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ओघनियुक्ति-२१९
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के लिए वसति न मिले | भिक्षा दुर्लभ हो । बाल, स्लान आदि के उचित भिक्षा न मिले । माँस, रुधिर आदि से असज्झाय रहती हो । इसलिए स्वाध्याय न हो शके । इसलिए पहले से जांच करने के बाद यतना से विहार करना चाहिए ।
क्षेत्र की जांच करने के लिए सबकी सलाह लेना और गण को पूछकर जिसे भेजना हो उसे भेज दे । खास अभिग्रहवाले साधु हो तो उन्हें भेजे । वो न हो तो दुसरे समर्थ हो तो उसे भेजे । लेकिन बाल, वृद्ध, अगीतार्थ, योगी, वैयावच्च करनेवाले तपस्वी आदि को न भेजे, क्योंकि - उन्हें भेजने में दोष है ।
बालसाघु को - भेजे तो म्लेच्छ आदि साधु को उठा ले जाए । या तो खेलकूद का मिजाज होने से रास्ते में खेलने लगे । कर्तव्य अकर्तव्य न समज शके । या जिस क्षेत्र में जाए, वहाँ बालसाधु होन से लोग अनुकंपा से ज्यादा दे । इसलिए बालसुधा को न भेजे । वृद्ध साधु को भेजे तो बुढापे के कारण से शरीर काँप रहा हो तो लम्बे अरसे के बाद उचित स्थान पर पहुँचे । और यदि इन्द्रिय शिथिल हो गइ हो तो रास्ता अच्छी प्रकार से न देख शके, स्थंडिल भूमि की भी अच्छी प्रकार से जांच न कर शखे । वृद्ध हो इसलिए लोग अनुकंपा से ज्यादा दे इसलिए वृद्ध साधु को भी न भेजे । अगीताई को भेजे तो वो मास कल्प, वर्षा कल्प आदि विधि का पता न हो तो, वसति की परीक्षा न कर शके । शय्यातर पूछे कि, 'तुम कब आओगे?' अगीतार्थ होने से बोले कि, "कुछ दिन में आ जाएगे, इस प्रकार अविधि से बोलने का दोष लगे । इसलिए अगीतार्थ साधु को न भेजे । योगी को - भेजे तो वो जल्द अपना काम नीपटाने की इच्छावाला हो, तो जल्द जाए, इसलिए मार्ग की अच्छी प्रकार से प्रत्युप्रेक्षा न हो शके और फिर पाठ स्वाध्याय का अर्थी हो, इसलिए भिक्षा के लिए ज्यादा न घुमे, दूध दहीं आदि मिलता हो तो भी ग्रहण न करे, इसलिए योगी - सूत्रोद्देश आदि के योग करनेवाले साधु को न भेजे । वृषभ को • भेजे तो वो वृषभ साधु गुस्से से स्थापना कुल न कहे या कहे लेकिन दुसरे साधु को वहाँ जाने न दे या स्थापना कुल उसके ही पहचानवाले हो, इसलिए दुसरे साधु को प्रायोग्य आहार आदि न मिले, इसलिए प्लानादि साधु सीदाय, इसलिए वृषभ साधु को न भेजे । तपस्वी को - भेजे तो तपस्वी दुःखी हो जाए या फिर तपसी समजकर लोग आहारादि ज्यादा दे, इसलिए तपस्वी साधु को न भेजे । दुसरा किसी समर्थ साधु जाए ऐसा न हो तो अपवाद से ऊपर के अनुसार साधु को यतनापूर्वक भेजे।
बाल साधु को भेजे तो उसके साथ गणावच्छेदक को भेजे, वो न हो तो दुसरे गीतार्थ साधु को भेजे, वो न हो तो दुसरे अगीतार्थ साधु को सामाचारी कहकर भेजे । योगी को भेजे तो अनागाढ़ योगी हो तो योग में से नीकालकर भेजे । वो न हो तो तपस्वी को पारणा कस्वाकर भेजे । वो न हो तो वैयावच्च करनेवाले को भेजे । वो न हो तो वृद्ध और जवान या बाल और जवान को भेजे ।
[२२०-२४३] मार्ग में जाते हुए चार प्रकार की प्रत्यु-प्रेक्षणा करते हुए जाए । रास्ते में ठल्ला मात्रा की भूमि, पानी के स्थान, भिक्षा के स्थान, वसति · रहने के स्थान देखे और फिर भयवाले स्थान हो वो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ऐसे चार प्रकार से प्रत्यु-प्रेक्षणा करे। द्रव्य से - रास्ते में काँटे, चोर, शिकारी जानवर, प्रत्यनीक कुते आदि । क्षेत्र से ऊँची, नीचे, खड्डे - पर्वत पानीवाले स्थान आदि । काल से - जाने में जहाँ रात को आपत्ति हो या दिन