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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
करके शल्यरहित, गर्भावास आदि के दुःख की बजह से, काफी संवेग पानेवाला, जन्म, जरा, मरण आदि के दुःख से भयभीत, चार गतिरूप संसार के कर्म जलाने के लिए हमेशा इस अनुसार हृदय में ध्यान करता है ।
[१३६६-१३६८] जरा, मरण और काम की प्रचुरतावाले रोग क्लेश आदि बहुविध तरंगवाले, आँठ कर्म, चार कषायरूप भयानक जलचर से भरे गहरे भवसागर में इस मानवरूप में सम्यकत्वज्ञानचारित्ररूप उत्तम नाव जहाज पाकर यदि उसमें से भ्रष्ट हुआ हो तो दुःख का अन्त पाए बिना मैं पार रहित संसार सागर में लम्बे अरसे तक इधर-उधर भटकते पटकते भ्रमण करूँगा | तो वैसा दिन कब आएगा कि जब मैं शत्रु और मित्र को ओर समान पक्षवाला, निःसंग, हमेशा शुभ ध्यान में रहनेवाला होकर विचरण करूँगा । और फिर भव न करना पड़े वैसी कोशीश करूँगा ।
[१३६९-१३७१] इस अनुसार बडे अरसे से चिन्तवे हुए मनोरथ के सन्मुख होनेवाला उस रूप महासंपत्ति के हर्ष से उल्लासित होनेवाले, भक्ति के अनुग्रह से निर्भर होकर नमस्कार करके, रोमांच खड़ा होने से रोम-रोम व्याप्त आनन्द अंगवाला, १८ हजार शिलांग धारण करने के लिए उत्साहपूर्वक ऊँचे किए गए खंभेवाला, छत्तीस तरह के आचार पालन करने के लिए उत्कंठित, नष्ट किए गए समग्र मिथ्यात्ववाला, मद, मान, ईर्ष्या, क्रोध अंगीकार करके हे गौतम ! विधिवत् इस अनुसार विचरण करे ।
[१३७२-१३७३] पंछी की तरह कोई चीज या स्थान की ममता रहित, ज्ञान, दर्शन और चारित्र में उद्यम करनेवाला, धन, स्वजन आदि के संग रहित, घोर परिषह उपसर्गादिक को प्रकर्षरूप से जीतनेवाला, उग्र अभिग्रह प्रतिमादिक को अपनाते हुए, राग-द्वेष का दूर से त्याग करते हुए, आर्त, रौद्र ध्यान से रहित, विकथा करने में अरसिक हो ।
[१३७४-१३७५] जो कोइ बावन चंदन के रस से शरीर और बाहूँ पर विलेपन करे, या किसी बाँस से शरीर छिले, कोइ उसके गुण की स्तुति करे या अवगुण की नींदा करे तो दोनो पर समान भाव रखनेवाला उस प्रकार बल, वीर्य, पुरुषार्थ पराक्रम को न छिपाते हुए, तृण और मणि, ढ़ेफा और कंचन की ओर समान मनवाला, व्रत, नियम, ज्ञान, चारित्र, तप आदि समग्र भुवन में अद्वितीय, मंगलरूप, अहिंसा लक्षणयुक्त क्षमा-आदि दश तरह के धर्मानुष्ठान के लिए एकान्त स्थिर लक्षणवाला, सर्व जुरुरी उस समय करने लायक स्वाध्याय ध्यान में उपयोगवाला, असंख्याता अनेक संयम स्थानक के लिए अस्खलित करणवाला, समस्त तरह से प्रमाद के परिहार के लिए कौशीशवाला, यतनावाला और अब फिर भूतकाल के अतिचार की नींदा और भावि में मुमकीन अत्तिचार का संवर करते हुए वो अतिचार से अटका, उस वजह से वर्तमान में अकरणीय की तरह पापकर्म का त्याग करनेवाला सर्वदोष रहित और फिर नियाणा संसार वृद्धि की जड़ होने से उससे रहित होनेवाला यानि निर्ग्रन्थ प्रवचन की आराधना
आलोक या परलोक के बाह्य सुख पाने की अभिलाषा से न करते हुए, 'माया सहित झूठ बोलना' उसका त्याग करनेवाला ऐसे साधु या साध्वी उपर बताए गुण से युक्त मैने किसी तरह से प्रमाद दोष से बार-बार कहीं भी किसी भी स्थान पर मन, वचन या काया से त्रिकरण विशुद्धि से सर्वभाव से संयम की आचरणा करते करते असंयम से स्खलना पाए तो उसे विशुद्धि स्थान हो तो केवल प्रायश्चित् है ।