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आवस्सयं ६ / ६६
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अदत्तादान दो तरह से बताया है वो इस प्रकार - सचित्त और अचित्त | स्थूल अदत्तादान से विरमित श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना । चोर या चोरी से लाए हुए माल - सामान का अनुमोदन, तस्कर प्रयोग, विरुद्ध राज्यातिक्रम झूठे तोल-नाप करना ।
[ ६७ ] श्रमणोपासक को परदारागमन का त्याग करना या स्वपत्नी में संतोष रखे यानि अपनी बीवी के साथ अब्रह्म आचरण में भी नियम रखे, परदारा गमन दो तरह से बताया है वो इस प्रकार - औदारिक और वैक्रिय । स्वदारा संतोष का नियम करनेवाले ने श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए । वो इस प्रकार अपरिगृहितागमन, दुसरे के द्वारा परिगृहित के साथ गमन, अनंगक्रीड़ा, पराया विवाह करना और कामभोग के लिए तीव्र अभिलाष करना ।
[ ६८ ] श्रमणोपासक अपरिमित परिग्रह का त्याग करे यानि परिग्रह का परिमाण करे । वो परिग्रह दो तरीके से है । सचित्त और अचित्त । इच्छा (परिग्रह) का परिमाण करनेवाले श्रावक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए । १. धण और धन के प्रमाण में, २. क्षेत्र - वस्तु के प्रमाण में, ३ . सोने-चांदी के प्रमाण में, ४. द्वीपद-चतुष्पद के प्रमाण में और ५. कुप्य धातु आदि के प्रमाण में अतिक्रम हो वो ।
[ ६९ ] दिशाव्रत तीन तरह से जानना चाहिए । उर्ध्व अधो-तिर्यक - दिशाव्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना चाहिए । १. उर्ध्व, २. अधो, ३. तिर्यक् दिशा के प्रमाण का अतिक्रमण । क्षेत्र, वृद्धि और स्मृति गलती से कितना अंतर हुआ उसका खयाल न रहे वो ।
[ ७०-७१] उपभोग - परिभोग व्रत दो प्रकार से भोजनविषयक परिमाण और कर्मादानविषयक परिमाण, भोजन सम्बन्धी परिमाण करनेवाले श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए । अचित्त आहार करे, सचित्त प्रतिबद्ध आहार करे, अपक्क दुष्पक्क आहार करे तुच्छ वनस्पति का भक्षण करे । कर्मादान सम्बन्धी नियम करनेवाले को यह पंद्रह कर्मादा न जानने चाहिए । अंगार, वन, शकट, भाटक, स्फोटक वो पाँच कर्म, दाँत, लाख, रस, केश, विष वो पाँच वाणिज्य, यंत्र पीलण निर्लांछन- दवदान - जलशोषण और असत्ति पोषण ।
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[७२] अनर्थदंड़ चार प्रकार से बताया है वो इस प्रकार अपध्याना प्रमादाचरण हत्याप्रदान और पापकर्मोपदेश । अनर्थदंड़ विरमण व्रत धारक श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए वो इस प्रकार काम विकार सम्बन्ध से हुआ अतिचार, कुत्सित चेष्टा, मौखर्य, वाचालता, हत्या अधिकरण का इस्तेमाल, भोग का अतिरेक ।
[७३-७७] सामायिक यानि सावद्य योग का वर्जन और निरवद्य योग का सेवन ऐसे शिक्षा अध्ययन दो तरीके से बताया है । उपपातस्थिति, उपपात, गति, कषायसेवन, कर्मबंध और कर्मवेदन इन पाँच अतिक्रमण का वर्जन करना चाहिए... सभी जगह विरति की बात बताइ गइ है । वाकइ सर्वत्र विरति नहीं होती । इसलिए सर्व विरति कहनेवालेने सर्व से और देश से (सामायिक) बताई है । सामायिक व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना चाहिए । १. मन, २. वचन, ३. काया का दुष्प्रणिधान, ४. सामायिक में अस्थिरता और ५. सामायिक में विस्मृतिकरण ।
[७८] दिव्रत ग्रहण कर्ता के, प्रतिदिन दिशा का परिमाण करना वो देसावकाशिक व्रत । देशावकासिक व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए । वो इस