Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 183
________________ १८२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद धूम्र - बूरे आहार के या आहार बनानेवाले की निंदा करना । कारण - किस कारण से आहार खाना और किस कारण से न खाए ? पिंड़ - नियुक्ति के यह आँठ द्वार है । उसका क्रमसर बँयान किया जाएगा । [१५] द्रव्यपिंड़ तीन प्रकार का है । सचित्त, मिश्र और अचित्त । उन हरएक के नौ नौ प्रकार है । सचित्त के नौ प्रकार - पृथ्वीकायपिंड़, अप्कायपिंड़, तेऊकायपिंड़, वायुकाय पिंड़, वनस्पतिकाय पिंड़, दो इन्द्रिय पिंड़, तेइन्द्रिय पिंड़, चऊरिन्द्रिय पिंड़ और पंचेन्द्रिय पिंड (मिश्र में और अचित्त में भी नौ भेद समजे) । [१६-२२] पृथ्वीकाय पिंड़ - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से । निश्चय से सचित्त और व्यवहार से सचित्त । निश्चय से सचित्त - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि पृथ्वी, हिमवंत आदि महापर्वत का मध्य हिस्सा आदि । व्यवहार से सचित्त - जहाँ, गोमय, गोबर आदि न पड़े हो, सूर्य की गर्मी या मनुष्य आदि का आना-जाना न हो ऐसे जंगल आदि । मिश्र पृथ्वीकाय - क्षीर वृक्ष, वड़, उदुम्बर आदि पेड़ के नीचे का हिस्या यानि वृक्ष के नीचे का छाँववाला बैठने का हिस्सा मिश्र पृथ्वीकाय होता है । हल चलाई हुई जमीं आर्द्र हो वहाँ तक, गीली मिट्टी एक, दो, तीन प्रहर तक मिश्र होती है । ईंधन ज्यादा हो पृथ्वी कम हो तो एक प्रहर तक मिश्र । ईंधन कम हो पृथ्वी ज्यादा हो तो तीन प्रहर तक मिश्र । दोनों समान हो तो दो प्रहर तक मिश्र । अचित्त, पृथ्वीकाय, शीतशस्त्र, उष्णशस्त्र, तेल, क्षार, बकरी की लीड़ी, अग्नि, लवण, काँजी, घी आदि से वध की गई पृथ्वी अचित्त होती है । अचित्त पृथ्वीका का उपयोग - लूता स्फोट से हुए दाह के शमन के लिए शेक करने के लिए, सर्पदंश पर शेक करने के लिए, अचित्त नमक का, एवं बिमारी आदि में और काऊस्सग करने के लिए, बैठना, उठना, चलना आदि काम में उसका उपयोग होता है । [२३-४५] अप्काय पिंड़ - सचित्त मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त-धनोदधि आदि, करा, द्रह-सागर के बीच का हिस्सा आदि का पानी । व्यवहार से सचित्त । कुआ, तालाब, बारिस आदि का पानी । मिश्र अपकाय - अच्छी प्रकार न ऊँबाला हुआ पानी, जब तक तीन ऊँबाल न आए तब तक मिश्र । बारिस का पानी पहली बार भूमि पर गिरते ही मिश्र होता है । अचित्त अपकाय - तीन ऊँबाल आया हुआ पानी, एवं दुसरे शस्त्र आदि से वध किया गया पानी अचित्त हो जाता है । अचित्त अप्काय का उपयोग - शेक करना, तृषा छिपाना, हाथ, पाँव, वस्त्र, पात्र आदि धोने में उपयोग होता है । (यहाँ मूल नियुक्ति में वस्त्र किस प्रकार धोना, उसमें वडील आदि के कपड़े के क्रम की देखभाल पानी कैसे लेना आदि विधि भी है जो ओपनियुक्ति में भी आई ही है । इसलिए उस विशेषता यहाँ दर्ज नहीं की है।) [४६-४८] अग्निकाय पिंड़-सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से ईंट के नीभाड़े के बीच का हिस्सा एवं बिजली आदि का अग्नि । व्यवहार से - अंगारे आदि का अग्नि । मिश्र अग्निकाय - तणखा मुर्मुरादि का अग्नि । अचित्त अग्नि - चावल, कुर, सब्जि, ओसामण, ऊँबाला हुआ पानी आदि अग्नि से परिपक्व । अचित्त अग्निकाय का उपयोग - ईंट के टुकड़े, भस्म आदि का उपयोग किया जाता है । एवं आहार पानी आदि में उपयोग किया जाता है । अग्निकाय के शरीर दो प्रकार के होते है । बद्धलक और मुक्केलक । बद्धलक यानि अग्नि के साथ सम्बन्धित हो ऐसे । मुक्केलक अग्नि समान

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