Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 180
________________ १७९ नमो नमो निम्मलदसणस्स ४१/२ पिंडनियुक्ति मूलसूत्र-२/२-हिन्दी अनुवाद मोक्ष की प्राप्ति के लिए संयम जरुरी है । संयम साधना मनुष्य देह से होती है । शरीर टिकाए रखने के लिए आहार जरुरी है । यह आहार शुद्धि या निर्दोष आहार के लिए 'दसवेयालियं' सूत्र में पाँचवा पिडैषणा नामक अध्ययन है । उस पर श्री भद्रबाहुस्वामी की रची हुई पिंडनिज्जुति है । जिसमें भाष्य गाथा भी है और पू. मलयगीरी महाराज की टीका भी है। हिमने करीबन १३५ अंक पर्यत की नियुक्ति - भाष्य के अक्षरशः अनुवाद के बाद महसूस किया कि, साधु-साध्वी को प्रत्यक्ष और नितांत जरुरी ऐते इस आगम का गावाबद्ध अनुवाद करने की बजाय उपयोगीता मूल्य ज्यादा प्रतीत हो उस प्रकार से आवश्यकता के अनुसार थोड़ा विशेष सम्पादन - संकलन करके और जरूरत के अनुसार वृत्ति-टीका का सहारा लेकर यदि अनुवाद कीया जाए तो विशेष आवकार्य होगा । इसलिए गाथावद्ध अनुवाद न करते हुए विशिष्ट पदच्छेद के रूप में अनुवाद दिया है । क्षमायाचना सह-मुनिदीपरत्नसागर [१-१४] पिंड यानि समूह । वो चार प्रकार के - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। यहाँ संयम आदि भावपिंड उपकारक द्रव्यपिंड है । द्रव्यपिंड़ के द्वारा भावपिंड की साधना की जाती है । द्रव्यपिंड तीन प्रकार के है । आहार, शय्या, उपधि । इस ग्रंथ में मुख्यतया आहार पिंड़ के बारे में सोचना है । पिंड़ शुद्धि आँठ प्रकार से सोचनी है । उद्गम, उत्पादना, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम्र और कारण । उद्गम - यानि आहार की उत्पत्ति । उससे पेदा होनेवाले दोष उद्गमादि दोष कहलाते है, वो आधाकर्मादि सोलह प्रकार से होती है, यह दोष गृहस्थ के द्वारा उत्पन्न होते है । उत्पादना यानि आहार को पाना उसमें होनेवाले दोष उत्पादन आदि दोष कहलाते है, वो धात्री आदि सोलह प्रकार से होती है । यह दोष साधु के द्वारा उत्पन्न होते है । एषणा के - तीन प्रकार है । गवेषणा एषणा, ग्रहण एषणा और ग्रास एषणा। गवेषणा एषणा के आँठ प्रकार - प्रमाण, काल, आवश्यक, संघाट्टक, उपकरण, मात्रक, काऊस्सग, योग और अपवाद । प्रमाण - भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर दो बार जाना । अकाले ठल्ला की शंका हुई हो तो उस समय पानी ले । भिक्षा के समय गोचरी पानी ले । काल - जिस गाँव में भिक्षा का जो समय हुआ हो तब जाए । आवश्यक - ठल्ला मात्रादि की शंका दूर करके भिक्षा के लिए जाए । उपाश्रय के बाहर नीकलते ही 'आवस्सहि' कहे । संघाट्टक दो साधु साथ में भिक्षा के लिए जाए । उपकरण - उत्सर्ग से सभी उपकरण साथ लेकर भिक्षा के लिए जाए । सभी उपकरण साथ लेकर भिक्षा के लिए जाना समर्थ न हो तो पात्रा, पड़ला, रजोहरण, दो वस्त्र और दांडा लेकर गोचरी जाए । मात्रक - पात्र के साथ दुसरा मात्रक लेकर भिक्षा के लिए जाए । काऊस्सग करके आदेश माँगे ।'संदिसह' आचार्य कहे, 'लाभ' साधु कहे (कहं लेसु) आचार्य कहे (जहा गहियं पुव्वसाहूहिं) योग - फिर कहे

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