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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
अनुकंपा होती । उल्टा साधु भूख और प्यास से पीड़ित होकर काल कर जाए तो? नहीं यदि भूख और प्यास बरदास्त कर शके ऐसा न हो, गर्मी हो, तपस्वी हो, तो प्रथमालिकादि आदि करके जाए । रूखा-सूखा खाकर या यतनापूर्वक खाकर जाए । जघन्य तीन कवल या तीन भिक्षा उत्कृष्ट से पाँच कवल या पाँच भिक्षा । सहिष्णु हो तो प्रथमालिका किए बिना जाए गोचरी लाने की विधि बताते हुए कहते है । एक पात्र में आहार, दुसरे पात्रा में पानी, एक में आचार्य आदि को प्रायोग्य आहार, दुसरे में जीव संसृष्टादि न हो ऐसा आहार या पानी ग्रहण करे ।
[४२९-४३५] पड़ीलेहणाद्वार दो प्रकार से एक केवली की दुसरी छद्मस्थ की । दोनों बाहर से और अभ्यंतर से बाहर यानि द्रव्य और अभ्यंतर यानि भाव । केवली की पडिलेहेणा प्राणी से संसक्त द्रव्य विषय की होती है । यानि कपड़े आदि पर जीवजन्तु हो तो पडिलेहेणा करे ? छद्मस्थ की पडिलेहेणा जानवर से संसक्त या असंसक्त द्रव्य विषय की होती है । यानि कपड़े आदि पर जीवजन्तु हो या न हो, तो भी पडिलेहेणा करनी पड़ती है । पडिलेहेणा द्रव्य से केवली के लिए वस्त्र आदि जीवजन्तु से संसक्त हो तो पडिलेहेणा करते है लेकिन जीवसे संसक्त न हो तो पडिलेहेणा नहीं होती । भाव से केवली की पडिलेहेणा में - वेदनीय कर्म काफी भुगतना हो और आयु कर्म कम हो तो केवली भगवंत केवली समुद्घात करते है ।
द्रव्य से छद्मस्थ - संसक्त या असंसक्त वस्त्र आदि की पडिलेहेणा करनी वो ।
भाव से छद्मस्थ की - रात को जगे तब सोचे कि, 'मैंने क्या किया, मुझे क्या करना बाकी के, करने के योग्य तप आदि क्या नहीं करता ? इत्यादि ।
[४३६-४६९] स्थान, उपकरण, स्थंडिल, अवष्टंभ और मार्ग का पडिलेहेण करना । स्थान - तीन प्रकार से । कायोत्सर्ग, बैठना, सोना । कायोत्सर्ग ठल्ला मात्रा जाकर गुरु के पास आकर इरियावही करके काऊस्सग करे । योग्य स्थान पर चक्षु से देखकर प्रमार्जना करके काऊस्सग्ग करे । काऊस्सग्ग गुरु के सामने या दोनों ओर या पीछे न करना, एवं आने-जाने का मार्ग रोककर न करना । बैठना - बैठते समय जंघा और साँथल का बीच का हिस्सा प्रमार्जन करने के बाद उत्कटुक आसन पर रहकर, भूमि प्रमार्जित करके बैठना । सोना - सो रहे हो तब बगल बदलते हुए प्रमार्जन करके बगल बदलना । सोते समय भी पूंजकर सोना। उपकरण - दो प्रकार से । १. वस्त्र, २. पात्र सम्बन्धी । सुबह में और शाम को हमेशा दो समय पडिलेहेणा करना । पहले मुहपत्ति पडिलेहेने के बाद दुसरे वस्त्र आदि की पडिलेहणा करना । वसा की पडिलेहेणा विधि - पहले मति कल्पना की पूरे वस्त्र के तीन हिस्से करके देखना, फिर पीछे की ओर तीन टुकड़े करके देखना । तीन बार छ-छ पुरिमा करना । उत्कटुक आसन पर बैठकर विधिवत् पडिलेहेणा करे, पड़िलेहेणा करते समय इतनी परवा करना । पडिलेहेण करते समय वस्त्र या शरीर को न नचाना । साँबिल की प्रकार वस्त्र को ऊँचा न करना । वस्त्र को नौ अखोड़ा पखोड़ा और छ बार प्रस्फोटन करना, पडिलेहेणा करते हुए वस्त्र या देह को ऊपर छत या छापरे को या दीवार या भूमि को लगाना | पडिलेहेण करते समय जल्दबाझी न करना । वेदिका दोष का वर्जन करना । उर्ध्ववेदिका - ढंकनी पर हाथ रखना। अधोवेदिका ढंकनी के नीचे हाथ रखना । तिर्यक् वेदिका - संडासा के बीच में हाथ रखना। द्विघात वेदिका - दो हाथ के बीच में पाँव रखना । गतो वेदिका - एक हाथ दो पाँव के भीतर दुसरा हाथ बाहर रखना । वस्त्र और शरीर अच्छी प्रकार से सीधे रखना । वस्त्र लम्बा न रखे । वस्त्र को लटकाकर न रखे । वस्त्र के अच्छी प्रकार से तीन हिस्से करे - एक के