Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 173
________________ १७२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद रजस्त्राण गुच्छो और तीन वस्त्र । [१०११-१०२७] स्थविर कल्पी की ओघ उपधि । चौदह भेद से है । ऊपर के अनुसार बारह के अलावा, १३ मात्रक, १४ चोलपट्टो । साध्वी के लिए पच्चीस प्रकार की - पात्र, झोली, नीचे का गुच्छा, पात्र-केसरिका, पड़ला, रजस्त्राण, गुच्छा, तीन कपड़े, ओघो, मुहपत्ति, मात्रक, कमंढ़क (खाने के लिए अलग पात्र 1) अवग्रहानन्तक (गुह्य हिस्से की रक्षा करने के लिए कोमल और मजबूत नाव समान | पट्टा (शरीर प्रमाण कटीबँध) अद्धोरूग । (आँधी जाँघ तक बिना सीए चड्डी जैसा) चलणी (जानु प्रमाण का साड़ा जैसा - नर्तकी के जैसा) दो निवसनी । अन्तनिर्वसनी अर्ध साँधक तक लम्बी, बहिर्निवसनि धुंटी तक लम्बी । कूचूक (बिना सिए) छाती ढंकने के लिए उपकक्षिका बाँई ओर से कंचुक ढूंकने के लिए वेकक्षिका (उपकक्षिका और कंचुक ढूंकने के लिए) संघाडी चार-दो हाथ चौड़ी समवसरण में व्याख्यान में खड़े रहकर, सिर से पाँव तक आच्छादन के लिए । स्कंधकरणी (चार हाथ के फैलाववाली, स्वरूपवान् साध्वी को खूधी करने के लिए ।) इन उपधि में कुछ उत्तम कुछ मध्यम और कुछ जघन्य प्रकार की गिनी जाती है । उसके विभाग नीचे के अनुसार है ।। [१०२८-१०३०] जिनकल्पी की उपधि में उत्तम, मध्यम और जघन्य । उत्तम चार - तीन वस्त्र और पात्रका, मध्यम चार - झोली, पड़ला, रजस्त्राण और ओधो । जघन्य चार - गुच्छो, नीचे का गुच्छो, मुहपत्ति और पात्र केसरिका । स्थविर कल्पी की उत्तम, मध्यम और जघन्य उपधि - उत्तम चार - तीन वस्त्र और पात्र । मध्यम छ - पड़ला, रजस्त्राण, झोली चोलपट्टो, ओघो और मात्रक । जघन्य चार - गुच्छो, नीचे का गुच्छो, मुहपत्ति और पात्र केसरिका । साध्वी की उत्तम, मध्यम और जघन्य उपधि । उत्तम आठ - चार संघाटिका, मुख्यपात्र, स्कंधकरणी, अन्तर्निवसनी और बहिर्निवसनी, मध्यम तेरह - झोली, पड़ला, रजस्त्राण, ओघो, मात्रक, अवग्रहानन्तक, पट्टो, अद्धोरूक, चलणी, कंचुक, उत्कक्षिका, वैकक्षिका, कमढ़क । जघन्य चार - गुच्छो, नीचे का गुच्छा, मुहपत्ति और पात्र पूजने की पात्र केसरिका । [१०३१-१०३७] ओघ उपधि का प्रमाण । १. पात्र, समान और गोल, उसमें अपनी तीन वेंत और चार अंगुल मध्यम प्रमाण है । इससे कम हो तो जघन्य, ज्यादा हो तो उत्कृष्ट प्रमाण गिना जाता हैं या अपने आहार जितना पात्र । ___ वैयावच्च करनेवाले आचार्य ने दीया हुआ या अपना नंदीपात्र रखे नगर का रोध या अटवी उतरते ही आदि कारण से इस नंदीपात्र का उपयोग करे । पात्रा मजबूत, स्निग्धवर्णवाला, पूरा गोल और लक्षणवाला ग्रहण करे । जला हुआ छिद्रवाला या झुका हुआ पात्र नहीं रखना चाहिए । छह काय जीव की रक्षा के लिए पात्र रखना पड़ता है । [१०३८-१०४५] लक्षणवाला - चारों ओर से समान, गोल, मजबूत, अपने स्निग्धवर्णवाला हो ऐसा पात्र ग्रहण करना चाहिए । बिना लक्षण के - ऊँच-नीच, झुका हुआ, छिद्रवाला हो वो पात्रा नहीं रखना चाहिए । समान गोल पात्रा से फायदा हो । मजबूत पात्र से गच्छ की प्रतिष्ठा हो । व्रणरहित पात्रा से कीर्ति और आरोग्य मिले । स्निग्ध वर्णवाले पात्रा

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