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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
या चार भेद भी बताए है । उर्ध्व-मालापहृत, शींकु, छाजली या मजले पर से लाकर दे वो । अधो मालापहृत, भोयरें में से लाकर दे वो । उभय मालापहृत ऊँची कोठी हो उसमें से चीज नीकालने से पाँव के तलवे से ऊँचे होकर फिर मुँड़कर चीज नीकाल दे वो । तिर्यक् मालापहृत - जमी पर बैठे-बैठे गोख आदि में से कष्टपूर्वक हाथ लम्बा करके चीज लेकर दे वो । मालापहृत भिक्षा ग्रहण करने में देनेवाले को माल - छत पर चड़ने से भोयतलवे में जाने से - उतरने से कष्ट होने से, चड़ते-उतरते समय शायद गिर जाए, एवं शीका आदि में खुद देख शके ऐसा न हो तो वहाँ शायद साँप आदि इस ले, तो जीव विराधना (संयम - विराधना) प्रवचन विराधना आत्म विराधना आदि दोष रहे है ।
मालापहृत दोषवाली भिक्षा साधु को ग्रहण नहीं करनी चाहिए । क्योंकि शीका आदि पर से भिक्षा लेने के लिए पाँव ऊपर करने से या सीढ़ी चड़ने से पाँव खिसक जाए तो नीचे गिर जाए तो उसके हाथ-पाँव तूट जाए या मर जाए, नीचे चींटी आदि जीव-जन्तु हो तो दबने से मर जाए इसलिए संयम विराधना होती है । लोग निंदा करे कि, 'यह साधु ऐसे कैसे कि इसे नीचे गिराया ।' इसलिए प्रवचन विराधना और किसी गृहस्थ गुस्सा होकर साधु को मारे जिससे आत्मविराधना होती है ।
[३९५-४०६] दुसरों के पास से बलात्कार से जो अशन आदि छिनकर साधु को दिया जाए उसे आच्छेद्य दोष कहते है । आछेद्य तीन प्रकार से है | प्रभु - घर का नायक, स्वामिराजा या गाँव का मुखी, नायक और स्तेन - चोर । यह तीनों दुसरों से बलात्कार से छिनकर आहार आदि दे तो ऐसे अशन आदि साधु को लेना न कल्पे ।
प्रभु आछेद्य - मुनि का भक्त घर का नायक आदि अपने पुत्र, पुत्री, बीवी, बहूँ आदि से अशन आदि छिनकर उनकी इच्छा के खिलाफ साधु को दे । स्वामी अछिद्य - मुनि का भक्त गाँव का मालिक आदि अपने आश्रित की मालिक के अशन आदि छिनकर उनको मरजी के खिलाफ साधु को दे । स्तेन आछेद्य - साधु का भक्त या भावनावाला किसी चोर मुसाफिर से उनकी मरजी के खिलाफ अशन आदि छिनकर साधु को दे । ऐसा आहार आदि ग्रहण करने से उस चीज का मालिक साधु पर द्वेष रखे और इससे ताड़न मारण आदि का अवसर आए। इसलिए अच्छेद्य दोषवाली भिक्षा साधुने नहीं लेनी चाहिए ।
मालिक बलात्कार से अपने आश्रित आदि के पास से चीज लेकर साधु को दे तो चीज का मालिक नीचे के अनुसार व्यवहार करे । मालिक के प्रति गुस्सा हो और जैसे-तैसे बोलने लगे या साधु के प्रति गुस्सा हो । मालिकको कहे कि यह चीज दूध आदि पर मेरा हक्क है, क्यों बलात्कार से छिन लेते हो ? मैंने महेनत करके बदले में यह दूध पाया है । महेनत के बिना तुम कुछ नहीं देते आदि बोले ।' इसलिए आपस में झगड़ा हो, द्वेष बढ़े, स्वाले आदि शेठ आदि के वहाँ धन आदि की चोरी करे । आदि साधु निमित्त से दोष लगे। मुनि के प्रति द्वेष रखे, मुनि को ताड़न करे या मार डाले । चीज के मालिक को अप्रीति हो। वो चीज न मिलने से उसे अंतराय हो, इसलिए साधु को उसका दोष लगे । अलावा अदत्तादान का भी दोष लगे, इसलिए महाव्रत का खंडन हो ।
दुसरे किसी समय साधु को देखने से उन्हें ऐसा लगे कि, “ऐसे वेशवाले ने बलात्कार से मेरी चीज ले ली थी, इसलिए इनको नहीं देना चाहिए । इसलिए भिक्षा का विच्छेद होता है । उतरने के लिए स्थान दिया हो तो वो रोष में आने से साधु को वहाँ से नीकाल दे या