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ओघनियुक्ति-४२८
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क्रोध करे | मानी - गृहस्थ सत्कार न करे तब उसके यहाँ गोचरी के लिए न जाए । मायी - अच्छा अच्छा एकान्त में खाकर रूखा-सूखा वसति में लाए । लोभी - जितना मिले वो सब वहोर ले । उत्सुक-रास्ते में नट आदि खेल रहे हो तो देखने के लिए खड़ा रहे । प्रतिबद्ध - सूत्र अर्थ में इतना लीन रहे कि गोचरी का समय पूरा हो जाए ।
उपर बताया उसके अलावा जो गीतार्थ प्रियधर्मी साधु है वो आचार्य की भक्ति के लिए योग्य है, उन्हें गोचरी के लिए भेजे, क्योंकि गीतार्थ होने से वो गहस्थ के वहाँ गोचरी आदि कितने है ? इत्यादि विवेक रखकर भिक्षा ग्रहण करे, परिणाम से घृतादि द्रव्य की हमेशा प्राप्ति करके भाव की वृद्धि करनेवाले होते है । स्थापना कुल में एक संघाटक जाए और दुसरे कुल में बाल, वृद्ध, तपस्वी आदि जाए । यहाँ शक होता है कि - जिस गाँव में गच्छ रहा है उस गाँव में पहले जाँच करके आए है, तो फिर जवान साधु को दुसरे गाँव में गोचरी के लिए भेजने का क्या प्रयोजन ? तो बताते है कि बाहर भेजने के कारण यह है कि, गाँव में रहे गृहस्थ को ऐसा लगे कि, यह साधु बाहर गोचरी के लिए जाते है, नए साधु आए तब अपने यहाँ आते है, इसलिए बाल, वृद्ध आदि को दो । इस प्रकार गोचरी के लिए जानेवाले आचार्य आदि को पूछकर नीकलना चाहिए । पूछे बिना जाए तो नीचे के अनुसार दोष लगे।
रास्ते में चोर आदि हो, वो उपधि को या खुद को उठा ले जाए तो उन्हें ढूँढ़ने में काफी मुसीबत उठानी पड़े । प्राधुर्णक आए हो उनके योग्य कुछ लाना हो उसका पता न चले। प्लान के योग्य या आचार्य के योग्य कुछ लाना हो तो उसका पता न चले । रास्ते में कुत्ते आदि का भय हो तो वो काट ले । किसी गाँव में स्त्री या नपुंसक के दोष हो तो उसका पता न चले । शायद भिक्षा के लिए जाने के बाद मूर्जा आ जाए, तो क्या जांच करे ? इसलिए जाते समय आचार्य को कहे कि, 'मैं किसी गाँव में गोचरी के लिए जाता हूँ । आचार्यने जिस किसी को बताया हो, उसे कहकर शायद नीकलते समय कहना भूल जाए और थोड़ा दूर जाने के बाद याद आए, तो वापस आकर कहे, वापस आकर कहकर जाने का समय न मिलता हो तो रास्ते में ठल्ला. मात्र या गोचरी पानी के लिए नीकले हए साधु को कहे कि, 'मैं कुछ गाँव में गोचरी के लिए जाता हूँ, तुम आचार्य भगवंत को कह देना । जिस गाँव में गोचरी के लिए गया है वो गाँव किसी कारण से दूर हो, छोटा हो या खाली हो, तो किसी के साथ कहलाए और दुसरे गाँव में गोचरी के लिए जाए । चोर आदि साधु को उठा ले जाए, तो साधु रास्ते में अक्षर लिखता जाए या वस्त्र फाड़कर उसके टुकड़े रास्ते में फेंकता जाए । जिससे जांच करनेवाले को पता चल शके कि, इस रास्ते से साधु को उठा ले गए लगता है' गोचरी आदि के लिए गए हुए साधु को आने में देर लगे तो वसति में रहे साधु न आए हुए साधु के लिए विशिष्ट चीज रखकर जांच करने जाए । न आया हुआ साधु बिना बताए गया हो, तो चारों ओर जांच करे, रास्ते में कोई निशानी न मिले तो गाँव में जाकर पूछे, फिर भी पता न चले तो गाँव में, इकट्ठे हुए लोगों को कहे कि हमारे साधु इस गाँव में भिक्षा के लिए आए थे उनके कोइ समाचार नहीं है । इस प्रकार कुछ पता न चले तो दुसरे गाँव में जाकर जांच करे । दुसरे गाँव में गोचरी के लिए जाने से आधाकर्मादि दोष से बचते है, आहारादि ज्यादा मिलती है । अपमान आदि नहीं होता । मोह नहीं होता । वीर्याचार का पालन होता है । (सवाल) वृषभ - वैयावच्ची साधु को बाहर भेजे । उसमें आचार्य ने अपने आत्मा की ही अनुकंपा की ऐसा नहीं कहते ? ना - आचार्य वृषभ साधु को भेजे उसमें शिष्य पर