Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 217
________________ २१६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद से बताए । वो भी दो प्रकार से । लौकिक और लोकोत्तर । लौकिक प्रकट दूतीपन - दुसरे गृहस्थ को पता चल शके उस प्रकार से संदेशा कहे । लौकिक गुप्त दुतीपन - दुसरे गृहस्थ आदि को पता न चले उस प्रकार से निशानी से समजाए । लोकोत्तर प्रकट दूतीपन - संघाट्टक साधु को पता चले उस प्रकार से बताए । लोकोत्तर गुप्त दूतीपन - संघाट्टक साधु को पता न चले उस प्रकार से बताए । लोकोत्तर गुप्त दूतीपन कैसे होता है ? किसी स्त्री ने अपनी माँ को कहने के लिए संदेशा कहा । अब साधु सोचते है कि, 'प्रकट प्रकार से संदेशा कहूँगा तो संघाट्टक साधु को ऐसा लगेगा कि, 'यह साधु तो दूतीपन करते है । इसलिए इस प्रकार कहूँ कि, 'इस साधु को पता न चले कि 'यह दूतीपन करता है' ऐसा सोचकर वो साधु उस स्त्री की माँ के सामने जाकर कहे कि, 'तुम्हारी पुत्री जैन शासन की मर्यादा नहीं समज रही । मुझे कहा कि 'मेरी । इतना कहना । ऐसा कहकर जो कहा हो वो सब बता दे । यह सनकर उस स्त्री की माँ समज जाए और दुसरे संघाक साधु के मन में दुसरे खयाल न आए इसलिए उस साधु को भी कहे ‘मेरी पुत्री को मैं कह दूंगी कि इस प्रकार साधु को नहीं कहते ।' ऐसा कहने से संघाट्टक साधु को दूतीपन का पता न चले । सांकेतिक बोली में कहा जाए तो उसमें दुसरों को पता न चले । दूतीपन करने में कईं दोष रहे है ।। [४७०-४७३] जो किसी आहारादि के लिए गृहस्थ को वर्तमानकाल भूत, भावि के फायदे, नुकशान, सुख, दुःख, आयु, मौत आदि से जुड़े हुए निमित्त ज्ञान से कथन करे, वो साधु पापी है । क्योंकि निमित्त कहना पाप का उपदेश है । इसलिए किसी दिन अपना घात हो, दुसरों का घात हो या ऊभय का घात आदि अनर्थ होना मुमकीन है । इसलिए साधुको निमित्त आदि कहकर भिक्षा नहीं लेनी चाहिए । एक मुखी अपनी बीवी को घर में छोड़कर राजा की आज्ञा से बाहरगाँव गया था । उसके दौहरान किसी साधु ने निमित्त आदि कहने से मुखी की स्त्री को भक्त बनाया था । इसलिए वो अच्छा - अच्छा आहार बनाकर साधु को देती थी । बाँहरगाँव गए हुए काफी दिन होने के बावजूद भी पति वापस नहीं आने से दुःखी होती थी । इसलिए साधु ने मुखी की स्त्री का कहा कि, 'तुम क्यों दुःखी होते हो ? तुम्हारे पति बाहर के गाँव से आ चूके है, आज ही तुमको मिलेंगे । स्त्री खुश हो गई 1 अपने रिश्तेदारों को उनको लेने के लिए भेजा । इस ओर मुखीने सोचा कि, "छिपकर अपने घर जाऊँ और अपनी बीवी का चारित्र देखू कि, सुशीला है या दुशीला है ? लेकिन रिश्तेदारों को देखकर मुखी को ताज्जुब हुआ । पूछा कि, 'मेरे आगमन का तुमको कैसे पता चला ?' रिश्तेदारों ने कहा कि, 'तुम्हारी बीवी ने कहा इसलिए हम आए । हम दुसरा कुछ भी नहीं जानते ।' मुखी घर आया और अपनी बीवी को पूछा कि, 'मेरे आगमन का तुमको कैसे पता चला ?' स्त्री ने कहा कि, 'यहाँ मुनि आए है और उन्होंने निमित्त के बल से मुझे बताया था । मुखी ने पूछा कि, उनके ज्ञान का दुसरा कोई पुरावा है ?' स्त्री ने कहा कि, 'तुमने मेरे साथ जो चेष्टा की थी, जो बातें की थी और मैंने जो सपने देखे थे एवं मेरे गुप्तांग में रहा तिल आदि मुझे बताया, वो सब सच होने से तुम्हारा आगमन भी सच होगा, ऐसा मैंने तय किया था और इसलिए तुम्हें लेने के लिए सबको भेजा था । यह सुनते ही मुखी को जलन हुआ और गुस्सा हो गया । साधु के पास आकर गुस्से

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