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पिंड़नियुक्ति- ३७५
वहाँ जाने में संघट्टा आदि हो जाए ऐसा होने से जा शके ऐसा न हो । तब सौ हाथ दूर रही चीज लाए तो वो साधु को लेना कल्पे । देनेवाला खड़ा हो या बैठा हो, थाली, तपेली आदि बरतन अपने हाथ में हो और उसमें से भोजन दे तो जघन्य क्षेत्र आचीर्ण कहलाता है । उसमें थोड़ी भी हिल-चाल रही है ।
जघन्य और उत्कृष्ट के बीच का मध्यम आचीर्ण कहलाता है । घर की अपेक्षा से तीन घर तक लाया हुआ । एक साथ तीन घर हो, वहाँ एक साधु एक घर में भिक्षा ले रहे हो तब और दुसरा संघाट्टक साधु दुसरे घर में एषणा का उपयोग रखते हो, तब तीन घर का लाया हुआ भी कल्पे । उसके अलावा आहार लेना न कल्पे ।
[३७६-३८५] साधु के लिए कपाट आदि खोलकर या तोड़कर दे । तो उद्भिन्न दोष । उद्भिन्न- यानि बँधक आदि तोड़कर या बन्ध हो तो खोले । वो दो प्रकार से । जार आदि पर बन्ध किया गया या ढँकी हुई चीज उठाकर उसमें रही चीज देना । कपाट आदि खोलकर देना । ढक्कन दो प्रकार के सचित्त मिट्टी आदि से बन्ध किया गया, बाँध हुआ या ढँका हुआ । अचित्त सूखा गोबर, कपड़े आदि से बाँधा हुआ ।
ढँकी हुई चीज को खोलकर देने में छह काय जीव की विराधना रही है । जार आदि चीज पर पत्थर रखा हो, या सचित्त पानी डालकर उससे चीज पर सील किया हो । जो लम्बे अरसे तक भी सचित्त रहे और फिर जीव वहाँ आकर रहे हो । साधु के लिए यह चीज खोलकर उसमें रहा घी, तेल आदि साधु को दे तो पृथ्वीकाय । अप्काय आदि नष्ट हो । उसकी निश्रा सजीव रहे हो तो उसकी भी विराधना हो । फिर से बन्ध करे उसमें पृथ्वीकाय, अप्काय, ते ऊकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय आदि की विराधना हो । लाख से सील करे उसमें लाख गर्म करने से तेऊकाय की विराधना, जहाँ अग्नि हो वहाँ वायु यकीनन हो इसलिए वायुकाय की विराधना, पृथ्वी आदि में अनाज के दाने या त्रस जीव रहे हो तो वनस्पतिकाय और काय की विराधना, पानी में डाले तो अप्काय की विराधना । इस प्रकार छ काय की विराधना हो । चीज खोलने के बाद उसमें रही चीज पुत्र आदि को दे, बेचे या नया लेकर उसमें डाले, इसलिए पापप्रवृत्ति साधु के निमित्त से हो, जार आदि सील न करे या खुला रह जाए तो उसमें चींटी, मक्खी, चूँहा आदि गिर जाए तो उसकी विराधना हो । अलमारी आदि खोलकर दिया जाए तो ऊपर के अनुसार दोष लगे, अलावा दरवाजा खोलते ही पानी आदि भरी हुई चीज भीतर हो तो गिर जाए या तूट जाए, पास में चूल्हा हो तो उसमें पानी जाए तो अग्निकाय और वायुकाय की विराधना हो, अलावा वहाँ रहे पृथ्वीकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय की भी विराधना हो । दरवाजा बन्द करने से छिपकली, चूँहा या किसी जीवजन्तु उसमें दब जाए या मर जाए । यह आदि संयम विराधना है । और फिर जार आदि खोलने से शायद वहाँ साँप, बिच्छु आदि हो तो खोलनेवाले को डँस ले । इसलिए लोग बोले कि, यह साधु भक्तादि में आसक्त हुए, आगे-पीछे के अनर्थ का नहीं सोचते ।' इसलिए प्रवचन विराधना । कोइ रोष में आ कर साधु को मारे, कूटे तो उससे आत्म-विराधना । इसलिए साधुने - उद्भिन्न दोषवाली भिक्षा नहीं ग्रहण करनी चाहिए ।
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[३८६-३९४] मालापहृत दो प्रकार से है १. जघन्य और उत्कृष्ट । पाँव का तलवा उपर करके शीका आदि में रही चीज दे तो जघन्य और उसके अलावा कोठी बड़े घड़े आदि में से या सीड़ी आदि पर चड़कर ला कर दे तो उत्कृष्ट मालापहृत ।
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