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ओघनियुक्ति-१०७
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नजदीक या कूए के पास लोगों को पूछे कि, 'गाँव में हमारा पक्ष है - है ?' उसको मालूम न हो तो पूछे कि, तुम्हारा पक्ष कौन-सा ? तब साधु बताए कि, जिन मंदिर, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका । यदि गाँव में जिन मंदिर हो तो पहले मंदिर में दर्शन करके फिर साधु के पास जाए । सांभोगिक साधु हो तो वंदन करके सुखशाता पूछे । कहे कि, आपके दर्शन के लिए ही गाँव में आए है । अब हमारे कुछ काम पर जाते हो । यदि वहाँ रहे साधु ऐसा बोले कि, 'यहाँ साधु बीमार है, उसे औषध कैसे दे, वो हम नहीं जानते ।' आया हुआ साधु को यदि पता हो तो औषध का संयोजन बताए और व्याधि शान्त हो तब विहार करे ।
[१०८-११३] ग्लानपरिचर्यादि – गमन, प्रमाण, उपकरण, शुकून, व्यापार, स्थान, उपदेश लेना ।
गमन :- बिमार साधु में शक्ति हो तो वैद्य के वहाँ ले जाए । यदि शक्ति न हो तो दुसरे साधु औषध के लिए वैद्य के वहाँ जाए । प्रमाण - वैद्य के वहाँ तीन, पाँच या साँत साधु का जाना । सगुन - जाते समय अच्छे सगुन देखकर जाना । व्यापार - यदि वैद्य भोजन करता हो, गड़गुमड़ काटता हो तो उस समय वहाँ न जाना । स्थान – यदि वैद्य कचरे के पास खड़ा हो उस समय न पूछे, लेकिन पवित्र स्थान में बैठा हो तब पूछे । उपदेश - वैद्य को यतनापूर्वक पूछने के बाद वैद्य जो कहे उसके अनुसार परिचर्या - सेवा करना । लाना- यदि वैद्य ऐसा कहे कि, बिमार को उठाकर वैद्य के वहाँ न ले जाना, लेकिन वैद्य को उपाश्रय में लाना ।
__ ग्लान साधु गाँव के बाहर ठल्ले जाता हो जाए तब तक वैयावच्चे करे, फिर वहाँ रहे साधु यदि सहाय दे तो उनके साथ, वरना अकेले आगे विहार करे ।
सांभोगिक साधु हो तो, दुसरे साधु को सामाचारी देखते विपरीत परीणाम न हो उसके लिए, अपनी उपधि आदि उपाश्रय के बाहर रखकर भीतर जाए । यदि बिमारी के लिए रूकना पड़े तो, दुसरी वसति में रहकर म्लान की सेवा करे । गाँव के पास गुजरनेवाला किसी पुरुष ऐसा कहे कि, 'तुम - ग्लान की सेवा करोगे ?' साधु कहे, 'हा करूँगा' वो कहे कि, 'गाँव में साधु ठल्ला, मात्रा से लीपिद है', तो साधु पानी लेकर ग्लान साधु के पास जाए और लोग देखे उस प्रकार से बिकड़े हुए वस्त्र आदि धुए ।
साधु वैद्यक जानता हो उस प्रकार से औषध आदि करे, न जानता हो तो वैद्य की सलाह अनुसार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से वैयावच्च करे ।
प्लान के कारण से एकाकी हुआ हो तो अच्छा होने पर उसकी अनुकूलता अनुसार साथ में विहार करे । निष्कारण एकाकी हुआ हो तो शास्त्र में बताये अनुसार ठपका दे ।
[११४-११८] गाँव में साध्वी रहे हो तो उपाश्रय के पास आकर बाहर से निसीहि कहे । यदि साध्वीयां स्वाध्याय आदि में लीन हो तो दुसरों के पास कहलाए कि 'साधु आए है' यह सुनकर साध्वी में मुखिया साध्वी स्थविरा वृद्ध हो तो दुसरे एक या उस साध्वी के साथ बाहर आए यदि तरूणी हो तो दुसरी तीन या चार वृद्ध साध्वी के साथ बाहर आए । साधु को अशन आदि निमंत्रणा करे । फिर साधु साध्वीजी की सुखशाता पूछे । किसी प्रकार की बाधा हो तो साध्वीजी बताए । यदि साधु समर्थ हो तो प्रत्यनीक आदि का निग्रह करे, खुद समर्थ न हो, तो दुसरे समर्थ साधु को भिजवा दे । किसी साध्वी बिमार हो तो उसे औषधि आदि की विनती करे । औषध का पता न हो तो वैद्य के वहाँ जाकर पूछकर लाए और साध्वी