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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
उसमें सर्व लोक भरोसा रखनेवाले होते है । जो कुछ भी कर्मानुसार प्राप्त होता है और उसका निक्षेप या त्याग देव नहीं करवाते । तो अब तुम सर्वजन बोध पाओ । और सर्वोत्तम शील गुण से महर्द्धिक ऐसे कुमार के चरण कमल में तामस भाव रहित होकर प्रणाम करो । ऐसा कहकर देवता अदृश्य हो गए ।
[१५०७] यह अवसर देखकर उस चतुर राजपुरुषने जल्द राजा के पास पहुँचकर देखा हुआ वृतान्त निवेदन किया । उसे सुनकर कईं विकल्प रूप तरंगमाला से पूरे होनेवाले हृदयसागरवाला हर्ष और विषाद पाने से भय सहित खड़ा हो गया । त्रास और विस्मययुक्त हृदयवाला राजा धीरे-धीरे गुप्त सुरंग के छोटे द्वार से कंपते सर्वगात्रवाले महाकौतुक से कुमार दर्शन की काफी उत्कंठावाले प्रदेश में आया सुगृहीत नामवाले महायशस्वी महासत्त्ववाले महानुभाव कुमार के राजा ने दर्शन किए । अप्रतिपाति महाअवधिज्ञान के प्रत्यय से अनगिनत भव के महसूस किए हुए सुख दुःख सम्यकत्यादि की प्राप्ति, संसार, स्वभाव, कर्मबंध, उसकी दशा, उससे मुक्ति कैसे मिले ? वैर बन्धवाले राजादि को अहिंसा लक्षण धर्म उपदेश दिया ।
सुखपूर्वक बैठे सौधर्मापति इन्द्र महाराजाने मस्तक पर रखे श्वेत छत्रवाले कुमार को देखकर पहले कभी भी न देखा हुए ऐसा ताज्जुब देखकर परिवार सहित वो राजाने प्रतिबोधपाया और दीक्षा अंगीकार की । शत्रु चक्राधिपति राजा को भी प्रतिबोध हुआ और दीक्षा अंगीकार की । इस समय चार निकाय के देवने सुन्दर स्वरखाली गम्भीर दुंदुभि का बड़ा शब्द किया और फिर उद्घोषणा की ।
[१५०८-१५०९] हे कर्म की आँठ गठान के टुकड़े करनेवाले ! परमेष्ठिन् ! महायशवाले! चारित्र दर्शन ज्ञान सहित तुम्हारी जय हो इस जगत में एक वो माता हर पल वंदनीय है । जिसके उदर में मेरु पर्वत समान महामुनि उत्पन्न होकर बसे ।
[१५१०] ऐसा कहकर सुगंधीदार पुष्प की वृष्टि छोड़ते भक्तिपूर्ण हृदयवाले हस्तकमल की अंजलि रचाकर इन्द्र सहित देव समुदाय आकाश में से नीचे ऊतर आए । उसके बाद कुमार के चरणकमल के पास देवसुंदरीओने नृत्य किया । फिर काफी स्तवना की । नमस्कार करके लम्बे अरसे तक पर्युपासना करके देवसमुदाय अपने स्थानक पर गए ।
[१५११] हे भगवंत ! वो महायशवाले सुग्रहीत नाम धारण करनेवाले कुमार महर्षि इस तरह के सुलभबोधि किस तरह बने ? हे गौतम ! अन्य जन्म में श्रमणभाव में रहे थे तब उसने वचन दंड का प्रयोग किया था । उस निमित्त से जीवनभर गुरु के उपदेश से मौनव्रत धारण किया था । दुसरा संयतोने तीन महापाप स्थानक बताए है, वो इस प्रकार अप्काय, अग्निकाय
और मैथुन यह तीनो को सर्व उपाय से साधु को खास वर्जन करना चाहिए । उसने भी उस तरह से सर्वथा वर्जन किया था । उस कारण से वो सुलभ बोधि बने ।
अब किसी दिन हे गौतम कईं शिष्य से परिवरीत उस कुमार महर्षिने अंतिम समय में देह छोड़ने के लिए सम्मेत शिखर पर्वत के शिखर की ओर प्रयाण किया । विहार करते करते कालक्रम उसी मार्ग पर गए कि जहाँ वो राजकुल बालिकावरेन्द्र चक्षुकुशील थी । राजमंदिर में समाचार दिए वो उत्तम उद्यान में वंदन करने के लिए स्त्रीनरेन्द्र आए । कुमार महर्षि को प्रमाण करने के पूर्वक परिवार सह यथोचित भूमि स्थान में नरेन्द्र बैठा । मुनेश्वर ने काफी विस्तार से धर्मदेशना की । धर्मदेशना सुनने के बाद परिवार सह स्त्री नरेन्द्र निःसंगता ग्रहण करने के लिए