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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[६२] हे क्षमा-श्रमण (पूज्य) मैं भावि में भी कृतिकर्म-वंदन करना चाहता हूँ | मैंने भूतकाल में जो वंदन किए उन वंदन में किसी ज्ञानादि आचार बिना किए हो, अविनय से किए हो आपने खुद मुझे वो आचार विनय से शीखाए हो या उपाध्याय आदि अन्य साधु मुझे उसमें कुशल बनाया हो, आपने मुझे शिष्य की तरह सहारा दिया हो, ज्ञानादि - वस्त्रादि देकर संयम के लिए सहारा दिया । मुझे हितमार्ग बताया, अहित प्रवृत्ति करने से रोका, संयम आदि में स्खलना करते हुए मुझे आपने मधुर शब्द से रोका, बार-बार बचाया, प्रेरणा देकर आपने बार-बार प्रेरणा की वो मुझे प्रीतिकर बनी है । अब मैं वो गलती सुधारने के लिए उपस्थित हुआ हूँ । आपके तप और तेज समान लक्ष्मी के द्वारा इस चार गति समान संसार अटवी में घुमते हुए मेरे आत्मा का संहरण करके उस संसार अटवी का पार पाऊँगा । उस आशय से मैं आपको मस्तक और मन के द्वारा वंदन करता हूँ । तब पूज्य श्री कहते है - तुम संसार समुद्र से पार पानेवाले बनो ।
अध्ययन -५ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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अध्ययन - ६ - पच्चकुखाण
[ ६३ ] वहाँ (श्रमणोपासको) - श्रावक पूर्वे यानि श्रावक बनने से पहले मिथ्यात्त्व छोड़ दे और सम्यक्त्व अंगीकार करे । उनको न कल्पे । (क्या न कल्पे वो बताते है) आजपर्यन्त अन्यतीर्थिक के देव, अन्य तीर्थिक की ग्रहण की हुई अरिहंत प्रतिमा को वंदन नमस्कार करना न कल्पे । पहले भले ही ग्रहण न की हो लेकिन अब वो (प्रतिमा) अन्यतीर्थिक ने ग्रहण की है । इसलिए उसके साथ आलाप-संलाप का अवसर बनता है । ऐसा करने से या अन्यतीर्थिक को अशन, पान, खादिम, स्वादिम देने का या पुनः पुनः जो देना पड़े, वो न कल्पे ।
जो कि राजा - बलात्कार - देव के अभियोग यानि कारण से या गुरु निग्रह से, कांतार वृत्ति से इस पाँच कारण से अशन आदि दे तो धर्म का अतिक्रमण नहीं होता ।
यह सम्यक्त्व प्रशस्त है । वो सम्यक्त्व मोहनीय कर्म का क्षय और उपशम से प्राप्त होता है । प्रशम, संवेग, निर्वेद अनुकंपा और आस्तिकय उन पाँच निशानी से युक्त है । उससे शुभ आत्म परीणाम उत्पन्न होता है ऐसा कहा है ।
श्रावक को सम्यक्त्व में यह पाँच अतिचार समजना, लेकिन आचरण न करना वो शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, परपाखंड़प्रशंसा, परवाखंड़संस्तव ।
[ ६४ ] श्रावक स्थूल प्राणातिपात का पच्चकखाण (त्याग) करे । वो प्राणातिपात दो तरह से बताया है । वो इस प्रकार संकल्प से और आरम्भ से । श्रावक को संकल्प हत्या का जावज्जीव के लिए पच्चक्खाण (त्याग) करे लेकिन आरम्भ हत्या का त्याग न करे । स्थूल प्राणातिपात विरमण के इस पाँच अतिचार समजना वो इस प्रकार - वध, बंध, छविच्छेद, अतिभार और भोजन, पान का व्यवच्छेद करे ।
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[ ६५ ] श्रावक स्थूल मृषावाद का पच्चक्खाण (त्याग) करे । वो मृषावाद पाँच तरीके से बताया है । कन्या सम्बन्धी झूठ, गो (चार पाँववाले) सम्बन्धी झूठ, भूमि सम्बन्धी झूठ, न्यासापहार यानि थापण पाना, झूठी गवाही देना, स्थूल मृषावाद से विरमित श्रमणोपासक यह पाँच अतिचार जानना । वो इस प्रकार सहसा अभ्याख्यान, रहस्य उद्घाटन, स्वपत्नी के मर्म प्रकाशित करना, झूठा उपदेश देना और झूठे लेख लिखना ।
[ ६६ ] श्रमणोपासक स्थूल अदत्तादान का पच्चकखाण करे यानि त्याग करे । वो