Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 202
________________ पिंडनियुक्ति-३१० २०१ शक्कर, मोरस, गुड़ आदि बनते है । जिस द्रव्य में फर्क नहीं पड़ता वो अविकारी । घी, गुड़ आदि । परम्परा स्थापना - विकारी द्रव्य, दूध, दही, छाछ आदि साधु को देने के लिए रखे । अनन्तर, स्थापना, अविकारी द्रव्य, घी, गुड़ आदि साधु को देने के लिए रखे । चिरकाल स्थापना - घी आदि चीज, जो उसके स्वरूप में फर्क हुए बिना जब तक रह शके तब तक साधु को देने के लिए रख दे । यह चिरकाल स्थापना उत्कृष्ट देश पूर्वकोटी साल तक होती है । यहाँ ध्यान में रखा जाए कि गर्भ से या जन्म से लेकिन आँठ वर्ष पूरे न हुए हो उसे चारित्र नहीं होता और पूर्वक्रोड़ साल से ज्यादा आयुवाले को भी चारित्र नहीं होता । इस कारण से चिरकाल स्थापना उत्कृष्ट आँठ वर्ष न्यून पूर्वक क्रोड़ वर्ष की शास्त्रकार ने बताई है। इत्वरकाल स्थापना - एक हार में रहे घर या घर में से जब एक घर से साधु भिक्षा लेते हो तब या उस साधु के साथ दुसरा संघाटक साधु पास - पास के जिन दो घरों में दोष का उपयोग रख शके ऐसा हो तो ऐसे दो घर में से गृहस्थ साधु को वहोराने के लिए आहार आदि हाथ में लेकर खड़ा रहे तो इत्त्वरकाल स्थापना । इस स्थापना में उपयोग रहने से (यदि आधाकर्मादि दुसरे दोष न हो तो) साधु को कल्पे । इसमें स्थापना दोष नहीं माना जाता, लेकिन उसके अलावा तीसरे आदि घर में आहार लेकर खड़े हो तो उस स्थापना दोषवाला आहार साधु को न कल्पे । साधु को देने के लिए आहारादि रखा हो और साधु न आए, इसलिए गृहस्थ को ऐसा लगे कि – “साधु नहीं आए इसलिए हम उपयोग कर ले ।' इस प्रकार यदि वो आहारादि में अपने उपयोग का संकल्प कर दे तो ऐसा आहार साध को कल्पे । [३११-३२५] साधु को वहोराने की भावना से आहार आदि जल्द या देर से बनाना प्राभृतिका कहते है । यह प्राभृतिका दो प्रकार की है । बादर और सूक्ष्म । उन दोनों के दोदो भेद है । अवसर्पण यानि जल्दी करना और उत्सर्पण यानि देर से करना । वो साधु समुदाय आया हो या आनेवाले हो उस कारण से अपने यहाँ लिए गए ग्लान आदि अवसर देर से आता हो तो जल्द करे और पहले आता हो तो देर से करे । बादर अवसर्पण - साधु समुदाय विहार करते-करते अपने गाँव पहुँचे । श्रावक सोचता है कि, 'साधु महाराज थोड़े दिन में विहार करके वापस चले जाएंगे, तो मुझे लाभ नहीं मिलेगा । इसलिए मेरे पुत्र-पुत्री के ब्याह जल्द करूँ । जिससे वहोराने का लाभ मिले । ऐसा सोचकर जल्द ब्याह करे | उसमें जो रसोई आदि बनाई जाए वो साध को न कल्पे | बादर उत्सर्पण - साधु के देर से आने का पता चले इसलिए सोचे कि ब्याह हो जाने के बाद मुझे कोई लाभ नहीं होगा । इसलिए ब्याह देर से करूँ, जिससे मुझे भिक्षा आदि का लाभ मिले ।' ऐसा सोचकर शादी रुकवा दे । उसमें जो पकाया जाए वो साधु को न कल्पे । सूक्ष्म अवसर्पण - किसी स्त्री चरखा चलाती हो, खांडती हो या कोई काम करती हो तब बच्चा रोते - रोते खाना माँगे तब वो स्त्री बच्चे को कहे कि, अभी मैं यह काम कर रही हूँ, वो पूरा होने के बाद तुम्हें खाना दूंगी इसलिए रोना मत । इस समय गोचरी के लिए आए हए साधु सुने तो वो उस घर में गोचरी के लिए न जाए | क्योंकि यदि जाए तो वो स्त्री गोचरी देने के लिए खड़ी हो, साधु को वहोराकर उस बच्चे को भी खाना दे इसलिए जल्दी हुआ । फिर हाथ आदि धोकर काम करने के लिए बैठे, इसलिए हाथ धोना आदि का आरम्भ साधु के निमित्त से हो या साधु ने न सुना हो और ऐसे ही चले गए तब बच्चा बोल उठे कि, 'क्यों तुम तो कहती थी न जल्द से खड़ी हो गई ?' वहाँ सूक्ष्म अपसर्पण समजकर साधु को लेना

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