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________________ २०८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद या चार भेद भी बताए है । उर्ध्व-मालापहृत, शींकु, छाजली या मजले पर से लाकर दे वो । अधो मालापहृत, भोयरें में से लाकर दे वो । उभय मालापहृत ऊँची कोठी हो उसमें से चीज नीकालने से पाँव के तलवे से ऊँचे होकर फिर मुँड़कर चीज नीकाल दे वो । तिर्यक् मालापहृत - जमी पर बैठे-बैठे गोख आदि में से कष्टपूर्वक हाथ लम्बा करके चीज लेकर दे वो । मालापहृत भिक्षा ग्रहण करने में देनेवाले को माल - छत पर चड़ने से भोयतलवे में जाने से - उतरने से कष्ट होने से, चड़ते-उतरते समय शायद गिर जाए, एवं शीका आदि में खुद देख शके ऐसा न हो तो वहाँ शायद साँप आदि इस ले, तो जीव विराधना (संयम - विराधना) प्रवचन विराधना आत्म विराधना आदि दोष रहे है । मालापहृत दोषवाली भिक्षा साधु को ग्रहण नहीं करनी चाहिए । क्योंकि शीका आदि पर से भिक्षा लेने के लिए पाँव ऊपर करने से या सीढ़ी चड़ने से पाँव खिसक जाए तो नीचे गिर जाए तो उसके हाथ-पाँव तूट जाए या मर जाए, नीचे चींटी आदि जीव-जन्तु हो तो दबने से मर जाए इसलिए संयम विराधना होती है । लोग निंदा करे कि, 'यह साधु ऐसे कैसे कि इसे नीचे गिराया ।' इसलिए प्रवचन विराधना और किसी गृहस्थ गुस्सा होकर साधु को मारे जिससे आत्मविराधना होती है । [३९५-४०६] दुसरों के पास से बलात्कार से जो अशन आदि छिनकर साधु को दिया जाए उसे आच्छेद्य दोष कहते है । आछेद्य तीन प्रकार से है | प्रभु - घर का नायक, स्वामिराजा या गाँव का मुखी, नायक और स्तेन - चोर । यह तीनों दुसरों से बलात्कार से छिनकर आहार आदि दे तो ऐसे अशन आदि साधु को लेना न कल्पे । प्रभु आछेद्य - मुनि का भक्त घर का नायक आदि अपने पुत्र, पुत्री, बीवी, बहूँ आदि से अशन आदि छिनकर उनकी इच्छा के खिलाफ साधु को दे । स्वामी अछिद्य - मुनि का भक्त गाँव का मालिक आदि अपने आश्रित की मालिक के अशन आदि छिनकर उनको मरजी के खिलाफ साधु को दे । स्तेन आछेद्य - साधु का भक्त या भावनावाला किसी चोर मुसाफिर से उनकी मरजी के खिलाफ अशन आदि छिनकर साधु को दे । ऐसा आहार आदि ग्रहण करने से उस चीज का मालिक साधु पर द्वेष रखे और इससे ताड़न मारण आदि का अवसर आए। इसलिए अच्छेद्य दोषवाली भिक्षा साधुने नहीं लेनी चाहिए । मालिक बलात्कार से अपने आश्रित आदि के पास से चीज लेकर साधु को दे तो चीज का मालिक नीचे के अनुसार व्यवहार करे । मालिक के प्रति गुस्सा हो और जैसे-तैसे बोलने लगे या साधु के प्रति गुस्सा हो । मालिकको कहे कि यह चीज दूध आदि पर मेरा हक्क है, क्यों बलात्कार से छिन लेते हो ? मैंने महेनत करके बदले में यह दूध पाया है । महेनत के बिना तुम कुछ नहीं देते आदि बोले ।' इसलिए आपस में झगड़ा हो, द्वेष बढ़े, स्वाले आदि शेठ आदि के वहाँ धन आदि की चोरी करे । आदि साधु निमित्त से दोष लगे। मुनि के प्रति द्वेष रखे, मुनि को ताड़न करे या मार डाले । चीज के मालिक को अप्रीति हो। वो चीज न मिलने से उसे अंतराय हो, इसलिए साधु को उसका दोष लगे । अलावा अदत्तादान का भी दोष लगे, इसलिए महाव्रत का खंडन हो । दुसरे किसी समय साधु को देखने से उन्हें ऐसा लगे कि, “ऐसे वेशवाले ने बलात्कार से मेरी चीज ले ली थी, इसलिए इनको नहीं देना चाहिए । इसलिए भिक्षा का विच्छेद होता है । उतरने के लिए स्थान दिया हो तो वो रोष में आने से साधु को वहाँ से नीकाल दे या
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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