________________
ओघनियुक्ति-२४६
१४५
चाहिए ।
[२४७-२८०] क्षेत्र की जांच करके वापस आते हुए दुसरे रास्ते पर होकर आना, क्योंकि शायद जो क्षेत्र देखा था, उससे अच्छा क्षेत्र हो तो पता चले । वापस आने से भी सूत्रपोरिसी अर्थपोस्सिी न करे । क्योंकि जितने देर से आए उतना समय आचार्य को ठहरना पड़े, मासकल्प से ज्यादा वास हो उतना नित्यवास माना जाता है । आचार्य भगवंत के पास आकर, इरियावही करके, अतिचार आदि की आलोचना करके आचार्य को क्षेत्र के गुण आदि बताए । आचार्य रात को सभी साधुओ को इकट्ठा करके क्षेत्र की बाते करे | सबका अभिप्राय लेकर खुद को योग्य लगे उस क्षेत्र की ओर विहार करे, आचार्य का मत प्रमाण गिना जाता है, उस क्षेत्र में से विहार करने से विधिवत् शय्यातर को बताए । अविधि से कहने में कई दोष रहे है । शय्यातर को बताए बिना विहार कर ले तो शय्यातर को होता है कि, यह भिक्षु को लोकधर्म मालूम नहीं है । जो प्रत्यक्ष ऐसे लोकधर्म को नहीं जानते उन्हें अदृष्ट का कैसे पता चल शके ? इसलिए शायद जैन धर्म को छोड़ दे । दसरी बार किसी साध को वसति न दे । किसी श्रावक आदि आचार्य को मिलने आए हो या दीक्षा लेने के लिए आए हो तो शय्यातर को पूछे कि, 'आचार्य कहाँ है ?' रोषायमान शय्यातर कहे कि, हमे क्या पता ? ऐसा उत्तर सुनकर श्रावक आदि को होता है कि 'लोकव्यवहार का भी ज्ञान नहीं है तो फिर परलोक का क्या ज्ञान होगा ? इसलिए दर्शन का त्याग करे, इत्यादि दोष न हो इसके लिए विधिवत् शय्यातर को पूछकर विहार करे । पास के गाँव में जाना हो तो सूत्र पोरिसी, अर्थ पोरिसी करके विहार करे । काफी दूर जाना हो तो पात्र पडिलेहेणा किए बिना नीकले । बाल, वृद्ध आदि खुद उठा शके उतनी उपधि उठाए, बाकी उपधि जवान आदि समर्थ हो तो उठाए । किसी निद्रालु जैसे ही जल्द न नीकले तो उन्हें मिलने के लिए जाते हुए संकेत करके जाए, जल्द जाते समय आवाज न करे, आवाज करे तो लोग सो रहे हो वो जाग उठे, इसलिए अधिकरण आदि दोष लगे, सब साथ में नीकले, जिससे किसी साधु को रास्ता पूछने के लिए आवाज न करना पड़े, अच्छी तिथि, मुहूर्त, अच्छा सगुन देखकर विहार करे ।
मलीन देहवाला फटे हुई कपड़ेवाला शरीर पर तेल लगाया हुआ, कुबड़ा, वामन-कुत्ता, आँठ-नौ महिने के गर्भवाली स्त्री, ज्यादा उम्रवाली कन्या, लकड़ी का भारा, बावा, बैरागी, लम्बी दाढी मूंछवाला, लुहार, पांडुरोगवाला, बौद्धभिक्षु, दिगम्बर आदि अपसगुन है जब कि नंदी, वाजिंत्र, पानी से भरा घड़ा, शंख, पड़ह का शब्द, झारी, छत्र, चामर, झंड़ा, पताका, श्रमण, साधु, जितेन्द्रिय, पुष्प इत्यादि । शुभ सगुन है ।
[२८१-२९०] संकेत - प्रदोष, (संध्या) के समय आचार्य सभी साधुओ को इकट्ठा करके कहे कि, कुछ समय पर नीकलेंगे । कुछ-कुछ जगह पर विश्राम करेंगे, कुछ जगह पर ठहरेंगे, कुछ गाँव में भिक्षा के लिए जाएगे । आदि किसी निद्रालु/शठ प्रायः के साथ आने के लिए तैयार न हो तो उसके लिए भी कुछ जगह पर इकट्ठे होने का संकेत दे । वो अकेला सो जाए या गोकुल आदि में घुमता हो तो प्रमाद दोष से उसकी उपधि हर जाए । क्षेत्र प्रत्युपेक्षक कुछ गच्छ के आगे, कुछ मध्य में और कुछ पीछे चले । रास्ते में स्थंडिल, मात्रा आदि की जगह बताए । क्योंकि किसी को अति शंका हुई हो तो टाल शके । रास्ते में गाँव आए वहाँ भिक्षा मिल शके ऐसा हो और जिस गाँव में ठहरना है, वो गाँव छोटा हो, तो तरुण साधु को गाँव में भिक्षा लेने के लिए भेजे और उनकी उपधि आदि दुसरे साधु ले ले । किसी 110