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महानिशीथ-६/-/१२७४
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सरलता से नहीं पा शकते । हे गौतम ! केवल जितनी मधु की बूंद है उतना केवल सुख मरणांत कष्ट सहे तो भी नहीं पा शकते । उनका दुर्विदग्धपन-अज्ञान कितना माने ? या हे गौतम ! जिस तरह के मानव है वो तुम प्रत्यक्ष देख कि जो तुच्छ अल्प सुख का अहेसास करते है जिन्हें कोई भी मानव सुनने के लिए तैयार नहीं है । कुछ मानव कीरमजी रंग के लिए मानव के शरीर पुष्ट बनाने के लिए उसका लहँ बलात्कार से नीकालते है । कोई किसान का व्यापार करवाता है । कोई गाय चरवाने का काम करवाता है । दासपन, सेवकपन, पाँव का व्यापार कई तरह के शिष्य, नौकरी, खेती, वाणिज्य, प्राण त्याग हो वैसे क्लेश परिश्रम साहसवाले कार्य, दारिद्ध. अवैभवपन, इत्यादिक और घर-घर भटककर कर्म करना ।
[१२७५-१२७८] दुसरे न देखे इस तरह खुद को छिपाकर ढिणी ढिणी आवाज करके चले, नग्न खूले शरीवाला क्लेश का अहसास करते हए चले जिससे पहनने के कपड़े न मिले, वो भी पुराने, फटे, छिद्रवाले महा मुश्किल से पाए हो वो फटे हुए ओढ़ने के वस्त्र आज सी गूंगा-कल सी लूँगा ऐसा करके वैसे ही फटे हुए कपड़े पहने और इस्तेमाल करे । तो भी हे गौतम ! साफ प्रकट परिस्फूटनपन से समज कि ऊपर बताए तरीको में से किसी लोक लोकाचार और स्वजन कार्य का त्याग करके भोगोपभोग और दान आदि को छोड़कर बूरा अशन भोजन खाता है ।
[१२७९-१२८०] दौडादौड़ी करके छिपाकर बचाकर लम्बे अरसे तक रात दिन गुस्सा होकर, कागणी-अल्पप्रमाण धन इकट्ठा किया हो कागणी का अर्धभाग, चौथा हिस्सा, बीसवाँ हिस्सा भेजा । किसी तरह से कहीं से लम्बे अरसे से लाख या करोड़ प्रमाण धन इकट्ठा किया। जहाँ एक ईच्छा पूर्ण हुई कि तुरन्त दुसरी ईच्छा खड़ी होती है । लेकिन दुसरे मनोरथ पूर्ण नहीं होते ।
[१२८१-१२८३] हे गौतम ! इस तरह के दुर्लभ चीज की अभिलाषा और सुकुमार पन धरिंभ के समय प्राप्त होती है । लेकिन करिंभ में आकर विघ्न नहीं करके । क्योंकि किसी एक के मुँह में नीवाला है वहाँ तो दुसरे आकर उसके पास इख की गंडेरी धरते है । भूमि पर पाँव भी स्थापन नहीं करता । और लाखो स्त्रीयों के साथ क्रीड़ा करता है । ऐसे लोगों को भी दुसरे ज्यादा समृद्धिवाले सुनकर ऐसी ईच्छा होती है कि उसकी मालिकी के देश को स्वाधीन करूँ और उसके स्वामी को मेरी आज्ञा मनवाऊँ ।
[१२८४-१२८९] सीधी तरह आज्ञा न माने तो साम, भेद, दाम, दंड़ आदि निती के प्रयोग करके भी आज्ञा मनवाना । उसके पास सैन्यादिक कितनी चीजे है । उसका साहस मालूम करने के लिए गुप्तचर-जासूस पुरुष के झरिये जांच-पड़ताल करवाए । या गुप्त चरित्र से खुद पहने हुए कपड़े से अकेला जाए । बड़े पर्वत, कील्ले, अरण्य, नदी उल्लंघन करके लम्बे अरसे के बाद कईं दुःख क्लेश सहते हुए वहाँ पहुँचे भूख से दुर्बल कंठवाला दुःख से करके घर घर भटकते हुए भीक्षा की याचना करते हुए किसी तरह से उस राज्य का छिद्र और गुप्त बाते जानने की कोशीश करता है, फिर भी पता नहीं चल शकता । उसके बाद यदि किसी तरह से जिन्दा रहा और पुण्य पांगरने लगा तो फिर देह और वेश का परावर्तन करके वो गृह में प्रवेश करे । उस वक्त उसे तुम कौन हो ? ऐसा पूछे तब वो भोजनादिक में अपना चारित्र प्रकट करे । युद्ध करने के लिए सज्ज होकर सर्व सेना वाहन और पराक्रम से टुकड़े-टुकड़े हो,