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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
हाथी को खाने के लिए चीज बनाई हो । हाथी का महावत् वो चीज मुनि को दे तो वो लेना न कल्पे । यदि ग्रहण करे तो इस प्रकार दोष लगे । हाथी का भोजन राजा का भोजन इसलिए वो राजपिंड़ कहलाता है । राजा की आज्ञा नहीं होने से मुनि ने लिया हो तो राजा साधु को कैद करे, मारे या कपड़े उतार ले । हाथी के आहार में इतना अंतराय लगे । इसलिए अंतराय जन्यपाप लगे । हाथी के महावत पर राजा क्रोधित हो । मेरी आज्ञा के सिवा साधु को क्यों दिया ? इसलिए शायद महावत को अनुमति दे कि दंड़ करे, साधु के कारण से महावत की नौकरी चली जाए । अदत्तादान का दोष साधु को लगे । महावत अपना पिंड़ भी हाथी के सामने दे तो हाथी को ऐसा लगे कि, 'मेरे भोजन में से यह मुंड़िया हररोज ग्रहण करता है । इस कारण से हाथी क्रोधित हो और रास्ते में किसी समय साधु को देखते ही साधु को मार डाले या उपाश्रय तोड़ दे ।
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[४१८-४२२] पहले अपने लिए रसोई करने की शुरूआत की हो, फिर साधु आए है जानकर रसोई में दुसरा ड़ाला जाए तो अध्यवपूरक दोषवाला कहलाता है । प्रथम खुद के लिए पकाने की शुरूआत की हो फिर पीछे से तीनो प्रकार में से किसी के लिए चावल आदि ओर डाले तो वो आहारादि अध्यपूरक दोषवाला होता है । अध्यपूरवक के तीन प्रकार है । स्वगृह यावदर्थिक मिश्र, स्वगृह साधु मिश्र, स्वगृह पाखंड़ी मिश्र । स्वगृह यावदर्थिक मिश्र स्वगृह यानि अपने घर के लिए और यावदर्थिक यानि किसी भिक्षु के लिए । पहले अपने लिए पकाने की शुरूआत की हो और फिर गाँव में कईं याचक, साधु, पाखंड़ी आदि आने का पता चलते ही, पहले शुरू की गई रसोई में ही पानी, चावल आदि ड़ालकर सबके लिए बनाया गया भोजन । स्वगृह साधु मिश्र - पहले अपने लिए पकाने की शुरूआत की हो फिर साधु के आने का पता चलते ही, रसोई में चावल, पानी डालकर अपने लिए और साधु के लिए रसोई करे, स्वगृह पाखंडी मिश्र पहले अपने लिए पकाने की शुरूआत की हो और फिर पाखंडी को देने के लिए पीछे से ओर ड़ालके तैयार किया गया भोजन । यावदर्थिक के लिए ड़ाला हुआ भोजन उसमें से दूर किया जाए तो बचा हुआ भोजन साधु को लेना कल्पे, जब कि स्वगृह और साधु मिश्र एवं स्वगृह और पाखंड़ी मिश्र में डाला हुआ अलग करने के बावजूद बचे हुए भोजन में से साधु को लेना न कल्पे, क्योंकि वो सारा आहार पूतिदोष से दोषित माना जाता है ।
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मिश्रदोष और अध्यवपूरक दोष में क्या फर्क - मिश्र नाम के दोष में पहले से ही अपने लिए और भिक्षु आदि दोनों का उद्देश रखकर पकाया हो, जब कि इस अध्यपूरक नाम के दोष में पहले गृहस्थ अपने लिए पकाने की शुरूआत करे और फिर उसमें भिक्षु आदि के लिए ओर ड़ाले ।
मिश्र और अध्यवपूरक की पहचान - मिश्र और अध्यपूर्वक दोष की परीक्षा रसोई के विचित्र परीणाम पर से की जाती है । जैसे कि मिश्र जात में तो पहले से ही साधु के लिए भी कल्पना होती है, इसलिए नाप जितने मसाले, पानी, अन्न आदि चाहिए ऐसा ड़ालकर ज्यादा पकाया हो, इसलिए भोजन के सौष्ठव में क्षति नहीं होती । लेकिन घर के लोग कम है और इतना सारा खाना क्यों ? वो सोचने से मिश्रजात दोष का ज्ञान हो शकता है । जब कि अध्यवपूरक में पीछे से पानी, मसाले, धान्य, सब्जी आदि मिलाने से चावल अर्धपक्व, दाल आदि के वर्ण, गंध, रस में फर्क पतलेपन आदि का फर्क होता है, इसलिए उस प्रकार