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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
तुम क्यों सूख रही हो, तुम्हें क्या दुःख है । रानीने सुवर्णमृग का माँस खाने की इच्छा की बात की । राजाने अपने आदमीओ को सुवर्णमृग को पकड़कर लाने का हुकूम किया । लोगोंने सोचा कि, सुवर्णमृग को श्रीपर्णी फल काफी प्रिय होते है । लेकिन अभी उन फलों की मौसम नहीं चल रही, इसलिए नकली फल बनाकर जंगल में गए और वहाँ वो नकली फल के अलग-अलग ढैर करके पेड़ के नीचे रखा । मृग ने यह देखा, नायक को बात की, सभी वहाँ आए, नायक ने वो फल देखे और सभी मृगों को कहा कि किसी धूतारेने हमें पकड़ने के लिए यह किया है, क्योंकि हाल में इन फलों की मौसम नहीं है । शायद तुम ऐसा कहोगे की बिना मौसम के भी फल आते है । तो भी पहले किसी दिन इस प्रकार ढैर नहीं हुए थे । यदि पवन से इस प्रकार ढैर हो गए होंगे ऐसा लगता हो तो पहले भी पवन चलता था लेकिन इस प्रकार ढैर नहीं हुए थे । इसलिए वो फल खाने के लिए कोई न जाए । इस प्रकार नायक की बात सुनकर कुछ मृग वो फल खाने के लिए न गए, जब फल खाने लगे तब राजा के आदमीओने उन्हें पकड़ लिया । इसलिए उनमें से कुछ मर गए और कुछ बँधे गए । जिसने वो फल नहीं खाए वो सुखी हो गए, मरजी से वन में घुमने लगे ।
भाव गवेषणा का दृष्टांत । (निर्बुक्ति में यहाँ धर्मरुचि अणगार का दृष्टांत है ।) किसी महोत्सव अवसर पर काफी साधु आए थे । किसी श्रावक ने या तो किसी भद्रिक पुरुषने साधु के लिए भोजन तैयार करवाया । और दुसरे लोगो को बुलाकर भोजन देने लगे उनके मन में यह था कि, यह देखकर साधु आहार लेने के लिए आएगे । आचार्य को इस बात का किसी भी प्रकार पता चल गया, इसलिए साधुओ को कहा कि, 'वहाँ आहार लेने के लिए मत जाना क्योंकि वो आहार आधाकर्मी है ।' कुछ साधु वहाँ आहार लेने के लिए न गए, लेकिन ज्योंत्यों कुल में से गोचरी लेकर आए, जब कुछ साधु ने आचार्य का वचन ध्यान में न लिया और वो आहार लाकर खाया । जिन साधुओ ने आचार्य भगवंत का वचन सुनकर, वो आधाकर्मी आहार न लिया, वो साधु श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा के आराधक बने और परलोक में महासुख पानेवाले बने । जो जो साधुने आधाकर्मी आहार खाया वो साधु श्री जिनेश्वर भगवंत की आज्ञा के विराधक बने और संसार बढ़ानेवाले बने । इसलिए साधु को निर्दोष आहार पानी आदि की गवेषणा करनी चाहिए । दोषित आहार पानी आदि का त्याग करना चाहिए | क्योंकि निर्दोष आहार आदि के ग्रहण से संसार का शीघ्र अन्त होता है । [ ७२४ -७२८] ग्रहण एषणा चार प्रकार से नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ग्रहण एषणा । द्रव्य ग्रहण एषणा एक जंगल में कुछ बंदर रहते थे । एक दिन गर्मी में उस जंगल के फल, पान आदि सूखे हुए देखकर बड़े बंदरने सोचा कि, दुसरे जंगल में जाए । दुसरे अच्छे जंगल की जांच करने के लिए अलग-अलग दिशा में कुछ बंदरो को भेजा । वो बंदर जांच करके आए फिर एक सुन्दर जंगल मैं सभी बंदर गए । उस जंगल में एक बड़ा ग्रह था । यह देखकर सबी बंदर खुश हो गए । बड़े बंदर ने उस ग्रह की चारो ओर जांच की, तो उस ग्रह में जाने के पाँव के निशान थे, लेकिन आने के पाँव के निशान दिखते न थे । इसलिए बड़े बंदर ने सभी बंदरो को इकट्ठा करके कहा कि, इस द्रह से सावध रहना, किनारे पर या उसमें जाकर पानी मत पीना लेकिन पोली नली के द्वारा पानी पीना । जीन बंदर ने बड़े बंदर के कहने के अनुसार किया वो सुखी हुई और जो द्रह में जाकर पानी पीने लगे वो मर गए । इस प्रकार आचार्य भगवंत महोत्सव आदि में आधाकर्मी उद्देसिक आदि दोषवाले आहार आदि