Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 199
________________ १९८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद औद्देशिक है या शुद्ध है ।' यदि भिक्षा देने के संकल्प पूर्वक ज्यादा पकाया हो तो प्रायः गृहस्थ देनेवाले की इस प्रकार की बोली, चेष्टा आदि हो । किसी साधु भिक्षा के लिए घर में प्रवेश करे तब घर का नायक अपनी पत्नी आदि के पास भिक्षा दिलाते हुए कहे या स्त्री बोले कि रोज की तय करने के अनुसार पाँच लोगों को भिक्षा दी गई है । या भिक्षा देते समय गिनती के लिए दीवार पर खड़ी या कोयले से लकीरे बनाई, हो या बनाती है, या तो 'यह एक को दिया ।' यह दुसरे को दिया रखा, उसमें से देना लेकिन इसमें से मत दे । या घर में प्रवेश करते ही साधु को सुनाई दे कि, 'इस रसोई में से भिक्षाचर को देने के लिए इतनी चीजे अलग करो ।' इस प्रकार बोलते हुए सुनने से, दीवार पर की लकीरे आदि पर छद्मस्थ साधु - यह आहार ओघ औद्देशिक है ।' इत्यादि पता कर शके और ऐसी भिक्षा ग्रहण न करे । यहाँ वृद्ध सम्प्रदाय से इतना ध्यान में रखो कि - उद्देश अनुसार देने की भिक्षा देने के बाद या उद्देश अनुसार अलग नीकाल लिया हो उसके अलावा बाकी रही रसोइ में से साधु को वहोराना कल्पे, क्योंकि वो शद्ध है ।। साधु को गोचरी के समय कैसा उपयोग रखना चाहिए ? गोचरी के लिए गए साधु ने शब्द, रूप, रस आदि में मूर्छा आसक्ति नहीं करनी चाहिए । लेकिन उद्गम आदि दोष की शुद्धि के लिए तैयार रहना, गाय का बछड़ा जैसे अपने खाण पर लक्ष्य रखता है ऐसे साधु को आहार की शुद्धि पर लक्ष्य रखना चाहिए । उद्दिष्ट - द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव इन चारों में देने का तय किया हो वो न कल्पे, उसके अलावा कल्पे । कुछ लोगों को देना और कुछ लोगों को न देना इस प्रकार बँटवारा किया हो तो उसमें से कोई संकल्प में साधु आ जाए तो वो न कल्पे । साधु न आए तो कल्पे । ओघ औद्देशिक या विभाग औद्देशिक चीज में यदि गृहस्थ अपना संकल्प कर दे तो वो चीज साधु को कल्पे । लेकिन कर्म औद्देशिक में यावदर्थिक किसी भी भिक्षुओं को छोड़कर दुसरे प्रकार के कर्म औद्देशिक में अपना संकल्प कर देने के बाद भी साधु को सहज भी न खपे। आधाकर्म और कर्म औद्देशिक यह दो दोष एक जैसे दिखते है, तो फिर उसमें क्या फर्क ? जो पहले से ही साधु के लिए बनाया हो उसे आधाकर्मी कहते है और कर्म औद्देशिक में तो पहल पहले अपने लिए चीज बनाई है, लेकिन फिर साधु आदि को देने के लिए उसे पाक आदि का संस्कार करके फिर से बनाए उसे के औद्देशिक कहते है ।। [२७३-२९४] पूर्तिकर्म दो प्रकार से है । एक सूक्ष्मपूति और दुसरी बादर पूति । सूक्ष्मपूति आगे बताएंगे । बादरपूति दो प्रकार से । उपकरणपूति और भक्तपानपूति । पूतिकर्म - यानि शुद्ध आहार के आधाकर्मी आहार का मिलना । यानि शुद्ध आहार भी अशुद्ध बनाए । पूति चार प्रकार से । नामपूति, स्थापनापूति, द्रव्यपूति और भावपूति । नामपूति - पूति नाम हो वो, स्थापनापूति - पूति स्थापन की हो वो । द्रव्यपूति - गोबर, विष्टा आदि बदबूवाले - अशुची चीजे । भावपूति - दो प्रकार से । सूक्ष्मभावपूति और बादर भावपूति । उन हरएक के उपर बताए हुए दो भेद - उपकरण और भक्तपान, ऐसे चार प्रकार से भावपूति । जो द्रव्य भाव को बूरे बनाए वो द्रव्य उपचार से भावपूति कहलाते है । उपकरण बादरपूति - आधाकर्मी 'चूल्हे पर पकाया हुआ या रखा हुआ या आधाकर्मभाजन, कड़छी, चमचे आदि में रहा शुद्ध आहार भी आधाकर्मी उपकरण के संसर्गवाला होने से वो उपकरण बादरपूति कहलाता है । चूल्हा आदि पकाने के साधन होने से उपकरण

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