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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
सबकुछ आधाकर्मी कहलाता है । वस्त्रादि भी साधु निमित्त से किया जाए तो उस साधु को वो सब भी आधाकर्मी - अकल्प्य बनता है । लेकिन यहाँ पिंड़ का अधिकार होने से अशन आदि चार प्रकार के आहार का ही विषय बताया है । अशन, पान, खादिम और स्वादिम यह चार प्रकार का आहार आधाकर्मी हो शकता है । उसमें कृत और निष्ठित ऐसे भेद होते है । कृत - यानि साधु को उद्देशकर वो अशन आदि करने की शुरूआत करना । निष्ठित यानि साधु को उद्देशकर वो अशन आदि प्रासुक अचित्त बनाना । शंका शुरू से लेकर अशन आदि आधाकर्मी किस प्रकार मुमकीन बने ? साधु को आधाकर्मी न कल्पे ऐसा पता हो या न हो ऐसा किसी गृहस्थ साधु ऊपर की अति भक्ति से किसी प्रकार उसको पता चले कि, 'साधुओं को इस प्रकार के आहार आदि की जरुर है ।' इसलिए वो गृहस्थ उस प्रकार का धान्य आदि खुद या दुसरों से खेत में बोंकर वो चीज बनवाए । तो शुरू से वो चीज आधाकर्मी कहलाती है ।
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अशन आदि शुरू से लेकर जब तक अचित्त न बने तब तक वो 'कृत्त' कहलाता है और अचित्त बनने के बाद वो 'निष्ठित' कहलाता है । कृत और निष्ठित में चतुर्भगी गृहस्थ और साधु को उद्देशकर होता है । साधु के लिए कृत (शुरू) और साधु के लिए निष्ठित । साधु के लिए कृत (शुरूआत ) और गृहस्थ के लिए निष्ठित । गृहस्थ के लिए कृत (शुरूआत ) और साधु के लिए निष्ठित, गृहस्थ के लिए कृत (शुरूआत ) और गृहस्थ के लिए निष्ठित । इन चार भांगा में दुसरे और चौथे भांगा में तैयार होनेवाला आहार आदि साधु को कल्पे । पहला और तीसरा भांगा अकल्प्य ।
साधु को उद्देशक ड़ाँगर बोना, क्यारे में पानी देना, पौंधा नीकलने के बाद लगना, धान्य अलग करना और चावल अलग करने के लिए दो बार किनार पर, तब तक का सभी कृत कहलाता है । जब कि तीसरी बार छड़कर चावल अलग किए जाए तब उसे निष्ठित कहते है । इसी प्रकार पानी, खादिम और स्वादिम के लिए समज लेना. तीसरी बार भी साधु के निमित्त से छड़कर बनाया गया चावल गृहस्थ ने अपने लिए पकाए हो तो भी साधु को वो चावल - हिस्सा न कल्पे, इसलिए वो आधाकर्मी ही माना जाता है । लेकिन ड़ाँगर दुसरी बार छड़ने तक साधु का उद्देश हो और तीसरी बार गृहस्थ ने अपने उद्देश से छड़े हो और अपने लिए पकाए हो तो वो चावल साधु को कल्प शकते है । जो ड़ाँगर तीसरी बार साधु ने छड़कर चावल बनाए हो, वो चावल गृहस्थ ने अपने लिए पकाए हो तो बने हुए चावल एक ने दूसरों को दिए, दुसरे ने तीसरे को दिया, तीसरे ने चौथे को दिया ऐसे यावत् एक हजार स्थान पर दिया गया हो तब तक वो चावल साधु को न कल्पे, लेकिन एक हजार के बाद के स्थान पर गे हो तो वो चावल साधु को कल्पे । कुछ आचार्य ऐसा कहते है कि, लाखो घर जाए तो भी न कल्पे ।
पानी के लिए साधु को उद्देशकर पानी के लिए कुआ खुदने की क्रिया से लेकर अन्त में तीन ऊँबाल आने के बाद जब तक नीचे न उतरा जाए तब तक क्रिया को कृत कहते है और नीचे उतरने की क्रिया को निष्ठित कहते है । इसलिए ऐसा तय होता है कि, 'सचित्त चीज को अचित्त बनाने की शुरूआत करने के बाद अन्त में अचित्त बने तब तक यदि साधु का उद्देश रखा गया हो तो वो चीज साधु को न कल्पे, लेकिन यदि साधु को उद्देशकर शुरू करने के बाद अचित्त बनने से पहले साधु का उद्देश बदलकर गृहस्थ अपने लिए चीज तैयार