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ओघनियुक्ति -
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निश्चय से सचित्त और व्यवहार से सचित्त, निश्चय से सचित्त, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि व्यवहार से सचित्त । जहाँ गोमय - गोबर आदि न पड़े हो सूर्य की गर्मी या मानव आदि का आना-जाना न हो ऐसा जंगल आदि । मिश्र पृथ्वीकाय क्षीरवृक्ष, वड़, उदुम्बर आदि पेड़ के नीचे का हिस्सा, यानि पेड़ के नीचे छाँववाला बैठने का हिस्सा मिश्र पृथ्वीकाय होता है । हल से खेड़ी हुई जमी आद्र हो तब तक गीली मिट्टी एक, दो, तीन प्रहर तक मिश्र होती है । ज्यादा हो पृथ्वी कम हो तो एक प्रहर तक मिश्र । ईंधन कम हो पृथ्वी ज्यादा हो तो तीन प्रहर तक मिश्र दोनों समान हो तो दो प्रहर तक मिश्र । अचित्त पृथ्वीकाय - शीतशस्त्र, उष्णशस्त्र, तेल, क्षार, बकरी की लींड़ी, अग्नि, लवण, कांजी, घी आदि से वध की हुई पृथ्वी अचित्त होती है । अचित्त पृथ्वीकायका उपयोग लूता स्फोट से हुए दाह के शमन के लिए शेक करने के लिए, सर्पदेश पर शेक आदि करने के लिए अचित्त नमक का और बिमारी आदि में और काऊसग्ग करने के लिए, बैठने में, उठने में, चलने में आदि काम में उसका उपयोग होता है । [५६०-५७४] अप्काय पिंड़ सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से निश्चय से और व्यवहार से, निश्चय से सचित्तः घनोदधि आदि करा, द्रह सागर के बीच का हिस्सा आदि का पानी । व्यवहार से सचित्त कुआ, तालाब, बारिस आदि का पानी । मिश्र अप्काय - अच्छी प्रकार न ऊबाला हुआ पानी जब तक तीन ऊँबाल न आए तब तक मिश्र, बारिस का पानी पहली बार भूमि पर गिरने से मिश्र होता है । अचित्त अपकाय तीन ऊँबाल आया हुआ पानी एवं दुसरे शस्त्र आदि से वध किया गया पानी, चावल का धोवाण आदि चित्त हो जाता है । अचित्त अप्काय का उपयोग शेक करना । तृषा छिपाना । हाथ, पाँव, वस्त्र, पात्र आदि धोने आदि में उपयोग होता है । वर्षा की शुरूआत में वस्त्र का काप नीकालना चाहिए । उसके अलावा शर्दी और गर्मी में वस्त्र का लेप नीकाले तो बकुश चारित्रवाला, विभूषणशील और उससे ब्रह्मचर्य का विनाश होता है । लोगो को शक होता है कि, उजले वस्त्र ओढते है, इसलिए यकीनन कामी होंगे । कपड़े धोने में संपातित जीव एवं वायुकाय जीव की विराधना हो । (शंका) यदि वस्त्र का काप नीकालने में दोष रहे है तो फिर वस्त्र का काप ही क्यों नीकाले ? वर्षाकाल के पहले काप नीकालना चाहिए न नीकाले तो दोष । कपड़े मैले होने से भारी बने । (लील, फूग बने, जूँ आदि पड़े, मैले कपड़े ओढ़ने से अजीर्ण आदि हो उससे बिमारी आए । इसलिए बारिस की मौसम की शुरूआत हो उसके पहले पंद्रह दिन के पहले कपड़ो का काप नीकालना चाहिए । पानी ज्यादा न हो तो अन्त
झोली पड़ला का अवश्य काप नीकालना चाहिए, जिससे गृहस्थ में जुगुप्सा न हो । (शंका) तो क्या सबका बार महिने के बाद काप नीकाले ? नहीं । आचार्य और ग्लान आदि के मैले वस्त्र धो डालना जिससे निंदा या ग्लान आदि को अजीर्ण आदि न हो । कपड़ों का काप किस प्रकार नीकाले ? कपड़े में जूँ आदि की परीक्षा करने के बाद काप नीकालना । जूँ आदि हो तो उसे जयणापूर्वक दूर करके फिर काप नीकालना । सबसे पहले गुरु की उपाधि, फिर अनशन किए साधु की उपधि, फिर ग्लान की उपाधि, फिर नव दीक्षित साधु की उपधि, उसके बाद अपनी उपधि का काप नीकालना । धोबी की प्रकार कपड़े पटककर न धोना, स्त्रीयों की प्रकार धोके मारकर न धोना, लेकिन जयणापूर्वक दो हाथ से मसलकर काप नीकालना । काप नकालने के बाद कपड़े छाँव में सूखाना लेकिन गर्मी में न सूखाना । एक बार काँप नीकालने
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