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- हिन्दी अनुवाद आगमसूत्र -
चार का वर्जन करना चाहिए ।
[३०-३२] उपद्रव प्राप्त साधु को उद्वर्तन या निर्लेप (लेप- नीकाल देना) करनेवाले साधु ने दिन में या रात को साथ में न रहना । जो डरपोक हो उसे सेवा के लिए न रखे। लेकिन वहाँ निर्भय को रखे । जहाँ देवता का उपद्रव हो वहाँ गोचरी के लिए न जाए । यदि ऐसे घर न मिले तो गोचरी देनेवाले के साथ नजर न मिलाए । अशिव न हो यानि निरुपद्रव स्थिति में जो अभिग्रह - तप ग्रहण किए हो उसमें वृद्धि करे । यदि सेवा करनेवाले को जाना पड़े तो अन्य समान सामाचारीवाले को वो उपद्रव युक्त साधु के पास रख के जाए । साधु न हो तो दुसरों को भी सौंपकर अन्यत्र जाए । शायद उस उपद्रववाले साधु आक्रोश करे तो समर्थ साधु वहाँ रहना चाहे तो उसे कहकर जल्द नीकल जाना । यदि न चाह तो उस दिन रहकर समय मिलते ही छिद्र ढूँढ़कर सभी को आधे को या अन्त में एक-एक करके भी नीकले ।
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[३३-३४] विहार करते समय संकेत करके सभी नीकले और जहाँ इकट्ठे हो वहाँ जो गीतार्थ को उसके पास आलोचना करे । यदि सौम्यमुखी देवता हो तो उसी क्षेत्र में उपद्रव करे इसलिए दुसरे क्षेत्र में जाना चाहिए । कालमुखी देवता हो तो चारो दिशा के दुसरे क्षेत्र में भी उपद्रव करे तो तीसरे क्षेत्र में जाना चाहिए । रक्ताक्षी देव चारों दीशा के तीसरे क्षेत्र में भी उपद्रव करे तो चौथे क्षेत्र में जाना चाहिए । यहाँ जो अशीव यानि देव उपद्रव के लिए कहा । (अशीवकारण पूरा हुआ) वो ही विधि दुर्भक्ष के लिए भी जाननी चाहिए । जैसे गाय के समूह को थोड़े से घास में तृप्ति न हो तो अलग अलग जाए ऐसे अकाल में अकेले साधु को अलग-अलग नीकल जाना चाहिए । ( दुर्भिक्ष कारण पूरा हुआ ।)
[३५-३७] राज्य की ओर से चार प्रकार से भय हो, वसति न दे, आहार पानी न दे, वस्त्र - पात्र छीन ले, मार डाले, उसमें अन्तिम दो भेद वर्तते हो तब राज्य में से नीकल जाए। यह राज्य भय के कारण बताता है कि यदि कोइ साधु के लिबास में प्रवेश करके किसी को मार डाला हो, राजा साधु के दर्शन अमंगल मानता हो, कोइ राजा को चड़ाए कि साधु तुम्हारा अहित करनेवाले है । राजा के निषेध के बावजूद भी किसी को दीक्षा दी हो । राजा के अंतःपुर में प्रवेश करके अकृत्य सेवन किया हो, किसी वादी साधुने राजा का पराभव किया हो । ( इस कारण से राज्यभय पाते हुए साधु विहार करे और चारित्र या जीवित नाश का भय हो तो एकाकी बने ।)
[३८] क्षोभ से एकाकी बने । - भय या त्रास । जैसे कि उज्जैनी नगरी में चोर आकर मानव आदि का हरण कर लेते थे । किसी दिन रेंट की माला कुए में गिर पड़ी तब कोइ बोला कि, "माला पतिता" दुसरे समजे कि "मालवा पतिता" मालवा के चोर आए । डर के मारे लोगोने भागना शुरू किया । इस प्रकार से साधु भय या त्रास से अकेला हो जाए ।
[३९] अनशन से एकाकी बने । अनशन गृही साधु को कोइ निर्यामणा करवानेवाला न मिले या संघाटक न मिले और उसे सूत्र - अर्थ पूछना हो तो अकेला जाए ।
[४०] स्फिटित - रास्ते में दो मार्ग आते है । वहाँ गलती से मंदगति से चलने से या पर्वत आदि न चड़ शकने से फिर से आने के कारण से साधु एकाकी बने ग्लान : बिमार साधु निमित्त से औषध आदि लाने के लिए या अन्य जगह पर बिमार साधु की सेवा करनेवाला