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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
४१/१ | ओघनिर्युक्ति
मूलसूत्र- २/१- हिन्दी अनुवाद
अरहंत को नमस्कार हो, सिद्ध को नमस्कार हो, आचार्य को नमस्कार हो, उपाध्याय को नमस्कार हो । इस लोक में रहे सभी साधु को नमस्कार हो । इन पाँच को किया गया नमस्कार सारे पाप का नाशक है । सर्व मंगल में उत्कृष्ट मंगल है ।
[१-३] उपक्रम काल दो प्रकार से है । सामाचारी उपक्रम काल और यथायुष्क उपक्रम काल (यहाँ उपक्रम का अर्थ वृत्ति में किया है । “दूर हो उसे, समीप लाना वो " ) और सामाचारी उपक्रमकाल तीन प्रकार से है- १. ओध, २. दशधा, ३. पदविभाग, उसमें ओध और दशधा समाचारी उन नौ में पूर्व में रहे तीसरे आचार वस्तु के बीसवे ओध प्राभृत
रही थी । साधु के अनुग्रह के लिए वहाँ से यहाँ लाई गई इसलिए उसे उपक्रम कहते है । वो उपक्रम काल पूर्वे बीस वर्ष का था और जो हाल दीक्षा के पहले दिन ही दे शकते है । अब मंगल के आरम्भ के लिए नीचे दी गइ गाथा बताते है ।
[४-५] अरहंत को वंदन करके, चौदह पूर्वी और दशपूर्वी को वंदन करके, ग्यारह अंग को सूत्र अर्थ सहित धारण करनेवाले सभी साधुओ को वंदन करके चरण-करण अनुयोग में से अल्प अक्षर और महान अर्थवाली ओघ से नियुक्ति साधुओ के अनुग्रह के लिए कहता हूँ । [६] ओघ का जो समूह वो समास से, संक्षेप से एकी भाव से मिला है । काफी अर्थ- गम से युक्त या बद्ध हो उसे नियुक्ति कहते है । यानि यहाँ समास संक्षेप से एकी भाववाले कइ अर्थ और गम जुड़े हुए है । बद्ध हुए है वो 'ओहनिजुत्ति' ।
[७] ( चरण सित्तरी के सत्तर भेद) पाँच व्रत, दश श्रमण धर्म, १७ प्रकार से संयम, १० प्रकार से वेयावच्च, नौ प्रकार से ब्रह्मचर्य, ज्ञानादित्रिक, १२ प्रकार से तप, क्रोधादि निग्रह |
[C] (करण सितरी के सत्तर भेद ) पिंड़ विशुद्धि - ४, भेद से, ५ समिति, १२ भावना, १२ प्रतिमा, ५ इन्द्रिय निग्रह, २५ पडिलेहणा, ३ गुप्ति, ४ अभिग्रह ।
[९-१५] यहाँ षष्ठी की बजाय पाँचवी विभक्ति क्यों बताई है ? ऐसे सवाल का भाष्य में खुलासा है कि चरणकरणानुयोग सम्बन्धी ओघ नियुक्ति मैं बताऊँगा वहाँ पंचमी विभक्ति का प्रयोजन यह है कि चरणकरणानुयोग के अलावा भी योग है । वो इस प्रकार चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग, द्रव्यानुयोग वो चार अनुयोग है । यह चारो एक-एक से बढ़के है । चारो अनुयोग स्वविषय में तो ताकतवर है ही । तो भी चरणानुयोग बलवान है । चारित्र के रक्षण के लिए ही दुसरे तीन अनुयोग है । चारित्र की प्रतिपत्ति के आशय से धर्मकथा रूप कलासमूह प्रवज्या आदि के दान के लिए, द्रव्यानुयोग दर्शन शुद्धि
लिए है क्योंकि दर्शनशुद्धि से चारित्रशुद्धि है । जिस प्रकार एक राजा के प्रदेश में चार खदान थी । एक रत्न की, दुसरी सोने की, तीसरी चाँदी की, चौथी लोहे की, चारों पुत्रो को