँ आदि पता करके, उस शेठ के वहाँ जाकर शेठ के आगे धात्री के गुण-दोष इस प्रकार बोले कि शेठ उस धात्री को छोड़ दे । छोड़ देने से वो धात्री साधु के प्रति द्वेष करे, उड्डाह करे या साधु को मार भी डाले आदि दोष रहे होने से साधु को धात्रीपन नहीं करना चाहिए ।
यह क्षीर धात्रीपन बताया । उस अनुसार बाकी के चार धात्रीपन समज लेना । बच्चों से खेलना आदि करने से साधु को धात्रीदोष लगता है ।
श्री संगम नाम के आचार्य थे । वृद्धावस्था आने से उनका जंघाबल कमजोर होने से यानि चलने की शक्ति नहीं रहने से, कोल्लकिर नाम के नगर में स्थिरवास किया था । एक बार उस प्रदेश में अकाल पड़ने से श्री संगमसूरिजीने सिंह नाम के अपने शिष्य को. आचार्य पदवी दी, गच्छ के साथ अकालवाले प्रदेश में विहार करवाया और खुद अकेले ही उस नगर में ठहरे । आचार्य भगवंतने नगर में नौ भाग कल्पे, यतनापूर्वक मासकल्प सँभालते थे । इस अनुसार विधिवत् द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावपूर्वक ममता रहित संयम का शुद्धता से पालन करते थे ।
___एक बार श्री सिंहसूरिजीने आचार्य महाराज की खबर लेने के लिए दत्त नाम के शिष्य को भेजा । दत्तमुनि आए और जिस उपाश्रय में आचार्य महाराज को रखकर गए थे, उसी उपाश्रय में आचार्य महाराज को देखने से, मन में सोचने लगा कि, 'यह आचार्य भाव से भी मासकल्प नहीं सँभालते, शिथिल के साथ नहीं रहना चाहिए . ऐसा सोचकर आचार्य महाराज के साथ न ठहरा लेकिन बाहर की ओसरी में मुकाम किया । उसके बाद आचार्य महाराज को वंदना आदि करके सुख शाता के समाचार पूछे और कहा कि, आचार्य श्री सिंहसूरिजीने आपकी खबर लेने के लिए मुझे भेजा है ।' आचार्य महाराजने भी सुख शाता बताई और कहा कि, 'यहाँ किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं है आराधना अच्छी प्रकार से हो रही है ।' भिक्षा का समय होते ही आचार्य भगवंत दत्तमुनि को साथ लेकर गोचरी के लिए नीकले । अंतःप्रांत