Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 194
________________ पिंडनियुक्ति-११७-२४० १९३ तो वो चीज खाने के लायक नहीं रहती । ऐसे शुद्ध आहार में आधाकर्मी आहार गिर जाए या उसमें मिल जाए तो वो शुद्ध आहार भी उपयोग करने के लायक नहीं रहता और उस पात्र को भी गोबर आदि घिसकर तीन बार धोने के बाद उस पात्र में दुसरा आहार लाना कल्पे । आधाकर्म खाने में कौन-से दोष है ? आधाकर्मी आहार ग्रहण करने में - १. अतिक्रम, २. व्यतिक्रम, ३. अतिचार, ४. अनाचार, ५. आज्ञाभंग, ६. अनवस्था, ७. मिथ्यात्त्व और ८. विराधना दोष लगता है । अतिक्रम - आधाकर्मी आहार के लिए न्यौता सुने, ग्रहण करनेवाले की इच्छा बताए या निषेध न करे और लेने जाने के लिए कदम न उठाए तब तक अतिक्रम नाम का दोष लगता है व्यतिक्रम - आधाकर्मी आहार लेने के लिए वसति उपाश्रय में से नीकलकर गृहस्थ के वहाँ जाए और जब तक आहार ग्रहण न करे तब तक व्यतिक्रम नाम का दोष लगता है । अतिचार - आधाकर्मी आहार ग्रहण करके वसति में आए, खाने के लिए बैठे और जब तक नीवाला मुँह में न जाए तब तक अतिचार नाम का दोष लगता है । अनाचार - आधाकर्मी आहा का नीवाला मुँह में डालकर नीगल जाए तब अनाचार नाम का दोष लगता है । अतिक्रम आदि दोष उत्तरोत्तर ज्यादा से ज्यादा चारित्रधर्म का उल्लंघन करनेवाले उग्र दोष है । आज्ञाभंग - बिना कारण, स्वाद की खातिर आधाकर्मी खाने से आज्ञाभंग दोष लगता है । श्री तीर्थंकर भगवंत ने बिना कारण आधाकर्मी आहार खाने का निषेध किया है । अनवस्था - एक साधु दुसरे साधु को आधाकर्मी आहार खाते हुए देखे इसलिए उन्हें भी आधाकर्मी आहार खाने की इच्छा हो, उन्हें देखकर तीसरे साधु को इच्छी हो ऐसे परम्परा बढ़े ऐसे परम्परा बढ़ने से संयम का सर्वथा उच्छेद होने का अवसर आए । इसलिए अनवस्था नाम का दोष लगता है । मिथ्यात्व - दीक्षा ग्रहण करे तब साधु ने सभी सावध योग की प्रतिज्ञा त्रिविध-त्रिविध से की हो, आधाकर्मी आहार खाने में जीववध की अनुमति आ जाती है । इसलिए आधाकर्मी आहार नहीं खाना चाहिए । जब वो साधु दुसरे साधु को आधाकर्मी आहार खाते हुए देखे तो उनके मन में लगे कि, 'यह साधु असत्यवादी है, बोलते कुछ है और करते कुछ है । इसलिए उस साधु की श्रद्धा चलायमान बने और मिथ्यात्व पाए ।। ' विराधना - विराधना तीन प्रकार से | आत्मविराधना, संयम विराधना, प्रवचन विराधना। अतिथि की प्रकार साधु के लिए आधाकर्मी आहार, गृहस्थ गौरवपूर्वक बनाए, इसलिए स्वादिष्ट और स्निग्ध हो और इससे ऐसा आहार साधु आदि खाए । ज्यादा खाने से बिमारी आए, स्वाध्याय न हो, सूत्र-अर्थ का विस्मरण हो, भूल जाए । देह में हलचल होने से चारित्र की श्रद्धा कम हो, दर्शन का नाश हो । प्रत्युपेक्षणा की कमी यानि चारित्र का नाश । ऐसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र समान संयमी आत्मा की विराधना हुई । बिमारी में देखभाल करने में छह काय जीव की विराधना और वैयावच्च करनेवाले साधु को सूत्र अर्थ की हानि हो, इसलिए संयम विराधना । लम्बे अरसे की बिमारी में 'यह साधु ज्यादा खानेवाले है' खुद के पेट को भी नहीं पहचानते, इसलिए बिमार होते है आदि दुसरे लोग बोले । इसलिए प्रवचन विराधना। आधाकर्मी आहार खाने में इसी प्रकार दोष रहे है । इसलिए आधाकर्मी आहार नहीं खाना चाहिए । श्री जिनेश्वर भगवंत की आज्ञा का भंग करके जो साधु आधाकर्मी आहार खाते है, उस साधु को सद्गति दिलानेवाले अनुष्ठान रूप संयम की आराधना नहीं होती । लेकिन संयम का घात होने से नरक आदि दुर्गति में जाना होता है । इस लोक में राजा की आज्ञा का भंग

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