Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 219
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद बौद्ध के भक्त के आगे वहाँ बौद्ध भिक्षुक भोजन करते हो तो उनकी प्रशंसा करे इस प्रकार तापस, परिव्राजक और गोशाल के मत के अनुयायी के आगे उनकी प्रशंसा करे । ब्राह्मण के भक्त के सामने कहे कि, 'ब्राह्मण को दान देने से ऐसे फायदे होते है । कृपण के भक्त के सामने कहे कि, 'बेचारे इन लोगो को कौन देगा । इन्हें देने से तो जगत में दान की जयपताका मिलती है । आदि ।' श्वान आदि के भक्त के सामने कहे कि, 'बैल आदि को तो घास आदि मिल जाता है, जब कि कुत्ते आदि को तो लोग हट् हट् करके या लकड़ी आदि मारकर नीकाल देते है । इसलिए बेचारे को सुख से खाना भी नहीं मिलता । काक, तोता आदि शुभाशुभ बताते है । यक्ष की मूरत के भक्त के सामने यक्ष के प्रभाव आदि का बँयान करे । २१८ इस प्रकार आहार पाना काफी दोष के कारण है । क्योंकि साधु इस प्रकार दान की प्रशंशा करे तो अपात्र में दान की प्रवृत्ति होती है और फिर दुसरों को ऐसा लगे कि यह साधु बौद्ध आदि की प्रशंसा करते है इसलिए जरुर यह धर्म उत्तम है ।' इससे जीव मिथ्यात्त्व में स्थिर हो, या श्रद्धावाला हो तो मिथ्यात्व पाए । आदि कईं दोष रहे है । और फिर यदि वो बौद्ध आदि का भक्त हो तो साधु को आधाकर्मादि अच्छा आहार बनाकर दे । इस प्रकार साधु रोज वहाँ जाने से बौद्ध की प्रशंसा करने से वो साधु भी शायद बौद्ध हो जाए । झूठी प्रशंसा आदि करने से मृषावाद भी लगे । यदि वो ब्राह्मण आदि साधु के द्वेषी हो तो बोले कि, 'इसको पीछले भव में कुछ नहीं दिया इसलिए इस भव में नहीं मिलता, इसलिए ऐसा मीठा बोलता है, कूत्ते की प्रकार दीनता दिखाता है, आदि बोले । इससे प्रवचन विराधना होती है, घर से निकाल दे या फिर से घर में न आए इसलिए झहर आदि दे । इससे साधु की मौत आदि हो । इसलिए आत्मविराधना आदि दोष रहे है । [४९४-४९८] किसी के घर साधु भिक्षा के लिए गए, वहाँ गृहस्थ बिमारी के इलाज के लिए दवाई के लिए पूछे, तो साधु ऐसा कहे कि, 'क्यां मैं वैद्य हूँ ? इसलिए वो गृहस्थ समजे कि, 'यह बिमारी के इलाज के लिए वैद्य के पास जाने के लिए कहते है ।' या फिर कहे कि, 'मुझे ऐसी बिमारी हुई थी और तब ऐसा इलाज किया था और अच्छा हो गया था । या फिर साधु खुद ही बिमारी का इलाज करे । इन तीन प्रकार से चिकित्सा दोष लगता है। इस प्रकार आहारादि के लिए चिकित्सा करने से कई प्रकार के दोष लगते है । जैसे कि - औषध में कंदमूल आदि हो, उसमें जीव विराधना हो । ऊबाल क्वाथ आदि करने से असंयम हो । गृहस्थ अच्छा होने के बाद तपे हुए लोहे की प्रकार जो किसी पाप व्यापार जीव वध करे उसका साधु निमित्त बने, अच्छा हो जाने पर साधु को अच्छा-अच्छा आहार बनाकर दे उसमें आधाकर्मादि कईं दोष लगे । और फिर उस मरीज को बिमारी बढ़ जाए या मर जाए तो उसके रिश्तेदार आदि साधु को पकड़कर राजसभा में ले जाए, वहाँ कहे कि, इस वेशधारी ने इसे मार डाला ।' न्याय करनेवाले साधु को अपराधी ठहराकर मृत्युदंड़ दे, उसमें आत्म विराधना । लोग बोलने लगे कि, 'इस साधु ने अच्छा आहार मिले ईस लिए यह इलाज किया है ।' इससे प्रवचन विराधना । इस प्रकार इलाज करने से जीव विराधना यानि संयम विराधना, आत्मविराधना और प्रवचन विराधना ऐसे तीन प्रकार की विराधना होती है । [४९९-५०२] विद्या- ओम्कारादि अक्षर समूह एवं मंत्र योगादि का प्रभाव, तप, चार

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