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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[१०७५-१०७६] चोलपट्टा - स्थविर के लिए कोमल दो हाथ लम्बा, युवान के लिए स्थूल चार हाथ का गुह्येन्द्रिय ढूंकने के लिए जिससे साधु का चारित्र सँभाला जाता है ।
[१०७७-१०७८] संथारक - उत्तरपट्टक - जीव और धूल से रक्षा करने के लिए ढ़ाई हाथ लम्बा और एक हाथ चार अंगुल चौड़ा रखे । नीचे संथारिया बिछाकर उपर उत्तरपट्टो बिछाये । संथारो ऊनी और उत्तरपट्टा सूती रखे ।
[१०७९] निषद्या - जीव रक्षा के लिए, एक हाथ चौड़ा और रजोहरण जितना लम्बा। दो निषद्या रखना, एक अभ्यंतर और दुसरा बाह्य ।
[१०८०] औपग्रहिक उपधि वर्षाकल्प और पड़ला आत्मरक्षा एवं संयमरक्षा के लिए जो गोचरी आदि के लिए बाहर जाति हो उन्हें वर्षा में दो गुना रखने चाहिए । क्योंकि यदि एक रखे तो वो गीले हुए ओढ़ लेने से पेट का शूल आदि से शायद मर जाए, एवं अतिमलीन कपड़े ओढ़ रखे हो उस पर पानी गिरे तो अपकाय जीव को विराधना और फिर बाकी की उपधि तो एक ही रखे ।
[१०८१] कपड़े देह प्रमाण से लम्बे या छोटे जैसे भी मिले तो ऐसे ग्रहण करे, लेकिन लम्बे हो तो फाड़ न डाले और छोटे हो तो सीलाई न करे ।
[१०८२-१०८३] औपग्रहिक उपधि में हर एक साधु को दंड यष्टि और वियष्टि रखे एवं चर्म, चर्मकोश, छूरी, अस्त्रा, योगपट्टक और परदा आदि गुरु-आचार्य को ही औपग्रहिक उपधि में होते है, साधु को नहीं । इस प्रकार साधु को ओघ के अलावा तप संयम को उपकारक ऐसी उपानह आदि दुसरी औपग्रहिक उपधि समजे ।
[१०८४-१०९५] शास्त्र में दंड़ पाँच प्रकार के होते है – यष्टि-देह प्रमाण पर्दा बाँधने के लिए, वियष्टि-देह प्रमाण से चार अंगुल न्यून - नासिका तक उपाश्रय के दरवाजे की आड़ में रखने के लिए होता है । दंड़ - खंभे तक के ऋतुबद्धकाल में उपाश्रय के बाहर भिक्षा के लिए घूमने से हाथ में रखने के लिए । विदंड़ - काख प्रमाण वर्षाकाल में भिक्षा के लिए घुमने से ग्रहण किया जाता है । नालिका - पानी की गहराई नापने के लिए देह प्रमाण से चार अंगुल अधिक । यष्टि के लक्षण - एक पर्व की यष्टि हो तो तारीफवाली, दो पर्व की यष्टि हो तो कलहकारी, तीन पर्व की यष्टि हो तो फायदेमंद, चार पर्व की यष्टि हो तो मृत्युकारी। पाँच पर्व की यष्टि हो तो शान्तिकारी, रास्ते में कलह का निवारण करनेवाली, छह पर्व की यष्टि हो तो कष्टकारी, साँत पर्व की यष्टि हो तो निरोगी रहे । आँठ पर्व की यष्टि हो तो संपत्ति दूर करे । नौ पर्व को यष्टि हो तो जश करनेवाली । दश पर्व की यष्टि हो तो सर्व तरफ से संपदा करे । नीचे से चार अंगुल मोटी, ऊपर पकड़ने का हिस्सा आँठ अंगुल उपर रखे । दुष्ट जानवर, कुत्ते, दलदल एवं विषम स्थान से रक्षा के लिए यष्टि रखी जाती है । वो तप और संयम को भी बढ़ाते है । किस प्रकार ? मोक्ष प्राप्त करने के लिए ज्ञान पाया जाता है । ज्ञान के लिए शरीर, शरीर की रक्षा के लिए यष्टि आदि उपकरण है । पात्र आदि जो ज्ञान आदि के उपकार के लिए है, उसे उपकरण कहते है और जो ज्ञान आदि के उपकार के लिए न बने उसे सर्व अधिकरण कहते है ।
[१०९६-११००] उद्गम उत्पादन और एषणा के दोष रहित और फिर प्रकट जिसकी पडिलेहेणा कर शके ऐसी उपधि साधु रखे । संयम की साधना के लिए उपधि रखे । उस