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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
में आपत्ति हो तो उसे पहचान लो या दिन में रास्ता अच्छा है या बूरा, रात को रास्ता अच्छा है या बूरा उसकी जांच करे, भाव - उस क्षेत्र में निह्नव, चरक, पख्रिाजक आदि बार-बार आते हो इससे लोगों की दान की रुचि न रही हो, उसकी जांच करे । जब तक इच्छित स्थान पर न पहुँचे तब तक सूत्र पोरिसी, अर्थ पोरिसी न करे । वो क्षेत्र के नजदीक आ जाए तब पास के गाँव में या गाँव के बाहर गोचरी करके, शाम के समय गाँव में प्रवेश करे और वसति ढूँढ़े, वसति मिल जाने पर कालग्रहण लेकर दुसरे किसी न्यून पोरिसी तक स्वाध्याय करे । फिर संघाटक होकर गोचरी पर जाए । क्षेत्र के तीन हिस्से करे । एक हिस्से में सुबह में गोचरी पर जाए, दुसरे हिस्से में दोपहर को गोचरी के लिए जाए और तीसरे हिस्से में शाम को गोचरी के लिए जाए । सभी जगह से थोड़ा थोड़ा ग्रहण करे और दूध, दही, घी आदि माँगे क्योंकि माँगने से लोग दानशील है या कैसे है उसका पता चले । तीन बार गोचरी में जाकर परीक्षा ले । इस प्रकार पास में रहे आसपास के गाँव में भी परीक्षा ले । सभी चीजे अच्छी प्रकार से मिल रही हो तो वो क्षेत्र उत्तम कहलाता है । कोई साधु शायद काल करे तो उसे परठ शके उसके लिए महास्थंडिलभूमि भी देख रखे । वसति किस जगह पर करनी और कहाँ न करे उसके लिए जो वसति हो उसमें दाँई ओर पूर्वाभिमुख वृषभ बैठा हो ऐसी कल्पना करे। उसके हरएक अंग के फायदे इस प्रकार है । शींग के स्थान पर वसति करे तो कलह हो। पाँव या गुदा के स्थन पर वसति करे तो पेट की बिमारी हो । पूँछ की जगह वसति करे तो नीकलना पड़े । मुख के स्थान पर वसति करे तो अच्छी गोचरी मिले । शींग के या खंभे के बीच में वसति करे तो पूजा सत्कार हो । स्कंध और पीठ के स्थान पर वसति करे तो बोझ लगे, पेट के स्थान पर वसति करे तो हमेशा तृप्त रहे ।।
२४४-२४६] शय्यातर के पास से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से प्रायोग्य की अनुज्ञा पाए । द्रव्य से - घास, डगल, भस्म आदि की अनुज्ञा । क्षेत्र से - क्षेत्र की मर्यादा आदि । काल से - रात को या दिन में ठल्ला मात्रु परठवने के लिए अनुज्ञा । भाव से - ग्लान आदि के लिए पवन रहित आदि प्रवेश की अनुज्ञा । शय्यातर कहते है कि मैं तुम्हें इतना स्थान देता हूँ, ज्यादा नहीं । तब साधुको कहना चाहिए कि जो भोजन दे वो पानी आदि भी देता है । इस प्रकार हमको वसति - स्थान देनेवाले तुमने स्थंडिल - मात्रादि भूमि आदि भी दी है । शय्यातर पूछते है कि, तुम कितना समय यहाँ रहोगे ? साधु को कहना चाहिए कि, जब तक अनुकूल होगा तब तक रहेंगे । शय्यातर पूछते है कि, 'तुम कितने साधु यहाँ रहोंगे? साधु ने कहा कि 'सागर की उपमा से ।' सागर में किसी दिन ज्यादा पानी हो, किसी दिन मर्यादित पानी होता है, ऐसे गच्छ में किसी समय ज्यादा साधु होते है तो किसी दिन परिमित साधु होते है । शय्यातर ने पूछा कि, 'तुम कब आओगे ? साधु ने कहा कि, हमारे दुसरे साधु दुसरे स्थान पर क्षेत्र देखने के लिए गए है, इसलिए सोचकर यदि यह क्षेत्र उचित लगेगा तो आएगे, यदि शय्यातर ऐसा कहे कि, तुम्हें इतने ही क्षेत्र में और इतनी ही गिनती में रहना पड़ेगा । तो उस क्षेत्र में साधु को मास कल्प आदि करना न कल्पे । यदि दुसरी जगह वसति न मिले तो वहीं निवास करे । जिस वसति में खुद रहे हो वो वसति यदि परिमित हो और वहाँ दुसरे साधु आए तो उन्हें वंदन आदि करना, खड़े होना, सन्मान करना, भिक्षा लाना, देना, इत्यादि विधि सँभालना, फिर उस साधु को कहना कि, 'हमको यह वसति परिमित मिली है इसलिए दुसरे ज्यादा नहीं रह शकते, इसलिए दुसरी वसति की जांच करनी