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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
पुरुष बाहर से, छीद्र में से या खिड़की में से या ऊपर से देख ले और वो आदमी चिल्लाकर दुसरे लोगों को बोले कि यहाँ आओ, यहाँ आओ, यह साधु पात्र में भोजन करते है ।' ऐसा हो तो साधु को क्या करना चाहिए ? गृहस्थ दूर हो तो थोड़ा खाए और ज्यादा वहाँ रहे खड्डे में डाल दे - छिपा दे या धूल से ढँक दे औ वो लोग आने से पहले पात्र साफ कर दे और स्वाध्याय करने में लग जाए । उन लोगो के पास आकर पूछे कि तुमने भिक्षा कहाँ की यदि वो लोगने गाँव में गोचरी करते देख लिया हो तो कहे कि, 'श्रावक आदि के घर खाकर यहाँ आए हो, उन लोगो ने भिक्षा के लिए घुमते न देखा हो तो पूछे कि क्या भिक्षा का समय हुआ है ? यदि वो पात्र देखने के लिए जबरदस्ती करे तो पात्र दिखाए । पात्र साफ दिखने से, वो आए हुए लोग कहनेवाले से नफरत करे । इससे शासन का ऊड्डाह नहीं होता । गाँव की नजदीक में जगह न मिले और शायद दूर जाना पड़े, तो वहाँ जाने के बाद इरियावही करके थोड़ी देर स्वाध्याय करके शान्त होने के बाद भिक्षा खाए । किसी भद्रक वैद्य साधु को भिक्षा ले जाते हुए देखे और उसे लगे कि इस साधु को धातु का वैषम्य हुआ है, यदि इस आहार को तुरन्त खाएंगे तो यकीनन मौत होगी । इसलिए वैद्य सोचता है कि, मैं इस साधु के पीछे जाऊँ, यदि तुरन्त आहार करे रोक लू । लेकिन जब वैद्य के देखने में आता है कि
यह साधु जल्दी खाने नहीं लगते लेकिन क्रिया करते है । क्रिया करने में शरीर की धातु सम हो जाती है । यह सब देखकर वैद्य साधु के पास आकर पूछता है कि क्या तुमने वैदिकशास्त्र पढा है ? तुमने आकर भिक्षा नहीं खाइ ? राधु ने कहा कि - हमारे सर्वज्ञ भगवान का यह उपदेश है कि, 'स्वाध्याय करने के बाद खाना ।' फिर साधु वैद्य को धर्मोपदेश दे । इससे वो वैद्य शायद दीक्षा ग्रहण करे या तो श्रावक हो । ऐसे विधि सँभालने में कइ फायदे है । तीन गाऊँ जाने के बावजूद गोचरी करने का स्थान न मिले तो और नजदीकी गाँव में आहार मिले ऐसा हो और समय लगता हो तो साथ में लाया गया आहार परवे, लेकिन यदि आहार लाकर खाने में सूर्य अस्त हो जाए ऐसा हो तो वहीं धर्मास्तिकायादि की कल्पना करके यतना पूर्वक आहार खा ले ।
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[१६२-१७१] साधु - दो प्रकार के देखे हुए और न देखे हुए, उसमें भी परिचित गुण से पहचाने हुए और गुण न पहचाने हुए । पहचाने में सुने हुए गुणवाले और न सुने हुए
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व । गुणवाले और अप्रशस्त गुणवाले । उसमें भी सांभोगिक और अन्य सांभोगिक । साधु को देखा हो तो फिर वो अज्ञात गुणवाले कैसे हो शके ? समवसरण महोत्सव आदि जगह में देखा हो, लेकिन पहचान न होने से गुण पहचान में न आए हो, कुछ देखे हुए न हो, लेकिन गुण सुने हुए हो । जो साधु शुद्ध आचारवाले हो, उसके साथ निवास करना । (अशुद्ध) साधु की परीक्षा दो प्रकार से – (१) बाह्य (२) अभ्यंतर । दोनों में द्रव्य से और भाव से, बाह्य- द्रव्य से परीक्षा जंघा आदि साबुन आदि 'साफ करे । उपानह रखे, रंगबीरंगी लकड़ी रखे, साध्वी की प्रकार सिर पर कपड़ा ओढ़ ले, एक दुसरे साधु के साथ हाथ पकड़कर चले, आड़ा-टेढ़ा देखते देखते चले, दिशा आदि के उपयोग बिना स्थंडिल पर बैठे । (पवन के सामने, गाँव के सामने, सूर्य के सामने न बैठे लेकिन पीठ करके बैठे । काफी पानी से प्रक्षालन करे आदि । बाह्य भाव से परीक्षा स्त्री- भोजन, देश और चोरकथा करते जा रहे हो, रास्ते में गीत, मैथुन सम्बन्धी बाते या फेर फुदरड़ी करते चल । मानव तिर्यंच आ रहे हो वहाँ मात्रु स्थंडिल के लिए जाए, ऊँगली से कुछ नकल करे । शायद बाह्य प्रेक्षणा में
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