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पिंडनियुक्ति-४०६
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कठोर शब्द सुनाए । आदि दोष रहे है । इस प्रकार गाँव का मालिक या चोर दुसरों से बलात्कार से लेकर भिक्षा दे तो वो भी साधु को न कल्पे ।
इसमें विशेषता इतनी कि किसी भद्रिक चोर ने साधु को देखते ही मुसाफिर के पास से हमारा भोजन आदि छिनकर साधु को दे । उस समय यदि वो मुसाफिर ऐसा बोले कि, अच्छा हुआ कि घी, खीचड़ी में गिर पड़ा ।' हमसे लेकर तुम्हें लेते है तो अच्छा हुआ । हमें भी पुण्य का लाभ मिलेगा ।' इस प्रकार बोले तो साधु उस समय वो भिक्षा ग्रहण करे । लेकिन चोर के जाने के बाद साधु उन मुसाफिर को कहे कि, यह तुम्हारी भिक्षा तुम वापस ले लो, क्योंकि उस समय चोरों के भय से भीक्षा ली थी, न लेते तो शायद चोर ही हमे सजा देता । इस प्रकार कहने से यदि मुसाफिर ऐसा कहे कि यह भिक्षा तुम ही रखे । तुम ही उपयोग करो, तुम ही खाओ, हमारी अनुमती है । तो उस भिक्षु साधु को खाना कल्पे । यदि अनुमति न दे तो खाना न कल्पे ।
[४०७-४१७] मालिक ने अनुमति न दी हो तो दिया गया ग्रहण करे वो अनिसृष्ट दोष कहलाता है । श्री तीर्थंकर भगवंतने बताया है कि, राजा अनुमति न दिया हुआ भक्तादि साधु को लेना न कल्पे । लेकिन अनुमति दी हो तो लेना कल्पे ।' अनुमति न दिए हुए कई प्रकार के है । वो १. मोदक सम्बन्धी, २. भोजन सम्बन्धी, ३. शेलड़ी पीसने का यंत्र, कोला आदि सम्बन्धी, ४. ब्याह आदि सम्बन्धी, ५. दूध, ६. दुकान घर आदि सम्बन्धी । आम तोर पर अनुमति न देनेवाले दो प्रकार के है । १. सामान्य अनिसृष्ट सभी ने अनुमति न दि हुई
और २. भोजन अनिसृष्ट - जिसका हक हो उसने अनुमति न दी हो । सामान्य अनिसृष्ट - चीज के कईं मालिक हो ऐसा | उसमें से एक देता हो लेकिन दुसरे को आज्ञा न हो; ऐसा सामान्य अनिसष्ट कहलाता है । भोजन अनिसष्ट - जिसके हक का हो उसकी आज्ञा बिना देते हो तो उसे भोजन अनिसृष्ट कहते है । इसमें चोल्लक भोजन अनिसृष्ट कहलाता है और बाकी मोदक, यंत्र संखड़ी आदि सामान्य अनिसृष्ट कहलाते है ।
भोजन अनिसृष्ट - दो प्रकार से । १. छिन्न और २. अछिन्न । छिन्न यानि खेत आदि में काम करनेवाले मजदूर आदि के लिए भोजन बनवाया हो और भोजन सबको देने के लिए अलग-अलग करके रखा हो, बाँटा हुआ । अछिन्न - यानि सबको देने के लिए इकट्ठा हो लेकिन बँटवारा न किया हो । बँटवारा न किया हो उसमें - सबने अनुमति दी और सबने अनुमति नहीं दी । सबने अनुमति दी हो तो साधु को लेना कल्पे । सभी ने अनुमति न दी तो न कल्पे । बाँटा हुआ - उसमें जिसके हिस्से में आया हो वो व्यक्ति साधु को दे तो साधु को लेना कल्पे । उसके अलावा न कल्पे ।
सामान्य और भोजन अनिसृष्ट में फर्क - सामान्य और भोजन अनिसृष्ट में आम तोर पर पिंड़ का ही अधिकार है, इसलिए कोई भी भोजन हो, जिसके भीतर उन चीज पर हर कोई की मालिकी समान और मुखिया हो तो सामान्य कहलाता है, जब कि भोजन अनिसृष्ट में उस चीज का राजा, परिवार आदि का एक मौलिक और गौण से यानी एक की प्रकार दुसरे भी काफी होते है । सामान्य अनिसृष्ट में पहले हरएक स्वामी ने भोजन देने की हा न कही हो लेकिन पीछे से आपस में समजाने से अनुज्ञा दे तो वो आहार साधु को लेना कल्पे । यदि एक को वहोराने के लिए अनुमति देकर सर्व मालिक कहीं और गए हो उस कारण से उनकी मालिक की गैर मोजुदगी में भी वो भिक्षा ग्रहण कर शके । 1114