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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
प्रकार - बाहर से किसी चीज लाना, बाहर किसी चीज भेजना, शब्द करके मोजुदगी बताना, रूप से मोजुदगी बताना और बाहर कंकर आदि फेंकना ।
[७९] पौषधोपवास चार तरह से बताया है वो इस प्रकार - आहार पौषध, देह सत्कार पौषध, ब्रह्मचर्य पौषध और अव्यापार पौषध, पौषधोपवास, व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए, वो इस प्रकार - अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित, शय्या संथारो, अप्रमार्जित, दुष्प्रमार्जित शय्या संथारो, अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित मल, मूत्र, त्याग भूमि, अप्रमार्जित, दुष्प्रमार्जित मल-मूत्र त्याग भूमि, पौषधोपवास की सम्यक् परिपालना न करना ।
[८०] अतिथि संविभाग यानि साधु-साध्वी को कल्पनीय अन्न-पानी देना, देश, काल, श्रद्धा, सत्कार युक्त श्रेष्ठ भक्तिपूर्वक अनुग्रह बुद्धि से संयनो को दान देना । वो अतिथि संविभाग व्रतयुक्त श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए । वो इस प्रकार अचित्त निक्षेप, सचित्त के द्वारा इँकना, भोजनकाल बीतने के बाद दान देना, अपनी चीजको परायी कहना, दुसरों के सुख का द्वेष करना ।
[८१] इस प्रकार श्रमणोपासक धर्म में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और यावत्कथिक या इत्वरकथिक यानि चिरकाल या अल्पकाल के लिए चार शिक्षाव्रत बताए है । इन सबसे पहले श्रमणोपासक धर्म में मूल वस्तु सम्यक्त्व है | वो निसर्ग से और अभिगम से दो प्रकार से है । पाँच अतिचार रहित विशुद्ध अणुव्रत और गुणव्रत की प्रतिज्ञा के सिवा दुसरी भी पडिमा आदि विशेष से करने लायक है ।
अन्तिम मरण सम्बन्धी संलेखना आराधना का आराधन करना चाहिए । आम तोर पर कहा जाए तो श्रावक को व्रत और पडिमा के अलावा मरण के समय योग्य समाधि और स्थिरता के लिए मरण पर्यन्त का अनशन अपनाना चाहिए । श्रमणोपासक को इस सम्बन्ध से पाँच अतिचार बताए है वो इस प्रकार - १. इस लोक के सम्बन्धी या . २. परलोक सम्बन्धी इच्छा करना, ३. जीवित या ४. मरण सम्बन्धी इच्छा रखना और ५. काम-भोग सम्बन्धी इच्छा रखना ।
[८२] सूर्य नीकलने से आरम्भ होकर नमस्कार सहित अशन, पान, खादिम, स्वादिम के पच्चक्खाण करते है । सिवा कि अनाभोग, सहसाकार से (नियम का) त्याग करे ।
[८३] सूर्योदय से पोरिसी (यानि एक प्रहर पर्यन्त) चार तरह का - अशन, पान, खादिम, स्वादिम का पच्चक्खाण करते है । सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल से, दिशा-मोह से, साधु वचन से, सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से (पच्चक्खाण) छोडे ।
[८४] सूर्य ऊपर आए तब तक पुरिमड्ढ़ (सूर्य मध्याह् मे आए तब तक) अशन आदि चार आहार का पच्चक्खाण (-नियम) करता है । सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, काल की प्रच्छन्नता, दिशामोह, साधुवचन, महत्तवजह या सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से नियम छोड़ दे ।
[८५] एकासणा का पच्चक्खाण करता है । (एक बार के अलावा) अशन आदि चार आहार का त्याग करता है । सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, सागारिक कारण से, आकुंचन प्रसारण से, गुरु अभ्युत्यान पारिष्ठापनिका कारण से, महत् कारण से या सर्व समाधि के हेतु रूप आगार से (पच्चक्खाण) छोड़ दे ।
[८६] एकलठाणा का पच्चक्खाण करता है । (बाकी का अर्थ सूत्र : ८५ अनुसार केवल उसमें ‘महत्तर कारण' न आए ।