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आवस्सयं-६/८७
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[८७] आयंबिल का पच्चक्खाण करता है । (उसमें आयंबिल के लिए एकबार बैठने के अलावा) अशन आदि चार आहार का त्याग करता है । सिवा कि अनाभोग से, सहसाकार से, लेपालेप से, उत्क्षिप्त विवेक से, गृहस्थ संसृष्ट से, पारिष्ठापन कारण से, महत्तर कारण से या सर्व समाधि के लिए (पच्चक्खाण) छोड़ दे ।
[८८] सूर्य ऊपर आने के छते भोजन न करने का पञ्चकखाण करता है (इसलिए) अशन आदि चार आहार का त्याग करता है । सिवा कि अनाभोग सहसाकार, पारिठापनिका कारण से, महत्तर कारण से, सर्व समाधि के लिए (पच्चक्खाण) छोड़ दे ।
[८९] दिन के अन्त में अशन आदि चार प्रकार के आहार का पच्चक्खाण करता है । सिवा कि अनाभोग सहसाकार, महत्तर कारण, सर्व समाधि के हेतु से छोड़ दे ।
[९०] भवचरिम यानि जीवन का अन्त दिखते ही (अशन आदि चार आहार का पच्चक्खाण करता है ।) (शेष पूर्व सूत्र ८९ अनुसार जानना ।)
[९१] अभिग्रह पूर्वक अशनादि चार आहार का पच्चक्खाण करता है । (शेष पूर्व सूत्र ८९ अनुसार जानना ।)
[१२] विगई का पच्चक्खाण करता है । सिवा कि अनाभोग सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थ संसृष्ट, उत्क्षिप्त विवेक, प्रतीत्यम्रक्षित, परिष्ठापन, महत्तर, सर्व समाधि हेतु । इतने कारण से पच्चक्खाण छोड़ दे ।
सूत्र-८२ से ९२ के महत्त्व के शब्द की व्याख्या । पच्चकखाण यानि नियम या गुण धारणा । नमस्कार सहित - जिसमें मुहूर्त (दो प्रहर) प्रमाण काल मान है । अन्नत्थ - सिवा कि दिए गए कारण के अलावा । अनाभोग भूल जाने से - सहसाकार - अचानक महत्तराकार - बड़ा प्रयोजन या कारण उपस्थित होने से सव्वसमाहि - तीव्र बिमारी आदि कारण से चित्त की समाधि टिकाए रखने के लिए। पच्छन्नकाल - समय को न जानने से , दिशामोह - दिशा के लिए भ्रम हो और काल को पता न चले । साधुवचन - साधु जोरो से किसी शब्द बोले और विपरीत समजे । लेपालेप - न कल्पती चीज का संस्पर्श हो गया हो । गृहस्थ संसृष्ट - गृहस्थ से मिश्र हुआ हो वो उत्क्षिप्त विवेक - जिन पर विगई रखकर उठा लिया हो । प्रतीत्यम्रक्षित - सहज घी आदि लगाया हो वैसी चीज । गुरु अभ्युत्थान - गुरु या वडील आने से खड़ा होना पड़े ।
| ४० आवश्यक-मूलसूत्र-१-हिन्दी अनुवाद पूर्ण