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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
का एक कल्याणक प्रायश्चित् आता है ।
[५७५-५७८] अग्निकाय पिंड - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - ईंट के नीभाड़े के बीच का हिस्सा एवं बिजली आदि का अग्नि । व्यवहार से सचित्त - अंगारे आदि का अग्नि । मिश्र - तणखा । मुर्मुरादि का अग्नि । अचित्त अग्रि...चावल, कूर, सब्जी, ओसामण, ऊँबाला हुआ पानी आदि अग्नि से परिपक्व । अचित्त अग्निकाय का इस्तेमाल - ईंट के टुकड़े, भस्म आदि का इस्तेमाल होता है, एवं आहार पानी आदि में उपयोग किया जाता है । अग्निकाय के शरीर दो प्रकार के होते है । बद्धलक और मुक्केलक । बद्धलक - यानि अग्नि के साथ सम्बन्धित । मुक्केलक अग्नि रूप बनकर अलग हो गए हो ऐसे आहार आदि । उसका उपयोग उपभोग में किया जाता है ।
[५७९] वायुकायपिंड़- सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त रत्नप्रभादि पृथ्वी के नीचे वलयाकार रहा घनवात, तनुवात, काफी शर्दी में जो पवन लगे वो काफी दुर्दिन में लगनेवाला वाय आदि । व्यवहार से सचित्त - पूरब आदि दिशा का पवन काफी शर्दी और अति दुर्दिन रहित लगनेवाला पवन । मिश्रदति आदि मे भरा पवन कुछ समय के बाद मिश्र, अचित्त - पाँच प्रकार से आक्रान्त - दलदल आदि दबाने से नीकलता हुआ पवन | धंत-मसक आदि का वायु । पीलात धमण आदि का वायु । देह अनुगत-श्वासोच्छ्वास-शरीर में रहा वायु । समुर्छिम - पंखे आदि का वायु । मिश्र वायु-कुछ समय के बाद मिश्र फिर सचित्त, अचित्त वायुकाय का उपयोग भरी हुइ मशक तैरने में उपयोग की जाती है एवं स्लान आदि के उपयोग में ली जाती है । अचित्त वायु भरी मसक, क्षेत्र से सो हाथ तक तैरते समय अचित्त । दुसरे सौ हाथ तक यानि एक सौ एक हाथ से दो सौ हाथ तक मिश्र, दो सौ हाथ के बाद वायु सचित्त हो जाता है ।
५८०-५८१] बनस्पतिकाय पिंड - सचित्त. मिश्र. अचित्त । सचित्त दो प्रकार से। निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - अनन्तकाय वनस्पति । व्यवहार से सचित्त - प्रत्येक वनस्पति । मिश्र - मुझाये हुए फल, पत्र, पुष्प आदि बिना साफ किया आँटा, खंड़ित की हुई डांगर आदि । अचित्त - शस्त्र आदि से परिणत वनस्पति, अचित्त वनस्पति का उपयोग - संथारो, कपड़े, औषध आदि में उपयोग होता है ।
[५८२-५८७] दो इन्द्रियपिंड, तेइन्द्रियपिंड, चऊरिन्द्रियपिंड़ यह सभी एक साथ अपनेअपने समूह समान हो तब पिंड़ कहलाते है । वो भी सचित्त, मिश्र और अचित्त तीन प्रकार से होत है । बेइन्द्रिय-चंदनक, शंख, छीप आदि औषध आदि कार्य में । तेइन्द्रिय - उधेही की मिट्टी आदि । चऊरिन्द्रिय - देह सेहत के लिए उल्टी आदि काम में मक्खी की अधार आदि । पंचेन्द्रिय पिंड - चार प्रकार से नारकी, तिर्यंच, मानव, देवता । नारकी का - व्यवहार किसी भी प्रकार नहीं हो शकता । तीर्यंच - पंचेन्द्रिय का उपयोग - चमड़ा, हड्डीया, बाल, दाँत, नाखून, रोम, शींग, विष्टा, मुत्र आदि का अवसर पर उपयोग किया जाता है । एवं वस्त्र, दूध, दही, घी आदि का उपयोग किया जाता है । मानव का उपयोग - सचित्त मानव का उपयोग दीक्षा देने में एवं मार्ग पूछने के लिए होता है । अचित्त मानव की खोपरी लिबास परिवर्तन आदि करने के लिए और घिसकर उपद्रव शान्त करने के लिए मिश्र मानव का उपयोग। रास्ता आदि पूछने के लिए एवं शुभाशुभ पूछने के लिए या संघ सम्बन्धी किसी कार्य